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अध्याय 3 -आँकड़ों के संकलन की 

(Census and Sample Methods of Collection of Data) 

किसी कॉलेज में 2,000 विद्यार्थी हैं। एक अनुसंधानकर्ता उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि (Family Background) के बारे में अनुसंधान (अथवा आँकड़े एकत्रित) करना चाहता है।   इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह दो विधियों का प्रयोग कर सकता है। एक विधि तो यह है कि वह सभी 2,000 विद्यार्थियों के पारिवारिक पृष्ठभूमि संबंधी आँकड़े एकत्रित करे,सांख्यिकी में इस  विधि को जनगणना विधि ( Census Method) कहते हैं।

जबकि दूसरी विधि यह है कि अनुसंधानकर्ता सभी 2,000 विद्यार्थियों के संबंध में सूचना एकत्रित न करके केवल कुछ विद्यार्थियों के संबंध में सूचना एकत्रित करे जो सबका प्रतिनिधित्व करते हैं।दूसरी विधि को प्रतिदर्श विधि (Sample Method) कहते हैं।

जनगणनाऔर ‘प्रतिदर्श’ की अवधारणाएँ (Concepts of ‘Census’ and ‘Sample’) 

अध्याय 2 में समग्र अथवा जनसंख्या की अवधारणाओं का विवेचन किया गया है। ‘जनगणना’ तथा ‘प्रतिदर्श’ अवधारणाओं का विस्तृत अध्ययन करने से पहले इनका संक्षेप में विवरण देना लाभदायक होगा।

सांख्यिकी में किसी विषय से संबंधित सभी मदों के उस कुल समूह को समग्र ( Universe) या जनसंख्या (Population) कहा जाता है, जिसके विषय में जानकारी प्राप्त करनी है।

साधारणतया जनसंख्या शब्द का प्रयोग किसी देश में एक निश्चित समय में रहने वाले कुल व्यक्तियों के लिए किया जाता है। जैसे 2010-11 में भारत की जनसंख्या 121.02 करोड़ के लगभग थी।

सांख्यिकी में जनसंख्या शब्द का प्रयोग विशेष अर्थों में किया जाता है। सांख्यिकी में जनसंख्या उन सभी मदों के समूह को कहा जाता है जिनके विषय में हम सूचना एकत्रित करना चाहते हैं।( In statistics the term population means the entire body of items about which we want to obtain information.)

उदाहरण के लिए, आपके कॉलेज में 2,000 विद्यार्थी हैं। यदि अन्वेषण का संबंध सभी 2,000 विद्यार्थियों से है तो इन विद्यार्थियों के इस समूह को जनसंख्या (Population) कहा जाएगा। जनसंख्या की एक इकाई को मद ( Item ) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, चीनी का 1 कारखाना मद कहलाएगा। परंतु मदों के कुल समूह (अर्थात् 10 कारखाने) को जनसंख्या कहा जाएगा।

सांख्यिकीय अनुसंधान की दो विधियाँ हैं:-

(1) जनगणना विधि (Census Method) 

जनगणना विधि वह विधि है जिसमें किसी अनुसंधान से संबंधित समग्र या जनसंख्या की प्रत्येक मद के संबंध में आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं तथा इनके आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। (Census method is that method in which data are collected about every item of the universe or population relating to the problem under investigation and conclusions are drawn on their basis. )

उदाहरण के लिए, आप मारुति कारों के रंगों के विषय में जनगणना विधि द्वारा अनुसंधान करना चाहते हैं तो आपको सारे भारत में अब तक जितनी भी मारुति कारें बेची गई हैं उनमें से प्रत्येक के रंग के विषय में आँकड़े प्राप्त करने पड़ेंगे।

भारत में जनगणना, उत्पादन गणना आदि के लिये जनगणना विधि (Census Method) का प्रयोग किया जाता है।

जनगणना विधि समग्र / जनसंख्या की पूर्ण गणना को दर्शाती है । जनगणना विधि सांख्यिकी जांच का सबसे उपयुक्त उदाहरण है। देश की जनसंख्या के आकलन के लिए, घर-घर जाकर पूछताछ की जाती है और यहां तक कि सड़क के किनारे रहने वालों से भी संपर्क किया जाता है। जनसंख्या की जनगणना हर दसवें वर्ष की जाती है। पिछली जनगणना फरवरी, 2011 में की गई थी।

2011 की भारत की जनगणना के अनुसार, भारत जनसंख्या के आकार के संबंध में, केवल चीन को छोड़कर, संसार का दूसरा सबसे बड़ा देश है।

जनगणना विधि की उपयुक्तता (Suitability of Census Method) 

जनगणना विधि ऐसे अनुसंधानों के लिए उपयुक्त है:

(1) जिनका क्षेत्र सीमित हो ।

(2) जिनमें विभिन्न गुणों वाली इकाई हो ।

(3) जिनमें गहन अध्ययन की आवश्यकता हो तथा

(4) जिनमें शुद्धता तथा विश्वसनीयता की आवश्यकता हो ।

गुण (Merits) 

जनगणना विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं:

