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अध्याय-2  आँकड़ों का संकलन (Collection of Data) 

हम जानते हैं कि बहुवचन के रूप में सांख्यिकी का अर्थ है आँकड़े या परिमाणात्मक सूचकांक जिनसे कुछ अर्थपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

आँकड़ों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:-

→ हरियाणा में चीनी की 8 फैक्टरियाँ हैं जबकि इसकी तुलना में पंजाब में 20 फैक्टरियाँ हैं।

  • भारत में कार्यशील आयु वर्ग के 20 प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं जबकि इसकी तुलना में यू० एस० ए० में 2 प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं।
  • संसार की कुल पशु संख्या का 50 प्रतिशत भारत में पाया जाता है।

इस अध्याय का केंद्र-बिंदु संकलन है, जिसमें (i) आँकड़ों के स्रोत तथा (ii) आँकड़े संकलित करने की विधियाँ शामिल हैं। किंतु इससे पहले यह जानें कि हम आँकड़ों का संकलन क्यों करते हैं ।

अर्थशास्त्र के एक विद्यार्थी के लिए, आँकड़ों के संकलन का उद्देश्य एक सामाजिक-आर्थिक समस्या को समझने, विश्लेषण करने और व्याख्या करने के लिए आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए, बेरोजगारी की समस्या या निर्धनता की समस्या ।

जब हम समस्या का विश्लेषण करते हैं तो हम उन समस्याओं के कारणों को समझने के साथ-साथ उनके संभव समाधान भी खोजते

  • अन्वेषणकर्ता वह व्यक्ति है जो, स्वतंत्र रूप से या अन्य व्यक्तियों की सहायता से, सांख्यिकीय अन्वेषण की योजना बनाता है तथा उसे संचालित करता है।
  • गणनाकार वह व्यक्ति है जो वास्तविक आँकड़ों को संग्रहित करने के लिए क्षेत्र में जाता है। सामान्यतः गणनाकार प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति होते हैं जिन्हें अन्वेषणकर्ता काम पर लगाते हैं।
  • उत्तरदाता वह व्यक्ति है जो प्रश्नावली के प्रश्नों का सही उत्तर देकर, वास्तविक आँकड़े प्रदान करता है।

आँकड़ों के प्राथमिक तथा द्वितीयक स्त्रोत (Primary and Secondary Sources of Data) 

(1) प्राथमिक स्रोत

(2) द्वितीयक स्रोत ।

(1)प्राथमिक आँकड़े (Primary Data):-

प्राथमिक आँकड़े वे आँकड़े हैं जो अनुसंधानकर्ता अपने उद्देश्य के अनुसार पहली बार आरंभ से अंत तक एकत्रित करता है।

प्राथमिक आँकड़ों से हमारा अभिप्राय उन तथ्यों से होता है जिन्हें उनके उद्गम स्थान से एकत्रित किया जाता है।

वैसेल के अनुसार, “अनुसंधान की प्रक्रिया के अंतर्गत मौलिक रूप से जो आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं, उन्हें प्राथमिक आँकड़े कहा जाता है।” (Data originally collected in the process of the investigation are known as primary data. Wessel)

प्राथमिक आँकड़े मौलिक (Original) होते हैं। अनुसंधानकर्ता इन आँकड़ों को एकत्रित करने वाला पहला व्यक्ति होता है। उदाहरण के लिए, आप उनके जेब खर्च, उनके परिवार की आय, शिक्षा, जीवनस्तर संबंधी आँकड़े एकत्रित करते हैं। इन आँकड़ों को प्राथमिक आँकड़े कहा जायेगा, क्योंकि इन आँकड़ों को सबसे पहले आप ही ने एकत्रित किया है।

(2) द्वितीयक आँकड़े (Secondary Data):-

एम० एम० ब्लेयर के अनुसार, “द्वितीयक आँकड़े वे हैं जो पहले से अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्रित किये जाते हैं।”          द्वितीयक आँकड़े वे आँकड़े हैं जो पहले ही अन्य व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा एकत्रित किये जा चुके होते हैं और अनुसंधानकर्ता केवल उनका प्रयोग करता है।

वैसेल के अनुसार, जो आँकड़े दूसरे व्यक्तियों द्वारा एकत्रित किये जाते हैं उन्हें द्वितीयक आँकड़े कहा जाता है।” (Data collected by other persons are called secondary data. – Wessel )

