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अध्याय-2 समष्टि अर्थशास्त्र की कुछ मूल धारणाएँ (Some Basic Concepts of Macroeconomics) 

 

Q 1. वस्तुओं के प्रकारो कि व्याख्या कीजिए।

वस्तुओं को प्रायः ‘अंतिम’ तथा ‘मध्यवर्ती’ वस्तुओं में वर्गीकृत किया जाता है। इनका विस्तृत वर्णन निम्नलिखित हैः-

अंतिम वस्तुएँ (Final Goods):- 

अंतिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ है जो उत्पादन की सीमा रेखा (Boundary Line of Production) पार कर चुकी है और अपने अंतिम प्रयोगकर्ताओं (Final Users) द्वारा प्रयोग के लिए तैयार हैं।

अंतिम प्रयोगकर्ता  (i) उपभोक्ता तथा (ii) उत्पादक होते हैं।

उदाहरण: उपभोक्ता कपड़ों और जूतों के अंतिम प्रयोगकर्ता होते हैं। उत्पादक प्लांट तथा मशीनरी के अंतिम-प्रयोगकर्ता होते हैं।

अतः अंतिम वस्तुओं को प्रायः दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

(i) अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं तथा (ii) अंतिम उत्पादक वस्तुओं

अंतिम उपभोक्ता वस्तुएँ (Final Consumer Goods):-

यह वे वस्तुएँ है जो अपने अंतिम प्रयोगकर्ताओं (Final Users) द्वारा उपयोग के लिए तैयार होती हैं, और उपभोक्ता उनके अंतिम प्रयोगकर्ता होते हैं। अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं को उपभोक्ताओं द्वारा अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए खरीदा जाता है। उदाहरण: उपभोक्ताओं द्वारा उपयोग किया गया मक्खन तथा डबल रोटी।

अंतिम उत्पादक वस्तुएँ (Final Producer Goods):-

यह वे वस्तुएँ है जो अपने अंतिम प्रयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग के लिए तैयार होती हैं, और उत्पादक उनके अंतिम-प्रयोगकर्ता होते हैं।अंतिम उत्पादक वस्तुओं को उत्पादकों द्वारा और अधिक उत्पादन करने के लिए खरीदा जाता है। उदाहरण: किसानों द्वारा उपयोग किए गए ट्रैक्टर तथा हार्वेस्टर ।

उपभोग व्यय :-परिवार द्वारा अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं पर किये जाने वाले व्यय को उपभोग व्यय (Consumption Expenditure) कहा जाता है।

निवेश व्यय:- उत्पादकों द्वारा अंतिम वस्तुओं पर किये जाने वाले व्यय को निवेश व्यय (Investment Expenditure) कहा जाता है। तदनुसार, अंतिम वस्तुओं पर व्यय = उपभोग व्यय + निवेश व्यय

उदाहरण: एक खुदरा विक्रेता के शोरूम में रखी कमीज अंतिम-प्रयोगकर्ता को बेचने के लिए होती है। इस कमीज को सीने, प्रेस करने तथा पैकिंग करने आदि के रूप में किसी प्रकार की मूल्य वृद्धि की जरूरत नहीं है। अब केवल मूल्य वृद्धि उस समय होगी जब वास्तव में इसे उपभोक्ता को बेचा जाएगा, जो कि इसका अंतिम-प्रयोगकर्ता है। यदि खुदरा विक्रेता इस कमीज को थोक व्यापारी से ₹400 में खरीद कर, उपभोक्ता को ₹ 500 में बेच देता है, तो इस क्रिया में ₹100 (= ₹500 – ₹400) की मूल्य वृद्धि होती है। यह कमीज में मूल्य वृद्धि का अंतिम चरण है। अब कमीज ने अंतिम रूप से उत्पादन की सीमा रेखा को पार कर लिया है। ₹500 मूल्य वाली यह कमीज अब अंतिम वस्तु के रूप में गिनी जाएगी। स्मरण रहे कि राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय केवल अंतिम वस्तुओं को ही सम्मिलित किया जाता है।

मध्यवर्ती वस्तुएँ (Intermediate Goods ):-

मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ है जिन्होंने अभी तक उत्पादन की सीमा रेखा को पार नहीं किया है या जो उत्पादन की सीमा रेखा के अंदर होती हैं, अभी इन वस्तुओं में मूल्य वृद्धि की जानी है और अभी ये वस्तुएँ अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा उपयोग के लिए तैयार नहीं है।

ये वस्तुएँ एक फर्म द्वारा किसी अन्य फर्म से खरीदी जाती हैं ताकि या तो इनका कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जा सके या इन्हें आगे बेच दिया जाए मतलब पुनः बिक्री की जाए । उदाहरण: यदि फर्म- X, फर्म-Y से पुनः बिक्री (Resale) के लिए कमीजें खरीदती है तब ये (कमीजें) मध्यवर्ती वस्तुएँ कहलाती हैं। क्योंकि पुनः बिक्री द्वारा इनकी मूल्य वृद्धि की जानी है।

इसी भाँति कुर्सियाँ बनाने के लिए बढ़ई द्वारा खरीदी गई लकड़ी (इमारती लकड़ी विक्रेता से) एक मध्यवर्ती वस्तु है। क्योंकि कुर्सियाँ बनाने के लिए लकड़ी का प्रयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है। लकड़ी को कुर्सियों में बदलकर उसमें मूल्य वृद्धि की जाती है।