(1) विश्वसनीयता तथा शुद्धता (Reliable and Accurate): जनगणना विधि द्वारा प्राप्त आँकड़ों में अधिक विश्वसनीयता तथा शुद्धता होती है क्योंकि प्रत्येक मद के संबंध में आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं।

(2) पक्षपात की कम संभावना (Less Biased) : जनगणना विधि द्वारा आँकड़े एकत्रित करने में पक्षपात की संभावना कम हो जाती है। इसके अंतर्गत अनुसंधानकर्ता केवल उन्हीं मदों से संबंधित आँकड़ों का संकलन नहीं करता जो उसके अनुसार उचित हों बल्कि सभी मदों से संबंधित आँकड़ों का संकलन किया जाता है।

( 3 ) विस्तृत सूचना (Extensive Information): जनगणना विधि द्वारा प्रत्येक मद के विषय में अनेक बातों का पता चलता है। उदाहरण के लिए, जनगणना से केवल लोगों की संख्या के विषय में ही पता नहीं चलता बल्कि उनकी आयु, व्यवसाय, आय इत्यादि के विषय में भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। इसलिए इस विधि द्वारा विस्तृत सूचना प्राप्त होती है।

(4) विभिन्न विशेषताओं का अध्ययन (Study of Diverse Characteristics): जब किसी सांख्यिकी समूह या जनसंख्या की मदें एक दूसरे से काफी भिन्न होती हैं तथा प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग करना कठिन होता है तो वहाँ इस प्रणाली का प्रयोग लाभदायक होता है।

(5) मिश्रित अनुसंधान का अध्ययन ( Study of Complex Investigation): यदि अनुसंधान की प्रकृति इस प्रकार की है कि सांख्यिकी समूह की प्रत्येक मद का अध्ययन करना आवश्यक है तो इस विधि का प्रयोग ही लाभदायक होगा। उदाहरण के लिए, जनगणना इसी विधि द्वारा ही की जा सकती है।

(6) अप्रत्यक्ष जाँच ( Indirect Investigation ) : जनगणना विधि ऐसी समस्याओं के अध्ययन के लिए भी उपयोगी है जिनका अध्ययन प्रत्यक्ष रूप से सांख्यिकी के अंतर्गत नहीं हो सकता जैसे बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार आदि ।

अवगुण (Demerits) 

इस विधि के कई अवगुण भी हैं जो निम्न प्रकार हैं:

(1) खर्चीली विधि (Costly Method): जनगणना विधि एक खर्चीली विधि है। इसके लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है। इसलिए इस विधि को सरकार या बड़ी संस्थाएं ही अपना सकती हैं।

(2) अधिक मानवशक्ति (Large Manpower): जनगणना विधि के लिए अत्यधिक मानवशक्ति की आवश्यकता होती है। गणनाकारों की एक बड़ी संख्या के लिए प्रशिक्षण आवश्यक हो जाता है जो कि एक जटिल प्रक्रिया है ।

(3) विशाल अन्वेषण के संबंध में उपयुक्त नहीं है (Not Suitable for Large Investigations): यदि सांख्यिकी समूह बहुत ही विशाल हैं तो सभी मदों से संपर्क करना संभव नहीं होता। इस स्थिति में जनगणना विधि उपयोगी नहीं होती ।

2.प्रतिदर्श विधि(Sample Method) 

प्रतिदर्श विधि वह विधि है जिसमें प्रतिदर्श (Sample) अर्थात् किसी समग्र का प्रतिनिधित्व करने वाले छोटे समूह से संबंधित आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं तथा उनसे निष्कर्ष निकाले जाते हैं। (Sample method is that method in which data collected about the sample or a group of items taken from the population for examination and conclusions are drawn on their basis.)

हम अपने दैनिक जीवन में इस विधि का प्रयोग करते रहते हैं। एक गृहिणी चावल के दो-तीन दाने देखकर यह तय कर लेती है कि चावल कच्चे हैं या पक गए हैं। एक डॉक्टर रक्त की कुछ बूंदों का परीक्षण करके एक व्यक्ति के ब्लड ग्रुप (Blood Group) का ज्ञान प्राप्त कर लेता है।

प्रतिदर्श विधि की उपयुक्तता (Suitability of Sample Method) 

प्रतिदर्श प्रणाली निम्नलिखित दशाओं के लिए अधिक उपयुक्त होती हैं:

(1) जब अनुसंधान का क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत हो ।

(2) जब उच्च स्तर की शुद्धता की आवश्यकता न हो।

(3) जब विभिन्न इकाइयों के अत्यधिक परीक्षण की आवश्यकता न हो ।

(4) जब समग्र की सभी इकाइयाँ लगभग एक जैसी हों ।

गुण (Merits) 

प्रतिदर्श विधि के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं:

(1) कम खर्चीली (Economical): सर्वेक्षण की प्रतिदर्श विधि कम खर्चीली होती है। इसमें धन व मेहनत की बचत होती है क्योंकि समग्र की केवल कुछ ही इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।