उदाहरण के लिए, जनसंख्या से संबंधित आँकड़े जो NSO द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं, किसी अनुसंधानकर्ता के लिए द्वितीयक आँकड़े हैं।

प्राथमिक तथा द्वितीयक आँकड़ों में मुख्य अंतर

(Principal Differences between Primary and Secondary Data) 

प्राथमिक तथा द्वितीयक आँकड़ों में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:

(1)मौलिकता में अंतर (Difference in Originality):-

प्राथमिक आँकड़े मौलिक होते हैं क्योंकि इन्हें अनुसंधानकर्ता स्वयं उनके मौलिक स्रोत से एकत्रित करता है। प्राथमिक आँकड़ों का प्रयोग कच्चे माल (Raw Material) की तरह किया जाता है परंतु द्वितीयक आँकड़े किसी अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा संकलित किये जाते हैं।  द्वितीयक आँकड़े पहले से ही तैयार होते हैं, इसलिए ये एक प्रकार की तैयार सामग्री होती है ।

(2) उद्देश्य की उपयुक्तता में अंतर (Difference in the Suitability of Objectives):-

प्राथमिक आँकड़े एक निश्चित उद्देश्य के अनुकूल होते हैं। उनमें संशोधन की आवश्यकता नहीं होती। इसके विपरीत द्वितीयक आँकड़े पहले ही किसी और उद्देश्य के लिए एकत्रित किये जाते हैं। उनका प्रयोग द्वितीयक रूप में किसी दूसरे उद्देश्य की पूर्ति के लिए सावधानीपूर्वक किया जाता है।

(3)संकलन लागत में अंतर (Difference in Cost of Collection):-

प्राथमिक आँकड़ों के संकलन में अपेक्षाकृत अधिक धन, समय और परिश्रम की आवश्यकता होती है। इनकी संकलन लागत अधिक होती है। इसके विपरीत द्वितीयक आँकड़ों को केवल प्रकाशित और अप्रकाशित साधनों से संकलित करना पड़ता है। इसलिए इनकी संकलन लागत कम होती है।

 आधारभूत आँकड़ों का संकलन कैसे होता है

कुछ सांख्यिकीय विधियाँ/ आँकड़ों के संकलन की विधियाँ बताओ 

(How Basic Data is Collected: Some Statistical Methods/Modes of Data Collection)

प्राथमिक आँकड़ों को इकट्ठा करने की मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान (Direct Personal Investigation)
  2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान (Indirect Oral Investigation)
  3. स्थानीय स्रोतों या संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति (Information from Local Sources or Correspondents)
  4. प्रश्नावली के माध्यम से सूचना संग्रह ( Information through Questionnaire )

(i) डाक प्रश्नावली विधि (Mailing Method)

(ii) गणकों द्वारा अनुसूचियाँ भरना (Enumerator’s Method)

इनका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है:-

(1) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान (Direct Personal Investigation) 

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि वह है जिसमें एक अनुसंधानकर्ता स्वयं अनुसंधान क्षेत्र में जाकर सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष तथा सीधा संपर्क स्थापित करता है और आँकड़े इकट्ठे करता है।

उपयुक्तता (Suitability) 

यह विधि ऐसे अनुसंधानों के लिए उपयुक्त है:

(1) जिसका क्षेत्र सीमित है ।

(2) जहाँ आँकड़ों की मौलिकता अधिक जरूरी है।

(3) जहाँ आँकड़ों को गुप्त रखना हो ।

(4) जहाँ आँकड़ों की शुद्धता अधिक महत्त्वपूर्ण है, तथा

(5) जहाँ सूचना देने वालों से सीधा संपर्क करना जरूरी हो ।

गुण (Merits):- 

(1) मौलिकता (Originality):- इस विधि द्वारा संकलित आँकड़े मौलिक होते हैं।

(2) शुद्धता (Accuracy): इस विधि से प्राप्त आँकड़ों में शुद्धता होती है क्योंकि अनुसंधानकर्ता

स्वयं आँकड़ों को एकत्रित करता है।

(3) विश्वसनीय (Reliable) :– इस विधि द्वारा प्राप्त जानकारी पर पूर्ण रूप से विश्वास किया जा सकता है