उदाहरण:- जब एक बढ़ई ₹ 5,000 मूल्य की लकड़ी खरीदता है और इसे ₹ 10,000 मूल्य की कुर्सियों में बदलता है तब कुर्सियों (अंतिम वस्तु) के मूल्य में लकड़ी (मध्यवर्ती वस्तु) का मूल्य शामिल होता है। अतएव राष्ट्रीय उत्पाद या राष्ट्रीय आय के अनुमान में मध्यवर्ती वस्तुओं को सम्मिलित नहीं किया है। अन्यथा राष्ट्रीय उत्पाद के अनुमान में मूल्य की दोहरी गिनती हो जाएगी।

मध्यवर्ती वस्तुओं पर व्यय (Expenditure on Intermediate Goods):-

एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादकों द्वारा मध्यवर्ती वस्तुओं पर किया गया व्यय मध्यवर्ती उपभोग (Intermediate Consumption) कहलाता है।

उत्पाद का मूल्य (कुर्सियों का ) – मध्यवर्ती उपभोग = ‘सकल मूल्य वृद्धि’ अथवा उत्पादकों का सकल उत्पाद। 

एक ही वस्तु अंतिम अथवा मध्यवर्ती वस्तु हो सकती है (The Same Good May be Final or Intermediate):- 

एक ही वस्तु अंतिम अथवा मध्यवर्ती वस्तु हो सकती है। यह सब वस्तुओं के अंतिम-उपयोग (End-Use) पर निर्भर करता है। अतः एक वस्तु अपने में न तो अंतिम और न ही मध्यवर्ती होती है।

उदाहरण : दूध अपने में न तो अंतिम वस्तु है और न ही मध्यवर्ती वस्तु है। इसे अंतिम या मध्यवर्ती कहना इसके अंतिम उपयोग पर निर्भर करता है। तदनुसार एक गाँव में डेयरीफ़ार्म द्वारा बेचे जाने वाला समस्त दूध अंतिम वस्तु नहीं कही जा सकती। इसके केवल उस भाग को ही अंतिम वस्तु कहा जाएगा जिसे उपभोक्ता परिवारों (Consumer Households) को बेचा जाता है। अन्य भाग, जिसे मिठाई बनाने वाले उत्पादकों को बेचा जाता है, (तथा जिसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है) को मध्यवर्ती वस्तु कहा जाएगा।

वस्तुओं का अंतिम उपयोग ही महत्त्व क्यों रखता है (What Matters is the End-use of Goods):- 

वस्तुओं को अंतिम या मध्यवर्ती के रूप में वर्गीकृत करते समय वस्तुओं का अंतिम-उपयोग (End-use) ही महत्त्व रखता है। देखने की बात यह है कि किस अंतिम उपयोग के लिए एक वस्तु का प्रयोग किया जाता है। यदि उत्पादकों द्वारा इसका प्रयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है तो इसे मध्यवर्ती वस्तु माना जाएगा।

इसी प्रकार, यदि उत्पादकों द्वारा इसे खरीदा तथा पुनः बेचा जाता है तो भी इसे मध्यवर्ती वस्तु कहा जाएगा। किंतु यदि परिवार (Households ) द्वारा इसे अंतिम उपभोग के लिए खरीदा जाता है तो इसे अंतिम वस्तु माना जाएगा।

केवल अंतिम वस्तुओं (जो उत्पादन की सीमा रेखा को पार कर चुकी हैं तथा अपने अंतिम-प्रयोगकर्ता द्वारा उपयोग के लिए तैयार होती हैं) को ही राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय के अनुमान में सम्मिलित किया जाता है।

अंतिम तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में  अंतर स्पस्ट् कीजिए (The Principal Differences between Final and Intermediate Goods):-

अंतिम तथा मध्यवर्ती वस्तुओं के बीच मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:-

मध्यवर्ती वस्तुएँ (Intermediate Goods)

अंतिम वस्तुएँ (Final Goods

1. लेखा वर्ष में इन वस्तुओं का उपयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में किया जाता है। 1. लेखा वर्ष में इन वस्तुओं का उपयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में नहीं किया जाता है।
2. लेखा वर्ष में फर्मों द्वारा लाभ कमाने हेतु इन वस्तुओं की पुनः  बिक्री की जाती है। 2. लेखा वर्ष में फर्मों द्वारा लाभ प्राप्त करने हेतु इन वस्तुओं की पुनः बिक्री नहीं की जाती है।
3. ये वस्तुएँ उत्पादन की सीमा रेखा के अंदर रहती हैं तथा अंतिम प्रयोगकर्ता द्वारा उपयोग के लिए तैयार नहीं होती । 3. ये वस्तुएँ उत्पादन की सीमा रेखा के बाहर होती हैं तथा अंतिम-प्रयोगकर्ता द्वारा उपयोग के लिए तैयार होती हैं।
4. इन वस्तुओं में अभी मूल्य वृद्धि की जानी है। 4. इन वस्तुओं में कोई मूल्य वृद्धि नहीं की जानी है।
5. इन वस्तुओं को राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय के अनुमान में सम्मिलित नहीं किया जाता है। 5. इन वस्तुओं को राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय के अनुमान में सम्मिलित किया जाता है।

मध्यवर्ती वस्तुओं तथा अंतिम वस्तुओं में भेद का महत्त्व अंतर स्पस्ट् कीजिए

(Significance of the Distinction between Intermediate Goods and Final Goods) 

राष्ट्रीय आय के अनुमान के दृष्टिकोण से मध्यवर्ती वस्तुओं तथा अंतिम वस्तुओं में अंतर का विशेष महत्त्व है। जब मध्यवर्ती वस्तुओं वस्तुएँ अंतिम वस्तुओं के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाती है तब मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य स्वयंमेव अंतिम वस्तु के मूल्य में सम्मिलित हो जाता है।