(2) समय की वचत (Saving of Time ) : प्रतिदर्श प्रणाली के द्वारा आँकड़ों का अधिक शीघ्रतापूर्ण संकलन किया जा सकता है क्योंकि मदों की संख्या कम होती है। इस प्रकार समय की बचत होती है।

(3) गलती की पहचान (Identification of Error) : इस विधि में केवल सीमांत मदों का अध्ययन किया जाता है इसलिए गलती की पहचान करना आसान होता है। इसी कारण से यह विधि अधिक विश्वसनीय होती है।

(4) विशाल अन्वेषण (Large Investigation): विशाल अन्वेषणों की स्थिति में प्रतिदर्श विधि अधिक उपयोगी होती है क्योंकि जनगणना विधि के प्रयोग पर बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ेगा।

(5) प्रशासनिक सुविधा (Administrative Convenience ) : इस विधि में सर्वेक्षण का संगठन तथा प्रशासन अधिक सुविधापूर्वक ढंग से किया जा सकता है। अधिक निपुण तथा योग्य प्रश्नकर्ता नियुक्त किये जा सकते हैं।

(6) अधिक वैज्ञानिक ( More Scientific ) : रोनाल फिशर के अनुसार, प्रतिदर्श विधि अधिक वैज्ञानिक होती है क्योंकि आँकड़ों की अन्य न्यादर्शों द्वारा जाँच की जा सकती है।

अवगुण (Demerits) 

प्रतिदर्श विधि के मुख्य अवगुण निम्नलिखित हैं:

(1) पक्षपातपूर्ण (Partial):

प्रतिदर्श विधि में पक्षपात की संभावना होती है क्योंकि अनुसंधानकर्ता

केवल उन्हीं मदों को प्रतिदर्श के रूप में चुन सकता है जो उसे पसंद होती हैं।

(2) अशुद्ध निष्कर्ष (Wrong Conclusions): इस विधि में यदि गलत प्रतिदर्श चुने जातेहैं तो निष्कर्ष अशुद्ध निकलेंगे।

(3) प्रतिनिधि प्रतिदर्श के चुनाव में कठिनाई (Difficulty in Selecting Representative Sample ) :

एक अनुसंधानकर्ता के लिए कई बार ऐसे प्रतिदर्श का चुनाव कठिन हो जाता है जो समग्र का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व करता हो ।

(4) सैम्पल बनाने में कठिनाई (Difficulty in Framing a Sample) : कई बार सांख्यिकी समूह इतना विविध होता है कि प्रतिदर्श बनाना संभव नहीं होता ।

(5) विशिष्ट ज्ञान (Specialised Knowledge ) : प्रतिदर्श की विधि एक तकनीकी विधि है । समग्र में से उपयुक्त प्रतिदर्श लेने के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। वे व्यक्ति जिन्हें प्रतिदर्श की सभी विधियों का ज्ञान होता है, आसानी से पर्याप्त नहीं होते हैं।

प्रतिदर्श के आवश्यक तत्त्व (Essentials of a Sample) 

एक सैम्पल (प्रतिदर्श) में निम्नलिखित तत्त्व होने चाहिए तभी निष्पक्ष और यथार्थवादी निष्कर्ष निकाले जा सकेंगे:

(1) प्रतिनिधित्व ( Representative): प्रतिदर्श इस प्रकार का होना चाहिए कि वह सांख्यिकी समूह की सभी विशेषताओं का पूर्ण प्रतिनिधित्व करे। यह तभी संभव हो सकता है जब सांख्यिकी समूह की प्रत्येक इकाई को प्रतिदर्श के रूप में चुने जाने का समान अवसर प्राप्त हो ।

(2) स्वतंत्र (Independent ) : समग्र की सभी इकाइयाँ एक-दूसरे से स्वतंत्र होनी चाहिए । इससे अभिप्राय यह है कि किसी एक इकाई का प्रतिदर्श में शामिल होना दूसरी पर निर्भर नहीं होना चाहिए।

(3) सजातीयता (Homogeneity): यदि किसी सांख्यिकी समूह में दो या दो से अधिक सैम्पल छाँटे जाएँ तो उनमें समानता होनी चाहिए अर्थात् उनकी विशेषताएँ एक जैसी होनी चाहिए।’

(4) पर्याप्तता (Adequacy): प्रतिदर्श के रूप में चुनी जाने वाली इकाइयों की संख्या पर्याप्त होनी चाहिए तभी विश्वसनीय निष्कर्ष निकाले जाएंगे।

प्रतिदर्श की विधियाँ(Methods of Sampling) 

प्रतिदर्श की विधियों या तकनीकों को मुख्य रूप में निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है:-

(1) यादृच्छिक प्रतिदर्श (Random)

(2) सविचार प्रतिदर्श (Purposive Sampling)

(3) स्तरित प्रतिदर्श (Stratified Sampling)

(4) व्यवस्थित प्रतिदर्श (Systematic Sampling)

(5) कोटा प्रतिदर्श (Quota Sampling)

(6) सुविधानुसार प्रतिदर्श (Convenience Sampling)

(1) यादृच्छिक प्रतिदर्श (Random Sampling) 