(4) संबंधित सूचना (Related Information)-: इस तरीके द्वारा मुख्य सूचना के अतिरिक्त और भी कई उपयोगी सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं।

(5) एकरूपता (Uniformity ) :-

इस विधि द्वारा आँकड़ों में एकरूपता पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है क्योंकि आँकड़े एक ही व्यक्ति द्वारा एकत्रित किये जाते हैं। एकरूपता के कारण उनकी तुलना में आसानी होती है ।

(6) लोचशील (Elastic):- यह विधि लोचशील होती है क्योंकि अनुसंधानकर्ता आवश्यकतानुसार प्रश्नों को कम या ज्यादा कर सकता है।

अवगुण (Demerits):-

(1) बड़े क्षेत्रों के लिए अनुपयुक्त (Difficult to Cover Wide Areas): यह प्रणाली अनुसंधान के विस्तृत क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त है।

(2) व्यक्तिगत पक्षपात (Personal Bias) : इस विधि में अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत पक्षपात के कारण परिणामों के दोषपूर्ण होने का डर बना रहता है।

(3) अधिक खर्चीली (Costly) : इस विधि में धन अधिक खर्च होता है तथा मेहनत भी अधिक करनी पड़ती है।

(4) सीमित क्षेत्र (Limited Coverage ) : इस विधि में सीमित क्षेत्र होने के कारण यह संभव है कि प्राप्त परिणाम, क्षेत्र की सारी विशेषताओं को प्रकट न कर सकें, अर्थात निष्कर्ष कम प्रतिनिधित्व वाले हों। इसके कारण गलत निष्कर्ष निकल सकते हैं।

(2) अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान (Indirect Oral Investigation):-

अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान वह विधि है जिसमें किसी समस्या से अप्रत्यक्ष रूप से संबंध रखने वाले व्यक्तियों से मौखिक (Oral) पूछताछ द्वारा आँकड़े प्राप्त किये जाते हैं। ऐसे लोगों को साक्षी (Witnesses) कहा जाता है। इस विधि में समस्या से प्रत्यक्ष संबंध रखने वाले व्यक्तियों से आँकड़े इकट्ठे नहीं किये जाते । उदाहरण के लिए, इस विधि में मजदूरों की आर्थिक स्थिति के बारे में सूचना स्वयं मजदूरों से एकत्रित न करके मिल मालिकों या श्रम संघों से मौखिक पूछताछ द्वारा प्राप्त की जाएगी।

उपयुक्तता (Suitability) 

यह विधि ऐसे अनुसंधान के लिए उपयुक्त है जिसमें

(1) अनुसंधान क्षेत्र अधिक व्यापक हो ।

(2) प्रत्यक्ष सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष संपर्क संभव न हो ।

(3) प्रत्यक्ष सूचना देने वाले अज्ञानता के कारण सूचना देने में असमर्थ हों, तथा

(4) आँकड़े जटिल किस्म के हों एवं उनके लिए विशेषज्ञों की राय की जरूरत हो । इस विधि का प्रयोग अधिकतर सरकारी या गैर-सरकारी समितियों या आयोगों द्वारा किया जाता है ।

गुण (Merits) :-

(1) विस्तृत क्षेत्र (Wide Coverage): यह प्रणाली विस्तृत क्षेत्र में लागू होती है।

(2) कम खर्चीली (Less Expensive) : इस विधि में धन, समय व परिश्रम कम लगते हैं (3) विशेषज्ञों की सम्पति (Expert Opinion): इस विधि में विशेषज्ञों की राय तथा सुझाव प्राप्त हो सकते हैं 

(4) निष्पक्षता (Free from Bias): इस विधि में अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत पक्षपात का प्रभाव नहीं पड़ता।

(5) सरलता (Simple): यह विधि सरल होती है तथा आँकड़े संकलित करने में अधिक

परेशानी नहीं उठानी पड़ती है।

अवगुण (Demerits):- 

(1) शुद्धता की कमी (Less Accurate): इस विधि द्वारा संकलित आँकड़ों में उच्च स्तर की शुद्धता नहीं होती क्योंकि सूचना देने वाले प्रायः लापरवाही बरतते हैं।