उदाहरण के लिए फर्म- A ने ₹2,000 मूल्य का कपड़ा कमीजों के उत्पादन में कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने हेतु खरीदा। कमीजों को ₹5,000 में बेचा गया। इस ₹ 5,000 मूल्य में ₹ 2,000 मूल्य का कपड़ा भी सम्मिलित है। अतः राष्ट्रीय आय की गणना में केवल अंतिम वस्तुओं का मूल्य, अर्थात् ₹ 5,000 मूल्य की कमीजों को ही सम्मिलित किया जाएगा। कपड़े का मूल्य (₹ 2,000) मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य है इसलिए इसे राष्ट्रीय उत्पाद / राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाएगा। यदि हम मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य (₹ 5,000 + ₹2,000 = ₹7,000) को भी शामिल कर लेते हैं तो यह दोहरी गिनती (Double Counting) का कारण होगा। क्योंकि कपड़े की कीमत (₹ 2,000) पहले ही अंतिम वस्तुओं अर्थात् कमीजों के मूल्य (₹5,000) में सम्मिलित कर ली गई है। अतः राष्ट्रीय उत्पाद/राष्ट्रीय आय की गणना करते समय केवल अंतिम वस्तुओं के मूल्य को लेना चाहिए।

उपभोक्ता वस्तुएँ (उपभोग वस्तुएँ ) तथा पूँजीगत वस्तुएँ किसे कहते है ?

[Consumer Goods (also called Consumption Goods) and Capital Goods ] 

अंतिम वस्तुओं की दो महत्त्वपूर्ण श्रेणियाँ, उपभोक्ता वस्तुएँ तथा पूँजीगत वस्तुएँ हैं।

उपभोक्ता वस्तुएँ अथवा उपभोग वस्तुएँ (Consumer Goods or Consumption Goods) 

यह वे वस्तुएँ है जो मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से (Directly) संतुष्ट करती हैं। इनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए नहीं किया जाता है। उदाहरण: परिवारों द्वारा उपभोग किया गया दूध तथा आइसक्रीम ।

उपभोक्ता वस्तुएँ अंतिम उपभोग के लिए होती हैं और अंतिम वस्तुओं के रूप में अंतिम प्रयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग के लिए तैयार होती हैं।

उपभोक्ता वस्तुओं के अंतिम प्रयोगकर्ता (Final Users) कौन होते हैं? ये हैं:-

(i) उपभोक्ता परिवार (Consumer Households),

(ii) सामान्य सरकार, एक कल्याणकारी एजेंसी के रूप में (General Government as a Welfare Agency) (जैसे- जब इसके द्वारा बाढ़ तथा अकाल पीड़ितों में खाद्यान्न तथा कपड़े बाँटे जाते हैं),

(iii) गैर-सरकारी संगठन (Non-government Organisations – NGOs) जब वे अपने कर्मचारियों के उपभोग के लिए अथवा दान हेतु उपभोक्ता वस्तुएँ खरीदते हैं। अंतिम-प्रयोगकर्ताओं [(i), (ii) तथा (iii)] द्वारा उपभोग वस्तुओं को खरीदने के लिए किए जाने वाले खर्च को अर्थव्यवस्था का अंतिम उपभोग व्यय (C) कहते हैं।

उपभोग वस्तुओं का वर्गीकरण कीजिए(Classification of Consumption Goods):- 

उपभोग वस्तुओं (अथवा उपभोक्ता वस्तुओं) का वर्गीकरण विस्तृत रूप से चार श्रेणियों में किया जाता है:-

(i)टिकाऊ वस्तुएँ (Durable Goods)

(ii)अर्ध-टिकाऊ वस्तुएँ (Semi-Durable Goods) 

(iii)गैर-टिकाऊ वस्तुएँ (Non-Durable Goods) 

(iv)सेवाएँ (Services) 

(i) टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ (Durable Consumer Goods):-

टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग कई वर्षों तक किया जा सकता है तथा इनका सापेक्ष मूल्य भी अधिक होता है। इनका वस्तुओं का अंत तक बार-बार उपयोग किया जाता है। टी०वी०, रेडियो, कार, स्कूटर, कपड़े धोने की मशीन, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के कुछ उदाहरण हैं।

(ii) अर्ध-टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ (Semi-Durable Consumer Goods):-

अर्ध-टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग एक वर्ष या उससे कुछ अधिक समय के लिए किया जा सकता है। इनका सापेक्ष मूल्य भी अधिक नही होता। कपड़े, फर्नीचर, क्रॉकरी, बिजली का सामान, आदि अर्ध-टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के उदाहरण हैं।

(iii) गैर-टिकाऊ अथवा एकल-उपयोग उपभोक्ता वस्तुएँ (Non-Durable or Single-use Consumer Goods):-

गैर-टिकाऊ अथवा एकल- उपयोग उपभोक्ता वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भूख मिटाने के लिए आप जिस डबल रोटी को खाते हैं तो एक बार के उपयोग में वह डबल रोटी समाप्त हो जाएगी। आप उसका दुबारा उपयोग नहीं कर सकेंगे। ऐसी वस्तुओं का सापेक्ष मूल्य कम होता है। स्याही, गैस, दूध तथा पेट्रोल, गैर-टिकाऊ अथवा एकल-उपयोग उपभोक्ता वस्तुओं के उदाहरण हैं।

(iv) सेवाएँ (Services):-

सेवाएँ वे गैर-भौतिक वस्तुएँ हैं जो मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती हैं। डॉक्टर,