यादृच्छिक प्रतिदर्श वह विधि है जिसके अंतर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई के प्रतिदर्श (Sample) के रूप में चुने जाने के समान अवसर होते हैं। (Random sampling is that method in which each item of the universe has equal chance of being selected in the sample.) इस विधि में प्रत्येक इकाई के प्रतिदर्श में शामिल होने की समान संभावना होती है क्योंकि इकाइयों का चुनाव आकस्मिक ढंग से किया जाता है। प्रतिदर्श में कौन-सी इकाई शामिल होगी और कौन-सी नहीं, इस बात का निर्णय अनुसंधानकर्ता अपनी इच्छा से नहीं करता बल्कि इकाइयाँ चुनने का काम पूर्ण रूप से अवसर या दैव (Chance) पर छोड़ दिया जाता है। यह विधि वहाँ अधिक उपयुक्त होती है जहाँ समग्र की इकाइयाँ समरूप ( Homogeneous) होती हैं। यह विधि पक्षपात रहित तथा कम खर्चीली है । यादृच्छिक प्रतिदर्श के अनुसार प्रतिदर्श चुनने की मुख्य विधियाँ अग्रलिखित हैं:

(i) लॉटरी विधि (Lottery Method):- इस विधि में समग्र की सभी इकाइयों की पर्चियाँ बना ली जाती हैं। एक निष्पक्ष व्यक्ति या अनुसंधानकर्ता स्वयं आँखें बंद करके उतनी पर्चियाँ उठा लेता है जितनी इकाइयाँ प्रतिदर्श में शामिल की जानी होती हैं।

(ii) यादृच्छिक संख्याओं की तालिकाएँ (Tables of Random Numbers):- कई विद्वानों ने संख्याओं की सारणियों का निर्माण किया है। इनकी सहायता से प्रतिदर्श चुनने में सहायता मिलती है। इन विभिन्न सारणियों में टिप्पट तालिका (Tippett’s Table) अधिक प्रसिद्ध तथा प्रचलित है। टिप्पट ने 41,600 अंकों के प्रयोग से 10,400 चार-चार अंकों की संख्याओं का चुनाव किया है। इस विधि के अनुसार पहले समग्र की सभी मदों को क्रमबद्ध लिखा जाता है। इसके पश्चात् टिप्पट तालिका (Tippett’s Table) की सहायता से जितने प्रतिदर्श चाहिएं उनके अनुसार संख्याओं का चुनाव कर लिया जाता है।

गुण (Merits) 

(1) इस विधि में पक्षपात की संभावना नहीं होती ।

(2) समग्र की प्रत्येक इकाई को चुनाव का समान अवसर प्राप्त होता है ।

(3) प्रतिदर्शो की शुद्धता का अनुमान लगाया जा सकता है।

(4) यह एक सरल विधि है जिसमें अनुसंधानकर्ता के समय तथा मेहनत की बचत होती है।

अवगुण (Demerits) 

(1) यदि प्रतिदर्श का आकार छोटा है तो इस विधि द्वारा सांख्यिकी समूह का उचित प्रतिनिधित्व नहीं होता।

(2) यदि सांख्यिकी समूह में कुछ इकाइयाँ इतनी महत्त्वपूर्ण हैं कि उनका प्रतिदर्श में शामिल होना आवश्यक है तो यह विधि उपयुक्त नहीं होगी।

यादृच्छिक प्रतिदर्श तथा अव्यवस्थित प्रतिदर्श में अंतर 

(Difference between Random Sampling and Haphazard Sampling) 

1.यादृच्छिक प्रतिदर्श (Random Sampling) 

  1. यह एक शुद्ध तकनीक पर आधारित है जिसमें चुनाव तथा यादृच्छिक प्रतिदर्श के सभी नियम लागू होते हैं।
  2. यादृच्छिक प्रतिदर्श में समग्र की प्रत्येक व्यक्तिगत इकाई के प्रतिदर्श में शामिल होने की समान संभावना होती है।

अव्यवस्थित प्रतिदर्श (Haphazard Sampling) 

  1. इस विधि में प्रतिदर्श का कोई भी नियम लागूनहीं होता है।
  2. अव्यवस्थित प्रतिदर्श में प्रत्येक व्यक्तिगत इकाई के प्रतिदर्श में शामिल होने की समान संभावना नहीं होती है।

यादृच्छिक प्रतिदर्श और मतदान केंद्र निकास (Random Sampling and Exit Polls) 

मतदान केंद्र निकास यादृच्छिक प्रतिदर्श का एक मनोरंजक उदाहरण है। इसका क्या अर्थ है ? इसका अर्थ मतदान केंद्रों से बाहर आ रहे लोगों की एक निम्न प्रतिशतता से है जिनसे संपर्क करके, पूछा जाता है कि उन्होंने अपना मत किसे दिया। इस प्रकार एकत्रित सूचना के प्रतिदर्श से, चुनाव लड़ रहे विभिन्न प्रत्याशियों की विजय के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है।

यादृच्छिक प्रतिदर्श का प्रमुख गुण 

(The Principal Merit of Random Sampling)