(2) पक्षपात (Biased): इस विधि में सूचना देने वालों के व्यवहार में पक्षपात की संभावना होती है।

(3) गलत परिणाम (Wrong Conclusion): इस विधि में साक्ष्य देने वालों की लापरवाही, पक्षपात तथा अज्ञानता के कारण गलत परिणाम निकलने की संभावना होती है। प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान तथा अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान में अंतर (Difference between Direct Personal Investigation and Indirect Oral Investigation)

(3) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान तथा अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:-

(1)प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान में समस्या से प्रत्यक्ष संबंध रखने वाले लोगों से अनुसंधानकर्ताप्रत्यक्ष संपर्क स्थापित करके सूचना प्राप्त करता है

जबकि अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान में समस्या से अप्रत्यक्ष संबंध रखने वाले व्यक्तियों अर्थात् साथियों से सूचना प्राप्त की जाती है।

(2)प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान उस स्थिति में संभव है जिसमें अनुसंधान का क्षेत्र छोटा हो

जबकि अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान विधि विस्तृत क्षेत्र के लिए अपनाई जाती है।

(3) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान के लिए अनुसंधानकर्ता को सूचना देने वालों की भाषा, रीति- रिवाज आदि का ज्ञान होना चाहिए जबकि अप्रत्यक्ष अनुसंधान में यह आवश्यक नहीं है

(4) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान अधिक महंगी विधि है जबकि अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान कम महंगी विधि है।

(4) स्थानीय स्रोतों संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति (Information from Local Sources or Correspondents) 

इस विधि के अंतर्गत अनुसंधानकर्ता विभिन्न स्थानों पर स्थानीय व्यक्ति या विशेष संवाददाता नियुक्त कर देता है। वे अपने-अपने तरीकों से सूचनाएं एकत्रित करते हैं और अनुसंधानकर्ता को भेज देते हैं।

उपयुक्तता (Suitability):-

यह विधि ऐसे अनुसंधान के लिये उपयुक्त है जिसमें

(1) आँकड़ों के निरंतर संकलन की आवश्यकता हो। (2) आँकड़े एकत्रित करने का क्षेत्र व्यापक हो ।

(3) आँकड़ों का प्रयोग पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन आदि द्वारा किया जाना हो,

(4) सूचनाओं की अत्यधिक शुद्धता की आवश्यकता न हो ।

गुण (Merits):-

(1) मितव्ययिता (Economical): इस विधि में समय, धन तथा परिश्रम की बचत होती है । यह कम खर्चीली प्रणाली है।

(2) विस्तृत क्षेत्र (Wide Coverage ) : इस विधि का क्षेत्र विस्तृत होता है क्योंकि दूर-दूर

के स्थानों से लगातार सूचना प्राप्त की जा सकती है ।

(3) निरंतरता (Continuity): इस विधि द्वारा सूचनाएँ निरंतर प्राप्त होती रहती हैं। (4) विशेष परिस्थितियों में उपयोगी (Suitable for Special Purposes ) : यह विधि विशेष परिस्थितियों में उपयोगी है। इसके द्वारा कृषि उत्पादकता, कीमतों के सूचकांक आदि का अनुमान अधिक उचित ढंग से लगाया जा सकता है।

अवगुण (Demerits):-

(1) मौलिकता में कमी (Loss of Originality): इस विधि द्वारा संकलित आँकड़ों में मौलिकता नहीं रहती क्योंकि सूचना देने वाले के साथ व्यक्तिगत संपर्क नहीं होता । (2) एकरूपता का अभाव (Lack of Uniformity): इस विधि द्वारा संकलित आँकड़ों में एकरूपता का अभाव पाया जाता है क्योंकि आँकड़े विभिन्न संवाददाताओं द्वारा इकट्ठे किए जाते हैं।

(3) व्यक्तिगत पक्षपात (Personal Bias): इस विधि में आँकड़ों के संकलन पर व्यक्तिगत पक्षपात का प्रभाव पड़ता है।

(4) शुद्धता की कमी (Less Accurate): इस विधि द्वारा प्राप्त सूचनाओं की में कमी होती है।

(5) संकलन में देरी (Delay in Collection): इस विधि द्वारा सूचनाओं की प्राप्ति में देरी होती है।