वकील, घरेलू नौकर आदि की सेवाएँ इसके कुछ उदाहरण हैं।

पूँजीगत वस्तुएँ किसे कहते है? (Capital Goods):-

पूँजीगत वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उत्पादन की प्रक्रिया में कई वर्षों तक प्रयोग किया जाता है और जिनका उच्च मूल्य होता हैं। ये उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियाँ होती हैं। उदाहरण : प्लांट तथा मशीनरी ।

अंतिम वस्तुओं के रूप में पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियाँ (Fixed Assets) होती है। इन वस्तुओं; जैसे-प्लांट, मशीनरी आदि का उत्पादन प्रक्रिया में बार-बार कई वर्षों तक प्रयोग किया जाता है।

यद्यपि नट तथा बोल्ट (Nut and Bolt) अथवा कील तथा पेच (Nails and Screws) को भी कई वर्षों तक प्रयोग में लाया जाता है, किंतु ये पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती, क्योंकि ये कम कीमत वाली वस्तुएँ हैं। इसके विपरीत, पूँजीगत वस्तुएँ उच्च मूल्य वाली होती हैं। अतः उत्पादकों की केवल उन स्थिर परिसंपत्तियों को ही पूँजीगत वस्तुएँ माना जाता है जिनका कई वर्षों तक उत्पादन की प्रक्रिया में प्रयोग किया जाता है और जिनका उच्च मूल्य होता है।

सभी मशीनें, पूँजीगत वस्तुएँ  होती है या नहीं  स्पस्ट् कीजिए(All Machines are not Capital Goods):-

स्मरण रहे कि सभी मशीनें पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती । दर्जी की दुकान में पड़ी एक सिलाई मशीन दर्जी की स्थिर संपत्ति है। यह एक पूँजीगत वस्तु है। किंतु वही मशीन यदि एक उपभोक्ता परिवार के घर में है तो वह पूँजीगत वस्तु नहीं कहलाएगी। तब वह केवल एक टिकाऊ-उपयोग उपभोक्ता वस्तु (Durable-use Consumer Good) है।

इसी प्रकार पर्यटक कम्पनी की कार एक पूँजीगत वस्तु है। किंतु वही कार यदि एक उपभोक्ता परिवार के पास है तो वह एक टिकाऊ उपयोग उपभोक्ता वस्तु है।

अतः पूँजीगत वस्तुओं की पहचान करते समय हमें यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उसका अंतिम प्रयोगकर्ता (End-user) कौन है। यदि टिकाऊ वस्तु का अंतिम-प्रयोगकर्ता एक उपभोक्ता परिवार है तो यह एक टिकाऊ उपयोग उपभोक्ता वस्तु है। इसके विपरीत यदि टिकाऊ वस्तु का अंतिम-प्रयोगकर्ता एक उत्पादक है तो यह एक पूँजीगत वस्तु है । केवल वही टिकाऊ वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ होती हैं जिनका उत्पादक वस्तुओं के रूप में प्रयोग होता है, न कि उपभोक्ता वस्तुओं के रूप में।

सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती हैं,किंतु सभी उत्पादक वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती कैसे 

(All Capital Goods are Producer Goods, but all Producer Goods are not Capital Goods) 

उत्पादक वस्तुएँ उन सभी वस्तुओं को कहते हैं जिनका उपयोग उत्पादन की प्रक्रिया में किया जाता है। अथवा उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए किया जाता है। इन वस्तुओं में सम्मिलित होते हैं:-

(i) उत्पादकों द्वारा कच्चे माल के रूप में उपयोग की जाने वाली वस्तुएँ; जैसे- फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी का उपयोग।

(ii) वे वस्तुएँ जिनका उत्पादक स्थिर परिसंपत्ति के रूप में उपयोग करते हैं; जैसे- प्लांट तथा मशीनरी ।

उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्ति से भिन्न, कच्चे माल के रूप में प्रयोग की गई वस्तुएँ टिकाऊ उपयोग वस्तुएँ नहीं होती। ये एकल-उपयोग उत्पादक वस्तुएँ होती हैं जिनका उत्पादन की प्रक्रिया में बार-बार उपयोग नहीं किया जा सकता है। उसी लकड़ी का कुर्सियाँ बनाने के लिए बार-बार उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसके विपरीत स्थिर परिसंपत्तियों (अथवा पूँजीगत वस्तुओं) का उत्पादन की प्रक्रिया में बार-बार उपयोग किया जा सकता है। यह टिकाऊ-उपयोग उत्पादक वस्तुएँ हैं।

अतः यह स्पष्ट है कि जबकि सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती हैं, सभी उत्पादक वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती।

निवेश किसे कहते है तथा प्रकारो कि व्याख्या कीजिए।(Concept and Types of Investment) 

निवेश :-

निवेश उन मानव-कृत वस्तुओं (Man-made Goods) का स्टॉक होता है जिनका प्रयोग और अधिक उत्पादन के लिए किया जाता है।यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे पूँजी के स्टॉक में वृद्धि होती है।

पूँजी के स्टॉक का निहितार्थ उत्पादकों की उत्पादन क्षमता है। उत्पादकों के पास पूँजी का स्टॉक जितना अधिक होगा उतनी ही उनकी वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन करने की क्षमता अधिक होगी।

उत्पादकों का सदैव यह प्रयत्न रहता है कि उनके पूँजी स्टॉक में वृद्धि होती रहे, जिससे उनकी उत्पादन करने की क्षमता में समय के साथ-साथ वृद्धि जारी रहे। एक वर्ष के दौरान पूँजी के स्टॉक में होने वाली वृद्धि को उस वर्ष का निवेश कहा जाता है। अतः