समग्र की प्रत्येक इकाई को चुनाव का समान अवसर या समान प्राथमिकता प्राप्त होती है।

(2) सविचार प्रतिदर्श (Purposive or Deliberate Sampling) 

सविचार प्रतिदर्श विधि वह विधि है जिसके अंतर्गत अनुसंधानकर्ता समग्र में से अपनी इच्छानुसार प्रतिदर्श के रूप में ऐसी इकाइयाँ चुन लेता है जो उसकी राय में समग्र का प्रतिनिधित्व करती (Purposive sampling is that method in which the investigator himself makes the choice of the sample items which in his opinion are best representative of the universe.) इस विधि में प्रतिदर्श का चुनाव किसी आकस्मिक विधि द्वारा नहीं किया जाता बल्कि अनुसंधानकर्ता की इच्छानुसार किया जाता है।

यह विधि उस अनुसंधान के लिए महत्त्वपूर्ण है जिसमें कुछ इकाइयाँ इतनी महत्त्वपूर्ण हों कि उनको प्रतिदर्श में शामिल करना आवश्यक हो । मान लीजिए यदि भारतवर्ष में लोहा-इस्पात उद्योग का सर्वेक्षण करना हो तो यह टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी को शामिल किए बिना अधूरा रह जाएगा। प्रतिदर्श की यह विधि पक्षपातपूर्ण हो सकती है, इसलिए इसमें शुद्धता की संभावना कम हो सकती है।

गुण (Merits) 

(1) यह विधि कम खर्चीली है।

(2) यह विधि सरल है।

(3) यह विधि ऐसे क्षेत्रों में अधिक उपयोगी है जिनमें लगभग एक-सी इकाइयाँ हों या जहाँ

कुछ इकाइयाँ इतनी महत्त्वपूर्ण हों कि उनका शामिल करना आवश्यक हो।

अवगुण (Demerits)

(1) पक्षपात की अधिक संभावना होती है।

(2) पक्षपात की संभावना के फलस्वरूप इस विधि की विश्वसनीयता संदेहपूर्ण हो जाती है।

 (3) स्तरित या मिश्रित प्रतिदर्श (Stratified or Mixed Sampling) 

प्रतिदर्श की यह विधि उस समय अपनाई जाती है जब किसी समग्र की इकाइयाँ एक समान न होकर विभिन्न विशेषताओं वाली होती हैं। स्तरित प्रतिदर्श विधि के अंतर्गत समग्र की इकाइयों को उनकी विशेषताओं के अनुसार विभिन्न भागों (Strata) में बाँट लिया जाता है तथा प्रत्येक भाग से यादृच्छिक प्रतिदर्श की विधि द्वारा अलग-अलग प्रतिदर्श का चुनाव किया जाता है जो उस भाग का प्रतिनिधित्व करते हों ।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि कक्षा XI में 50 छात्राएँ हैं । उनमें से 30 ने कक्षा X में गणित का विषय और 20 ने गृह विज्ञान (Home Science) का विषय पढ़ा था। हम इन्हें दो भागों में बाँट लेंगे। (i) गणित पढ़ने वाली 30 छात्राएँ। (ii) गृह विज्ञान पढ़ने वाली 20 छात्राएँ। प्रत्येक भाग में से यादृच्छिक प्रतिदर्श की विधि द्वारा आवश्यकतानुसार अलग-अलग प्रतिदर्श छाँट लिए जाएँगे।

मान लीजिए हमने कुल छात्राओं में से पाँच छात्राओं को प्रतिदर्श के रूप में चुनना है। इसके दो उपाय हो सकते हैं। एक उपाय यह है कि प्रत्येक भाग की कुल इकाइयों के अनुपात में प्रतिदर्श चुने जायें अर्थात् पहले भाग में से 3 तथा दूसरे भाग में से 2 छात्राओं को चुना जाए। दूसरा उपाय यह है कि प्रतिदर्श का चुनाव बिना किसी अनुपात के किया जाए। उदाहरण के लिए, गणित पढ़ने वाली छात्राओं के सांख्यिकी समूह में से 4 तथा गृह विज्ञान पढ़ने वाली छात्राओं के सांख्यिकी समूह में से एक छात्रा का चुनाव किया जाये। इस विधि को गैर-अनुपातिक (Non-Proportional) विधि कहा जाता है।

स्तरित विधि को मिश्रित विधि भी कहा जाता है क्योंकि यह विधि सविचार प्रतिदर्श (Purposive Sampling) तथा यादृच्छिक प्रतिदर्श (Random Sampling) का मिश्रण है। इस विधि में समग्र का विभिन्न भागों में विभाजन किसी गुण विशेष के आधार पर सविचार द्वारा होता है | परंतु विभिन्न भागों में से प्रतिदर्श का चुनाव यादृच्छिक प्रतिदर्श विधि द्वारा किया जाता है।

गुण (Merits)

स्तरित प्रतिदर्श का प्रमुख गुण (The Principal Merit of Stratified Sampling)

(1) इस विधि में इकाइयों के अधिक प्रतिनिधित्व की संभावना होती है।

(2) इस विधि में विभिन्न स्तर के तत्त्वों के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन संभव होता है।