(5) प्रश्नावली एवं अनुसूचियों के माध्यम से सूचना संग्रह (Information through Questionnaires and Schedules) 

इस विधि में अनुसंधानकर्ता सबसे पहले अनुसंधान के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए एक प्रश्नावली तैयार करता है। इस प्रश्नावली के आधार पर दो प्रकार से सूचना एकत्रित की जा सकती है:

(i) डाक प्रश्नावली विधि

(ii) गणक विधि या अनुसूची विधि ।

(i) डाक विधि (Mailing Method) 

इस विधि में प्रश्नावली सूचना देने वाले व्यक्तियों के पास डाक द्वारा भेज दी जाती है। प्रश्नावली के साथ एक पत्र भी भेजा जाता है जिसमें जाँच के उद्देश्य स्पष्ट किए जाते हैं तथा सूचना देने वाले को यह विश्वास दिलाया जाता है कि उसके द्वारा भेजी गई सूचनाएँ गुप्त रखी जाएंगी। प्रश्नावली प्राप्त करने वाला व्यक्ति प्रश्नावली में प्रश्नों का उत्तर लिखकर उसे वापस अनुसंधानकर्ता के पास भेज देता है।

उपयुक्तता (Suitability) 

इस विधि का प्रयोग तब उपयुक्त होता है जब

(1) अनुसंधान का क्षेत्र काफी विस्तृत हो, तथा आर्थिक सांख्यिकी

(2) सूचना देने वाले व्यक्ति शिक्षित हों।

गुण (Merits) 

इस विधि के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं:

(1) मितव्ययिता (Economical): इस विधि में धन कम खर्च होता है। समय और परिश्रम की भी बचत होती है।

(2) मौलिक (Original): इस विधि द्वारा संकलित आँकड़े मौलिक होते हैं क्योंकि सूचनाएँ स्वयं सूचकों द्वारा दी जाती हैं।

( 3 ) विस्तृत क्षेत्र ( Wide Coverage ) : इस विधि द्वारा विस्तृत क्षेत्र से आँकड़े संकलित किये जा सकते हैं।

अवगुण (Demerits) 

इस विधि के मुख्य अवगुण निम्नलिखित हैं:

(1) उदासीनता (Lack of Interest): इस विधि का एक अवगुण यह है कि सूचना देने वाले अधिकतर व्यक्ति उदासीनता के कारण प्रश्नावलियों को वापस ही नहीं भेजते। जो भर कर वापिस भेजते भी हैं, उनमें से अनेक अपूर्ण होती हैं।

(2) लोचशीलता का अभाव (Lack of Flexibility): इस विधि में लोचशीलता नहीं पाई जाती क्योंकि अपूर्ण सूचना प्राप्त होने पर पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते।

(3) सीमित उपयोग (Limited Use) : इस विधि का उपयोग सीमित है, क्योंकि इसके अंतर्गत केवल शिक्षित व्यक्तियों से आँकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं, अशिक्षित व्यक्तियों से इस विधि द्वारा सूचना प्राप्त नहीं की जा सकती।

(4) पक्षपात (Biased): यदि सूचकों में पक्षपात की भावना होगी तो अशुद्ध सूचनाएँ उपलब्ध होती हैं।

(5) शुद्धता की कमी (Less Accuracy): इस विधि द्वारा प्राप्त आँकड़ों में शुद्धता की मात्रा कम होती है, क्योंकि कई बार प्रश्नावली सावधानी से तैयार नहीं की जाती या प्रश्नों की जटिलता के कारण उनके उत्तर गलत दे दिए जाते हैं।

(ii) गणक विधि (Enumerator’s Method) 

इस विधि में अनुसंधान के उद्देश्य को ध्यान में रखकर एक प्रश्नावली तैयार कर ली जाती है। इन प्रश्नावलियों को लेकर सूचना देने वाले व्यक्तियों के पास गणक स्वयं जाते हैं। इस प्रकार की प्रश्नावली को जो गणक स्वयं सूचकों से प्रश्न पूछ कर भरते हैं अनुसूचियाँ ( Schedules) कहा जाता है। अतएव इस विधि में गणक संबंधित व्यक्तियों से पूछताछ करके अनुसूचियों को स्वयं भरते हैं। गणक (Enumerators) उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो आँकड़े संकलन में अनुसंधानकर्ता की मदद करते हैं। इन गणकों को अनुसूचियाँ भरवाने के संबंध में प्रशिक्षण दिया जाता है जिससे वे सही प्रश्न पूछें तथा अनुसूचियों को शुद्धतापूर्वक भर सकें।