I = ΔK 

निवेश = वर्ष के दौरान पूँजी के स्टॉक में परिवर्तन

(यहाँ, I: निवेश; K: पूँजी का स्टॉक; ΔK: वर्ष के दौरान पूँजी-स्टॉक में परिवर्तन।)

पूँजी के स्टॉक में परिवर्तन को पूँजी निर्माण (Capital Formation) भी कहा जाता है। अतः निवेश तथा पूँजी निर्माण शब्दों का प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर किया जाता है। अतः निवेश को पूँजी निर्माण की प्रक्रिया के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है।

निवेश, पूँजी निर्माण की एक प्रक्रिया है, अथवा पूँजी के स्टॉक में वृद्धि की एक प्रक्रिया है।

स्थिर निवेश तथा मालसूची निवेश कि व्याख्या  कीजिए (Fixed Investment and Inventory Investment) 

निवेश के दो घटक हैं:-

(i) स्थिर निवेश (Fixed Investment)

(ii) माल-सूची निवेश (Inventory Investment)

स्थिर निवेश (Fixed Investment):-

स्थिर निवेश से अभिप्राय एक लेखा वर्ष की अवधि में उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों के स्टॉक में वृद्धि का होना है। उत्पादकों द्वारा स्थिर परिसंपत्तियों अथवा पूँजीगत वस्तुओं (जैसे-प्लांट तथा मशीनरी) की खरीद पर किया गया खर्च स्थिर निवेश कहलाता है।

उदाहरण: यदि वर्ष 2024 के आरंभ में एक उत्पादक के स्टॉक में 5 मशीनें हैं तथा वर्ष 2024 के अंत में उसके पास 7 मशीनें हो जाती हैं तो वर्ष 2024 के दौरान उसके स्थिर परिसंपत्ति के स्टॉक में 2 मशीनों की वृद्धि हो जाती है।  वर्ष 2024 के दौरान उत्पादक का स्थिर निवेश = 2 मशीनें ।

स्थिर निवेश = 

लेखा वर्ष के अंत में उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों का स्टॉक लेखा वर्ष के आरंभ में उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों का स्टॉक = ‘एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों के स्टॉक में वृद्धि

स्थिर निवेश को स्थिर पूँजी निर्माण भी कहा जाता है। इसका निहितार्थ स्थिर परिसंपत्तियों (अथवा पूँजीगत वस्तुओं) के रूप में पूँजी के स्टॉक में वृद्धि है, जिसका कई वर्षों तक उत्पादन की प्रक्रिया में बार-बार उपयोग किया जाता है।

स्थिर निवेश का महत्त्व को स्पस्ट् कीजिए (Significance of Fixed Investment):- 

हम जानते हैं कि स्थिर निवेश से अभिप्राय उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों के स्टॉक में वृद्धि से है। इसका निहितार्थ प्लांट तथा मशीनरी की संख्या (अथवा आकार) में वृद्धि है। तदनुसार इसका निहितार्थ उत्पादन के पैमाने में वृद्धि है। जब प्लांट तथा मशीनरी की संख्या (अथवा आकार) बढता है तब उत्पादक छोटे पैमाने पर उत्पादन की अपेक्षा बड़े पैमाने पर उत्पादन करने लगते हैं।

उत्पादन के पैमाने में वृद्धि का अर्थ उत्पादन के स्तर (Level of Output) में वृद्धि है। इस प्रकार स्थिर पूँजी निर्माण अर्थव्यवस्था में उत्पादन के स्तर को बढ़ाता है। यह संवृद्धि तथा विकास का सूचक है।

उत्पादन के पैमाने (Scale of Production) को प्लांट तथा मशीनरी की संख्या (तथा आकार) के रूप में मापा जाता है। प्लांट तथा मशीनरी की संख्या (तथा आकार) में वृद्धि होने से उत्पादन के पैमाने में वृद्धि होती है। उत्पादन का पैमाना प्रत्यक्ष रूप से स्थिर निवेश के आकार से संबंधित है। स्थिर निवेश जितना अधिक होगा उत्पादन का पैमाना भी उतना ही अधिक होगा तथा इसके अनुरूप उत्पादन का स्तर भी ऊँचा होगा। यह संवृद्धि तथा विकास का सूचक है।

माल-सूची निवेश  (Inventory Investment):-

किसी एक समय पर (At a point of time) उत्पादकों के पास जो स्टॉक होता है उसमें

(i) तैयार वस्तुएँ (बिना बिकी वस्तुएँ) (ii) अर्ध-तैयार वस्तुएँ (उत्पादन की प्रक्रिया में वस्तुएँ) तथा (iii) कच्चे माल, सम्मिलित होते हैं। इसे माल-सूची (Inventory) स्टॉक कहा जाता है। समय के साथ-साथ इस स्टॉक में परिवर्तन होता रहता है। वर्ष के दौरान माल-सूची स्टॉक में होने वाले परिवर्तन को उत्पादक का माल-सूची निवेश कहते हैं।

माल-सूची निवेश (Inventory Investment) = लेखा वर्ष के अंत में माल-सूची स्टॉक – लेखा वर्ष के आरंभ में माल-सूची स्टॉक = एक लेखा वर्ष के दौरान माल-सूची स्टॉक में परिवर्तन

माल-सूची निवेश का महत्त्व को स्पस्ट् कीजिए (Significance of Inventory Investment):- 