(3) यादृच्छिक प्रतिदर्श की यह विधि विश्वस्तरीय और अर्थपूर्ण परिणाम देती है ।

अवगुण (Demerits)

(1) इस विधि का क्षेत्र सीमित है क्योंकि यह विधि तभी अपनाई जा सकती है जब समग्र तथा उनके विभिन्न भागों की जानकारी हो ।

(2) यदि समग्र को विभिन्न भागों में उचित प्रकार से नहीं बाँटा गया तो पक्षपात की संभावना हो सकती है।

(3) यदि जनसंख्या का आकार बहुत छोटा है तो उसे और अधिक छोटे-छोटे भागों में बाँटना कठिन होता है।

(4) व्यवस्थित प्रतिदर्श (Systematic Sampling) 

व्यवस्थित प्रतिदर्श विधि में समग्र की इकाइयों को संख्यात्मक, भौगोलिक अथवा वर्णात्मक (Alphabetical) आधार पर क्रमबद्ध कर लिया जाता है। इनमें से प्रतिदर्श की पहली इकाई का चुनाव करके यादृच्छिक प्रतिदर्श विधि द्वारा प्रतिदर्श प्राप्त कर लिया जाता है। उदाहरण के लिए, 100 विद्यार्थियों में से 10 चुनने हैं तो इन्हें संख्यात्मक आधार पर क्रमबद्ध करके प्रत्येक दसवें विद्यार्थी को प्रतिदर्श में शामिल किया जाएगा। यदि पहला प्रतिदर्श 5वीं (5th) संख्या है तो बाकी संख्याएँ 15वीं, 25वीं, 35वीं, 45वीं, 55वीं, 65वीं, 75वीं, 85वीं, तथा 95वीं होगी। यह विधि यादृच्छिक प्रतिदर्श विधि का ही एक रूप है।

इस विधि में समग्र की प्रत्येक इकाई को चुनाव का समान अवसर या समान प्राथमिकता प्राप्त नहीं होती ।

गुण (Merits)

(1) यह एक सरल प्रणाली है। इसके द्वारा प्रतिदर्श प्राप्त करने आसान होते हैं।

(2) इस प्रणाली में पक्षपात की संभावना कम होती है।

अवगुण (Demerits) 

व्यवस्थित प्रतिदर्श का प्रमुख अवगुण (The Principal Demerit of Systematic Sampling)

(1) इस विधि में प्रत्येक इकाई को चुनाव का समान अवसर प्राप्त नहीं होता क्योंकि पहली

इकाई का चुनाव यादृच्छिक प्रतिदर्श के आधार पर किया जाता है।

(2) यदि सभी इकाइयों की विशेषताएं समान हैं तो निष्कर्ष प्राप्त नहीं होंगे।

(5) कोटा या अभ्यंश प्रतिदर्श (Quota Sampling) 

प्रतिदर्श की अभ्यंश विधि में जनसंख्या को इकाइयों की विशेषताओं के आधार पर कई भागों में बाँट दिया जाता है। इन विभिन्न भागों का कुल जनसंख्या में अनुपात निर्धारित कर लिया जाता है। इसके गणकों (Enumerators) को यह बता दिया जाता है कि उन्हें किस भाग में से कितनी इकाइयाँ चुननी हैं। इस प्रकार प्रतिदर्श की इकाइयों का अभ्यंश या कोटा निश्चित कर दिया जाता है। कोटा निश्चित करने के बाद गणक को यह अधिकार होता है कि प्रत्येक भाग में से निर्धारित कोटे के बराबर इकाइयों का चुनाव स्वयं करें। इस प्रकार इस विधि में गणक को प्रतिदर्श चुनने का पूरा अधिकार होता है।

यह विधि कम खर्चीली होती है। परंतु इसमें पक्षपात की संभावना अधिक होती है तथा निष्कर्ष की विश्वसनीयता की जाँच की भी कम संभावना होती है।

इस विधि के अंतर्गत समग्र का विभिन्न भागों में विभाजन किसी गुण विशेष के आधार पर होता है।

(6) सुविधानुसार प्रतिदर्श (Convenience Sampling) 

इस विधि में अनुसंधानकर्ता को इस बात की स्वतंत्रता होती है कि उसे जो तरीका सुविधाजनक मालूम पड़ता है उसी के अनुसार प्रतिदर्श का चुनाव करना है। उदाहरण के लिए, अनुसंधानकर्ता कॉलेज की प्रविवरण पत्रिका (Prospectus ) में प्राध्यापकों की सूची देखकर प्रतिदर्श का चुनाव कर लेता है तथा चुने हुए प्राध्यापकों से संपर्क स्थापित करता है। यह विधि कम खर्चीली तथा सरल है। परंतु अवैज्ञानिक और अविश्वसनीय है। इस प्रणाली में गणकों पर निर्भरता बढ़ जाती है।

प्रतिदर्श सांख्यिकी की विश्वसनीयता के दो आवश्यक तत्त्व (Two Basic Elements of Reliablity of Sampling Data)

(i) समग्र विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रतिदर्श का आकार पर्याप्त होना चाहिए।