उपयुक्तता (Suitability) 

यह विधि ऐसे अनुसंधानों के लिए उपयुक्त है:

(1) जिनका क्षेत्र विस्तृत है।

(2) जिनसे संबंधित गणक निपुण और निष्पक्ष हैं। वे अनुभवी और व्यवहारकुशल हैं

(3) गणकों को अपने क्षेत्र के सूचकों की भाषा, रीति-रिवाज और स्वभाव का भली-भाँति परिचय है।

गुण (Merits) 

इस विधि के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं:

(1) विस्तृत क्षेत्र (Wide Scope ) : इस विधि द्वारा काफी विस्तृत क्षेत्र से भी सूचना प्राप्त

की जा सकती है। उन व्यक्तियों से भी सूचना प्राप्त हो सकती है जो निरक्षर हैं।

(2) शुद्धता (Accuracy ) : इस विधि में शुद्धता पाई जाती है क्योंकि योग्य, प्रशिक्षित तथा अनुभवी गणकों द्वारा प्रश्न पूछे जाते हैं और अनुसूचियाँ भरी जाती हैं।

( 3 ) व्यक्तिगत संपर्क (Personal Contact ) : इस विधि में गणकों का सूचकों से व्यक्तिगत संपर्क रहने के कारण जटिल प्रश्नों के शुद्ध और विश्वसनीय उत्तर प्राप्त हो सकते हैं ।

( 4 ) निष्पक्षता (Impartiality ) : इस विधि में व्यक्तिगत पक्षपात का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि कुछ गणक पक्ष में तथा कुछ विपक्ष में होते हैं।

(5) पूर्णता (Completeness) : इस विधि में पूर्णता पाई जाती है क्योंकि गणक द्वारा सभी प्रश्नों के उत्तर स्वयं ही प्राप्त किए जाते हैं।

अवगुण (Demerits):-

इस विधि के मुख्य अवगुण निम्नलिखित हैं:

(1) खर्चीली (Expensive ) : यह विधि अनुसंधान की सबसे अधिक खर्चीली विधि है क्योंकि इसमें प्रशिक्षित गणकों का प्रयोग किया जाता है।

(2) गणकों की उपलब्धता (Availability of Enumerators): इस विधि का एक मुख्य अवगुण यह है कि योग्य गणकों की कमी होती है इसलिए सही आँकड़े एकत्रित करना कठिन हो जाता है। अन्वेषणकर्ता, गणनाकार, तथा उत्तरदाता की परिभाषाएँ (Definitions of Investigator. Enumerator and Respondent)

(3) अधिक समय (Time Consuming ) : इस विधि में गणकों की नियुक्ति तथा प्रशिक्षण में अधिक समय लगता है इसलिए आँकड़ों के संकलन में देरी हो जाती है।

(4) निजी अनुसंधानकर्ताओं के लिए अनुपयुक्त (Not Suitable for Private Investigators): इस विधि द्वारा आँकड़े संकलित करने पर खर्च बहुत होता है इसलिए यह विधि निजी अनुसंधानकर्ताओं के लिए अनुपयुक्त है। यह विधि सरकार के लिए अधिक उपयुक्त है।

(5) पक्षपात (Partial): यदि गणक पक्षपातपूर्ण हुए तो आँकड़ों में शुद्धता नहीं रहेगी। प्रश्नावली तथा अनुसूचियों का निर्माण तथा उनके गुण है।

(Construction of Questionnaires and Schedules and their Qualities) प्रश्नावली तथा अनुसूचियों के निर्माण का प्राथमिक आँकड़ों के संकलन में एक विशेष महत्त्व है। प्रश्नावली तथा अनुसूचियों में बिल्कुल एक जैसे प्रश्न होते हैं। इन दोनों में केवल अंतर यह है कि प्रश्नावली (Questionnaire) में सभी सूचनाएँ सूचकों द्वारा स्वयं लिखी जाती हैं। इसके विपरीत अनुसूचियों (Schedules) को गणकों द्वारा सूचकों से पूछताछ करके भरा जाता है। इस विधि की सफलता प्रश्न की श्रेष्ठता पर निर्भर करती है।