बाजार की अनिश्चितताओं का सामना करने के उद्देश्य से माल – सूची को बनाए रखा (Maintain) जाता है। पूर्ति की कमी से निपटने के लिए कच्चे माल की माल-सूची आवश्यक होती है। तैयार वस्तुओं की माल-सूची बनाने का उद्देश्य माँग में होने वाली वृद्धि को पूरा करना है।

परन्तु आवश्यक नहीं कि सभी माल-सूची स्टॉक उतनी ही मात्रा में हों जितनी मात्रा में उत्पादक वास्तव में इच्छा करते हैं। कई बार अनचाहे माल-सूची स्टॉक इकट्ठे हो जाते हैं, क्योंकि बाजार की परिस्थितियाँ अनुमान के विरुद्ध हो जाती है।

उदाहरण के लिए उत्पादक को आशा थी कि वह 1,000 वाशिंग मशीनें बेच सकेगा, किंतु माँग के अभाव के कारण वह वास्तव में 500 मशीनें ही बेच पाता है। इस स्थिति में शेष बची 500 मशीनों को अनचाहा माल-सूची स्टॉक (Undesired Inventory Stock) कहा जाएगा। उत्पादक के लिए इस स्टॉक का कोई महत्त्व नहीं है। यह केवल हानि (Loss) को प्रकट करता है।

सकल निवेश, शुद्ध निवेश तथा मूल्यह्रास की धारणा कि व्याख्या कीजिए 

(Gross Investment, Net Investment and The Concept of Depreciation) 

वर्ष के दौरान स्थिर परिसंपत्तियों अथवा माल-सूची स्टॉक को खरीदने के लिए किया गया खर्च सकल निवेश (Gross Investment) कहलाता है।

सकल निवेश = लेखा वर्ष के दौरान स्थिर परिसंपत्तियों को खरीदने पर व्यय + लेखा वर्ष के दौरान माल-सूची स्टॉक पर व्यय

नोटः उत्पादकों के पास बिना बिकी वस्तुओं के स्टॉक को स्वयं उत्पादकों द्वारा की गयी खरीद (Purchase) माना जाता है। तदनुसार, माल-सूची स्टॉक पर किए गए कुल व्यय का यह एक भाग बन जाता है।

सकल निवेश में घिसी-पिटी परिसंपत्तियों के स्थान पर नई परिसंपत्तियों को खरीदने के लिए किया गया व्यय भी सम्मिलित होता है। निःसंदेह, स्थिर परिसंपत्तियों का अनेक वर्षों तक बार-बार उपयोग किया जाता है। किंतु उनके उपयोग की अपनी जीवन अवधि (Life time) होती है। इनकी टूट-फूट (अथवा अप्रचलन अथवा आकस्मिक हानि) होने पर इनके पुनः स्थापन (Replacement) की आवश्यकता पड़ती है। स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्यह्रास (Depreciation) के कारण उनका पुनःस्थापन सकल निवेश का एक भाग होता है। किंतु इसके कारण पूँजी के विद्यमान स्टॉक में कोई शुद्ध वृद्धि नहीं होती। इससे केवल विद्यमान पूँजी स्टॉक बना रहता है।

यदि सकल निवेश से घिसी-पिटी स्थिर परिसंपत्तियों के पुनः स्थापन पर किये गये व्यय को घटा दिया जाए तो हमें शुद्ध निवेश ज्ञात हो जाता है। इस प्रकार सकल निवेश से स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्यह्रास (Depreciation) को घटाने से शुद्ध निवेश प्राप्त हो जाता है। निवेश के कारण पूँजी के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि होती है।

शुद्ध निवेश (Net Investment) = सकल निवेश – मूल्यह्रास (घिसी-पिटी स्थिर परिसंपत्तियों के पुनःस्थापन पर व्यय)

सकल निवेश (Gross Investment) = शुद्ध निवेश + मूल्यह्रास 

केवल शुद्ध निवेश के कारण ही पूँजी के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि होती है। मूल्यह्रास (सकल निवेश का एक भाग) से केवल घिसी-पिटी परिसंपत्तियों का पुनःस्थापन किया जाता है। इससे पूँजी के विद्यमान स्टॉक को बनाए रखने में सहायता प्राप्त होती है।

शुद्ध निवेश का महत्त्व बताओ(Significance of Net Investment):- 

शुद्ध निवेश से अभिप्राय पूँजी के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि से है। इससे उत्पादकों की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। इससे उत्पादन के पैमाने में वृद्धि होती है। तदनुसार उत्पादन का स्तर बढ़ता है। यह संवृद्धि तथा विकास का सूचक है। शुद्ध निवेश जितना अधिक होता है उतनी ही अधिक पूँजी के स्टॉक में वृद्धि होती है। रोजगार में वृद्धि करना सुविधाजनक हो जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि भारत जैसे देशों में शुद्ध पूँजी निर्माण से श्रम की बेरोजगारी कम होती है। इसके अतिरिक्त श्रम की प्रति इकाई पूँजी की अतिरिक्त उपलब्धता से श्रम की कार्य क्षमता/उत्पादकता में वृद्धि होता है। प्रति श्रमिक उत्पादन में वृद्धि की प्रवृत्ति पायी जाती है। इससे विकास की गति तीव्र होती है।

मूल्यह्रास से क्या अभिप्राय व इसके प्रकारों कि व्याख्या कीजिए (Concept of Depreciation):- 