(ii) प्रतिदर्श का चुनाव संगणकों के वैयक्तिक पक्षपात से स्वतंत्र होना चाहिए।

प्रतिदर्श सांख्यिकी की विश्वसनीयता (Reliability of Sampling Data)

प्रतिदर्श सांख्यिकी की विश्वसनीयता से यह अभिप्राय है कि प्रतिदर्श (Sample) समग्र (Universe) का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं । प्रतिदर्श की विश्वसनीयता मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है:-

1.प्रतिदर्श का आकार ( Size of the Sample) :-

प्रतिदर्श की विश्वसनीयता प्रतिदर्श के आकार पर निर्भर करती है। यदि प्रतिदर्श का आकार बहुत कम होगा तो वह समग्र का ठीक प्रकार से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकेगा। इसके फलस्वरूप उसके आधार पर निकाले गए निष्कर्षों में विश्वसनीयता का अभाव होगा ।

2.प्रतिदर्श की विधि (Method of Sampling):-

यदि प्रतिदर्श की विधि सरल तथा व्यापक नहीं होगी, तो समग्र का उचित प्रतिनिधित्व नहीं होगा। इसका परिणाम यह होगा कि प्रतिदर्श पर आधारित निष्कर्ष विश्वसनीय नहीं होंगे।

3.सूचकों तथा प्रगणकों में पक्षपात की भावना (Bias of Correspondents and Enumerators):-

यदि सूचकों या प्रगणकों में पक्षपात की भावना होगी तो प्रतिदर्श संबंधी आँकड़े विश्वसनीय नहीं होंगे।

4.प्रगणकों का प्रशिक्षण (Training of Enumerators) :-

प्रतिदर्श की विश्वसनीयता प्रगणकों के प्रशिक्षण पर भी निर्भर करती है। यदि प्रगणक प्रशिक्षित नहीं हैं अर्थात् अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ नहीं हैं तो प्रतिदर्श में विश्वसनीयता का अभाव होगा ।

जनगणना तथा प्रतिदर्श विधियाँ: एक तुलनात्मक दृष्टिकोण (Census and Sample Methods: A Comparative Look)

सर्वेक्षण की जनगणना तथा प्रतिदर्श विधियों का तुलनात्मक अध्ययन निम्नलिखित ढंग से किया जा सकता है:

(1)क्षेत्र ( Coverage ) :-

जनगणना विधि में किसी समग्र की सभी मदों के संबंध में सूचना एकत्रित की जाती है। इसके विपरीत प्रतिदर्श विधि में समग्र की केवल कुछ मदों (या प्रतिदर्श) जो समग्र का प्रतिनिधित्व करती हैं, के संबंध में सूचना एकत्रित की जाती है।

(2) उपयुक्तता (Suitability ) :-

जनगणना विधि उन अनुसंधानों के लिए अधिक उपयुक्त है जहाँ अनुसंधान का क्षेत्र सीमित है। इसके विपरीत प्रतिदर्श विधि का उपयोग बहुत अधिक मदों वाले समग्र तथा उन सभी क्षेत्रों में उपयुक्त होगा जहाँ अनुसंधान का क्षेत्र बड़ा है।

(3) शुद्धता (Accuracy):-

जनगणना विधि द्वारा एकत्रित की गई सूचना में अधिक विश्वसनीयता तथा शुद्धता होती है क्योंकि समग्र की प्रत्येक इकाई का गहन अध्ययन किया जाता है। इसकी तुलना में प्रतिदर्श विधि द्वारा एकत्रित की गई सूचना में शुद्धता तथा विश्वसनीयता कम होती है क्योंकि समग्र में केवल कुछ इकाइयों का अध्ययन किया जाता है परंतु प्रतिदर्श विधि में मदों की संख्या कम होने के कारण गलती का पता आसानी से लगाया जा सकता है इसलिये प्रतिदर्श विधि जनगणना की विधि की तुलना में अधिक विश्वसनीय हो सकती है ।

(4) लागत (Cost):-

जनगणना विधि की तुलना में प्राय: प्रतिदर्श विधि में धन और श्रम कम लगता है। इसका कारण यह है कि जनसंख्या में से प्रतिदर्श का आकार जितना कम होगा उनके अन्वेषण की लागत उतनी ही कम होगी ।

(5) समय ( Time ) :-

जनगणना विधि में समय अधिक लगता है तथा निष्कर्ष निकालने में काफी विलंब हो जाता है। इसके विपरीत प्रतिदर्श विधि में समय कम लगता है तथा निष्कर्ष शीघ्रतापूर्वक प्राप्त हो जाते हैं।

(6) मदों का स्वरूप ( Nature of Items) :-

जनगणना विधि उस स्थिति में उपयोगी होती है जिनमें समग्र की मदें विजातीय होती हैं अर्थात् उनमें समानता नहीं पाई जाती। इसके विपरीत प्रतिदर्श विधि वहाँ पर उपयोगी होती है जहाँ समग्र की मदों में समानता पाई जाती है अर्थात् मदें सजातीय होती हैं। कुछ दशाओं में, जैसे यदि जाँच के दौरान ही मदों के नष्ट होने का डर होता है तो केवल प्रतिदर्श विधि द्वारा ही सर्वेक्षण किया जा सकता है। इस प्रकार की मदों का सर्वेक्षण करने के लिए जनगणना विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता ।