जब स्थिर परिसंपत्तियों (जैसे- प्लांट तथा मशीनरी) का इस्तेमाल किया जाता है तो (i) सामान्य टूट-फूट तथा (ii) आकस्मिक हानि (नित्य-क्रम मरम्मत तथा रख-रखाव के अतिरिक्त) के कारण उनके मूल्य में कमी हो जाती है। उनका मूल्य तब भी घट जाता है जब प्रौद्योगिकी तथा माँग में परिवर्तन के कारण उनका अप्रचलन हो जाता है। (i) सामान्य टूट-फूट (Normal Wear and Tear) (ii) आकस्मिक हानि की सामान्य दर (Normal Rate of Accidental Damages) तथा (iii) प्रत्याशित अप्रचलन (Expected Obsolescence) के कारण स्थिर परिसंपत्तियों के उपयोग से मूल्य में होने वाली हानि को मूल्यह्रास (Depreciation) कहा जाता है।

मूल्यह्रास को स्थिर पूँजी का उपभोग (Consumption of Fixed Capital) भी कहा जाता है। इसका अर्थ उत्पादन की प्रक्रिया में स्थिर पूँजी के मूल्य का उपभोग या ह्रास(कमी) है।

मूल्यह्रास के कारण, कुछ समय के पश्चात स्थिर परिसंपत्तियों का पुनः स्थापन जरूरी हो जाता है। स्थिर परिसंपत्तियों के पुनः स्थापन हेतु फंड्स या कोषों का प्रावधान करना जरूरी हो जाता है। सामान्यतः इस प्रावधान का अनुमान वार्षिक आधार पर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए यदि एक मशीन 10,00,000 में खरीदी जाती है और इसके उपयोग की प्रत्याशित जीवन अवधि 10 वर्ष है तो फंड्स का वार्षिक प्रावधान (10 वर्ष के बाद मशीन का पुनः स्थापन करने हेतु) 10,00,000 ÷ 10 =₹ 1,00,000। इसे मूल्यह्रास आरक्षित कोष कहा जाता है।

प्रत्याशित अप्रचलन (Expected Obsolescence):-

प्रत्याशित अप्रचलन की अवधारणा का सविस्तार वर्णन जरूरी है। यह आवश्यक है कि ‘प्रत्याशित (अथवा पूर्वज्ञान) अप्रचलन’ तथा ‘अप्रत्याशित (अथवा अनपेक्षित) अप्रचलन’ में अंतर को समझ लिया जाए। प्रत्याशित अप्रचलन के दो घटक हैं:-

(i) प्रौद्योगिकी में परिवर्तन के कारण जब स्थिर परिसंपत्तियों का अप्रचलन हो जाता है तब उनके मूल्य में हानि होती है। उदाहरण: ब्लैक एवं व्हाइट (Black and White) TV बनाने वाला प्लांट तब अप्रचलित (Obsolete) हो जाता है जब रंगीन TV बनाने वाली प्रौद्योगिकी की सफल खोज हो जाती है।

(ii) माँग में परिवर्तन के कारण जब स्थिर परिसंपत्तियों का अप्रचलन हो जाता है तब भी उनके मूल्य में हानि होती है। उदाहरण: रबड़ के जूते बनाने वाला प्लांट तब अप्रचलित हो जाता है जब रबड़ के जूतों के स्थान पर चमड़े के जूतों की माँग होने लगती है।

बाजार की स्थितियों के ज्ञान तथा अनुभव के आधार पर उत्पादक प्रत्याशित अप्रचलन (Expected Obsolescence) के संबंध में प्रावधान बनाते हैं।

अप्रत्याशित अप्रचलन (Unexpected Obsolescence):- 

इसके दो कारण इस प्रकार हैं:-

(i) प्राकृतिक विपदाएँ (Natural Calamities) जैसे- भूकंप, बाढ़ तथा आग।

(ii) आर्थिक मंदी के कारण परिसंपत्तियों के बाजार मूल्य में गिरावट ।

पूँजीगत हानि :-स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में हानि जो कि अप्रत्याशित अप्रचलन के कारण होती है उसे पूँजीगत हानि (Capital Loss) कहा जाता है। यह हानि मूल्यह्रास अथवा मूल्यह्रास आरक्षित कोष का भाग नहीं होती।

मूल्यह्रास आरक्षित कोष के महत्त्व कि व्याख्या कीजिए(Significance of Depreciation Reserve Fund):-

मूल्यह्रास आरक्षित कोष का उद्देश्य उत्पादकों की घिसी-पिटी स्थिर परिसंपत्तियों का पुनः स्थापन करना है। यदि इस फण्ड की स्थापना नहीं की जाती है तो घिसी-पिटी परिसंपत्तियों का पुनःस्थापन नहीं हो सकता है।

अन्य बातें स्थिर रहने पर, यदि घिसी-पिटी परिसंपत्तियों का पुनःस्थापन नहीं किया जाता तो इसका अर्थ उत्पादकों के पूँजी स्टॉक का गिरना है जिसका आगे अर्थ उनकी उत्पादन क्षमता का घटना है। तदनुसार उत्पादन का स्तर गिरेगा। इसके साथ-साथ आय तथा रोजगार का स्तर भी गिरेगा। फलस्वरूप अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में पहुँच जाएगी। संभवतः यह निम्न स्तर संतुलन जाल (Low Level Equilibrium Trap) में फंस जाएगी: वह स्थिति जब निम्न आय के कारण माँग घटती है और माँग के घटने से उत्पादन घटता है तथा एक बार फिर आय घटती है।

स्टॉक तथा प्रवाह के अंतर को स्पस्ट् कजीए(Stock and Flow):- 

अर्थशास्त्र में पूँजी, आय, मुद्रा, बचत, निवेश, ब्याज आदि विस्तृत प्रयोग होने वाले शब्द हैं। इनमें से कुछ स्टॉक अवधारणाएँ हैं तथा अन्य प्रवाह अवधारणाएँ हैं। स्टॉक तथा प्रवाह में भेद करने के लिए जरूरी है कि इन शब्दों के अर्थ समझ लिए जाएँ।

(1) स्टॉक का अर्थ (Meaning of Stock): स्टॉक, समय के एक निश्चित बिंदु पर मापी जाने वाली मात्रा है। 01 जनवरी, 2025 को आपके बैंक खाते में ₹ 1,000 हो सकते हैं। 10 जनवरी, 2025 को आपके बैंक खाते में ₹5,000 हो सकते हैं। इन सभी मात्राओं को ‘स्टॉक’ कहा जाता है क्योंकि समय के एक विशेष बिंदु पर इन्हें मापा जाता है। पूँजी तथा मुद्रा का परिमाण स्टॉक के उल्लेखनीय उदाहरण हैं।

(2) प्रवाह का अर्थ (Meaning of Flow) :-

प्रवाह, समय की एक विशिष्ट अवधि में मापी जाने वाली मात्रा है। आप शायद ₹ 150 प्रतिमाह जेब खर्च प्राप्त करते हैं, आप शायद ₹5 प्रतिदिन कैंटीन में खर्च करते हैं। आपको शायद अपने बैंक जमा पर 5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज प्राप्त होता है। ये सब मात्राएँ ‘प्रवाह’ हैं क्योंकि इन्हें प्रति इकाई समय अवधि में मापा जाता है। (जैसे-एक घंटा, एक दिन, एक मास, एक वर्ष इत्यादि) । इसी प्रकार आय, व्यय, उत्पादन, उपभोग तथा ब्याज भी प्रवाह चरों के कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।

‘स्टॉक’ तथा ‘प्रवाह’ के कुछ और उदाहरण इस प्रकार हैं:-

स्टॉक (Stock)

प्रवाह (Flow)

1. संपत्ति (Wealth) 1. आय (Income)
2. श्रम बल  (Labour  Force) 2. मुद्रा का व्यय ( Expenditure of Money)
3. पूँजी (Capital) 3. पूँजी  निर्माण (Capital Formation)
4. एक देश में मुद्रा की पूर्ति / मात्रा (Supply/Quantity of Money in a Country) 4. एक देश में मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन (Change in the Supply of Money in a Country)
5. बैंक जमा (Bank Deposits) 5. पूँजी पर ब्याज (Interest on Capital)
6. छत की टंकी में पानी (Water in the overhead tank) 6. छत की टंकी से पानी का रिसाव (Leakage of water from the overhead tank)
7. मुंबई तथा दिल्ली के बीच की दूरी (Distance between Delhi and Mumbai) 7. दिल्ली से मुंबई जा रही एक कार की रफ्तार (Speed of a car going from Delhi to Mumbai)

स्टॉक तथा प्रवाह के बीच परस्पर निर्भरता (Mutual Dependence between Stock and Flow):-

चित्र 1 यह दर्शाता है कि 1 जनवरी, 2025 को आपके बचत बैंक खाते (Saving Bank Account) में ₹10,000 जमा हैं। यह आपकी बचत का स्टॉक है। इस खाते से क्षरण या वापसी (Withdrawals) अर्थात ₹500 प्रतिमाह एक प्रवाह अवधारणा है। इसी प्रकार ₹ 1,000 प्रतिमाह जमा (Deposit) भी एक प्रवाह अवधारणा है।

उल्लेखनीय बात यह है कि आपकी बचत का स्टॉक आपके बचत खाते में जमा के प्रवाह पर निर्भर करता है। इसी प्रकार, आपके क्षरण या वापसी का प्रवाह आपकी बचत के स्टॉक पर निर्भर करता है। अतः स्टॉक तथा प्रवाह में परस्पर निर्भरता पाई जाती है।

निबंधात्मक प्रश्न(Essay Type Questions) 

  1. मध्यवर्ती एवं अंतिम वस्तुओं में अंर्तभेद कीजिए तथा राष्ट्रीय आय के अध्ययन में इस भेद के महत्त्व की व्याख्या कीजिए।

Distinguish between intermediate and final goods and explain the importance of this distinction in the study of national income.

  1. निवेश से क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए ।

What is meant by investment? Explain its various types.

  1. उदाहरणों सहित स्टॉक और प्रवाह चरों के बीच अंतर बतलाएँ।

Distinguish between stock and flow variables with examples.

  1. ‘निवेश’ और ‘पूँजी’ के बीच कौन-सा स्टॉक तथा कौन-सा प्रवाह चर है? उदाहरण सहित व्याख्या करें।

Between ‘investment’ and ‘capital’, which is a stock and which is a flow variable? Explain with an illustration.

[संकेत: पूँजी एक स्टॉक चर है क्योंकि इसे एक समय बिंदु पर मापा जाता है। हम अकसर देखते हैं कि वर्ष के अंत में उत्पादक अपने स्टॉक का अनुमान लगाते हैं, जो एक समय बिंदु अथवा एक विशेष तिथि की ओर संकेत करता है।

किसी फर्म के पास 31 मार्च, 2024 को 10 मशीनों का स्टॉक है और 31 मार्च, 2025 को 15 मशीनें हैं, तब इसने वर्ष के निवेश की परिभाषा से ही अर्थ है एक लेखा वर्ष में पूँजी के स्टॉक में होने वाली वृद्धि । इसको वर्ष के लिए मापा जाता है। यदि दौरान अपने पूँजी के स्टॉक में 5 मशीनों की वृद्धि की है। यह इसका निवेश है । ]

 

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