(7) सत्यता की जाँच (Verification):-

समग्र विधि द्वारा किए गए अन्वेषण में संदेह होने पर दोबारा से अन्वेषण करना कठिन होता है । अन्वेषण कार्य का निरीक्षण करना भी कठिन होता है। इसके विपरीत प्रतिदर्श विधि में अन्वेषण कार्य का निरीक्षण करना कठिन नहीं होता है। अन्वेषण में किसी प्रकार का संदेह होने पर दोबारा अन्वेषण करके तथ्यों की जाँच की जा सकती है। संक्षेप में, प्रतिदर्श विधि सर्वेक्षण की अधिक उपयुक्त विधि है क्योंकि इसमें लागत तथा समय कम लगता है जबकि निष्कर्ष लगभग जनगणना विधि के समान ही होते हैं। परन्तु प्रतिदर्श विधि की सफलता के लिए आवश्यक है कि प्रतिदर्श (Sample) समग्र ( Universe) का अधिक-से-अधिक सीमा तक प्रतिनिधित्व करने वाले हों ।

सांख्यिकी त्रुटियाँ: प्रतिदर्श त्रुटियाँ और अप्रतिदर्श त्रुटियाँ 

(Statistical Errors : Sampling and Non-sampling Errors ) 

सांख्यिकीय त्रुटियों को निम्न भागों में वर्गीकृत किया जाता है:

(i) प्रतिदर्श त्रुटियाँ (Sampling Errors) और (ii) अप्रतिदर्श त्रुटियाँ (Non-sampling Errors)। इनकी व्याख्या इस प्रकार है:

(i) प्रतिदर्श त्रुटियाँ (Sampling Errors ):- इन त्रुटियों का संबंध अध्ययन के लिए चुने गए प्रतिदर्श की संख्या तथा प्रकृति से है। कभी-कभी प्रतिदर्श अनुमान तथा वास्तविक अनुमान में अंतर होता है क्योंकि प्रतिदर्श के लिए बहुत छोटा समूह चुना जाता है अथवा प्रतिदर्श अप्रतिनिधित्व होता है। इन सभी कारणों से उत्पन्न त्रुटि को प्रतिदर्श त्रुटि कहते हैं। उदाहरण के लिए, एक चर का अनुमानित मूल्य 10 माना गया है जबकि वास्तविक है तो प्रतिदर्श त्रुटि = चर का अनुमानित मूल्य – चर का वास्तविक मूल्य= 10-20=-10

(ii) अप्रतिदर्श त्रुटियाँ (Non-sampling Errors ) :- ऐसी त्रुटियाँ आँकड़ों के संग्रहण के दौरान होती हैं। यह त्रुटियाँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं:

मापन संबंधी त्रुटियाँ (Error of Measurement ) :-

इन त्रुटियों के कई कारण हो सकते हैं। जैसे (i) विभिन्न तरह के मापक के उपकरण के प्रयोग की वजह से (ii) गणनाकार का ऑकड़ों को विभिन्न तरह से पूर्णांकित करने की वजह से। जब अनुत्तर संबंधी त्रुटियाँ (Error of Non-response): ये त्रुटियाँ तब उत्पन्न होती हैं, उत्तरदाता प्रश्नावली को भरने से इंकार कर देता है अथवा उत्तरदाता गणनाकार के बार-बार जाने। पर नहीं मिलता है।

प्रश्नावली के दुरुपयोग संबंधी त्रुटियाँ (Error of Misinterpretation):-

ये त्रुटि तब उत्पन्न होती है जब उत्तरदाता प्रश्नावली के कुछ प्रश्नों का गलत अर्थ निकालते हैं।

अंकगणितीय त्रुटियाँ (Error of Calculation or Arithmetical Error):-

गणना विधि के दौरान आँकड़ों के जोड़, घटाव तथा गुणा के वक्त भी कुछ त्रुटियाँ उत्पन्न होती है।

प्रतिदर्श पक्षपात की त्रुटि (Error of Sampling Bias):

यह तब उत्पन्न होती है जब लक्षित जनसंख्या का एक भाग किसी एक या अन्य कारणवश प्रतिदर्श चुनाव में सम्मिलित नहीं किया जाता। अन्वेषण का क्षेत्र जितना बड़ा होता है या जनसंख्या का आकार जितना बड़ा होता है आँकड़ों के अर्जन या एकत्रित करने से संबंधित त्रुटियों की संभावना उतनी ही अधिक होती है। यहाँ पर यह ध्यान देना आवश्यक होता है कि एक अप्रतिदर्श त्रुटि, एक प्रतिदर्श त्रुटि से ज्यादा गंभीर होती है। क्योंकि एक प्रतिदर्श त्रुटि को एक बड़े प्रतिदर्श आकार द्वारा कम किया जा सकता है। जबकि ऐसी कोई संभावना अप्रतिदर्श त्रुटियों की दशा में नहीं रहती ।

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