अच्छी प्रश्नावली के गुण (Qualities of a Good Questionnaire) 

एक अच्छी प्रश्नावली बनाते समय मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:

(1) प्रश्नों की कम संख्या (Less Number of Questions ):- प्रश्नावली के प्रश्नों की संख्या अनुसंधान के क्षेत्र के अनुसार होनी चाहिए परंतु जहाँ तक संभव हो, इनकी संख्या कम से कम होनी चाहिए । प्रश्न अनुसंधान से संबंधित होने चाहिए ।

(2) सरलता (Simplicity ) : प्रश्नों की भाषा सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए । प्रश्न छोटे होने चाहिए, प्रश्न लंबे तथा जटिल नहीं होने चाहिए। गणित संबंधी प्रश्न भी नहीं पूछे जाने चाहिए।

(3) प्रश्नों का उचित क्रम (Proper Order of Questions ) : प्रश्नों का एक उचित तथा तर्कपूर्ण क्रम होना चाहिए।

(4) अनुचित प्रश्न नहीं होने चाहिए (No Undesirable Questions): प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिए जो सूचना देने वाले के मान सम्मान को ठेस पहुँचाए ।

( 5 ) मतभेद रहित (Non-Controversial): प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनका उत्तर बिना पक्षपात के दिया जा सके। इस प्रकार के प्रश्न भी नहीं पूछे जाने चाहिए जिनमें किसी प्रकार के मतभेद की संभावना हो ।

(6) गणना (Calculations ) : इस प्रकार के प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिए जिनमें उत्तर देने वाले को किसी प्रकार की गणना करनी पड़े। गणना का कार्य अनुसंधानकर्ता को स्वयं करना चाहिए।

(7) पूर्व परीक्षण (Pre-Testing): प्रश्नावली को अंतिम रूप देने से पूर्व उसका पहले से ही परीक्षण कर लेना चाहिए। इसके लिए कुछ सूचकों से प्रयोग के रूप में प्रश्न पूछे जाने चाहिए। यदि उनके उत्तर में कोई कठिनाई महसूस की जाती है तो उसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर दिया जाना चाहिए। इस परीक्षण को मार्गदर्शी सर्वेक्षण (Pilot Survey) कहते हैं।

(8) निर्देश (Instructions): प्रश्नावली को भरने के लिए उसमें स्पष्ट तथा निश्चित निर्देश देने चाहिए।

(9) सत्यता की जाँच (Cross Verification): प्रश्नावली में ऐसे भी प्रश्न पूछे जाने चाहिए जिनसे उत्तरों की सत्यता की परस्पर जाँच की जा सके।

(10) प्रश्नावली लौटाने की प्रार्थना (Request for Return): प्रश्नावली को भर कर वापस लौटाने की प्रार्थना की जानी चाहिए तथा यह भी यकीन दिलाया जाना चाहिए कि सूचना गुप्त रखी जाएगी।

आदर्श प्रश्नावली का नमूना (Example of an Ideal Questionnaire) 

इस प्रश्नावली का उद्देश्य छात्रावास में रहने वाले 10+2 कक्षा के छात्रों के मासिक आय तथा व्यय संबंधी आँकड़े एकत्रित करना है। आप से प्रार्थना है कि इस प्रश्नावली को भर कर शीघ्र लौटा दें। इसमें दी जाने वाली सूचनाएँ गोपनीय रखी जायेंगी। इनका प्रयोग केवल वर्तमान अनुसंधान के लिए ही किया जायेगा ।

  1. विद्यार्थी का नाम… …………………..
  2. आयु. ……………………………………………………
  3. विभाग………………………. कला/विज्ञान/वाणिज्य………………….
  4. स्कूल/कॉलेज. ………………..
  5. पिता का नाम व पता……………..
  6. पिता का व्यवसाय…………………. मासिक आय………………. …….
  7. परिवार के अन्य सदस्यों की आय (यदि कोई हो) ……………………………………..
  8. विद्यार्थी को प्रतिमास आय के रूप में प्राप्त होने वाली रकम……………..

(i) परिवार से..

(iii) छात्रवृत्ति से.

9. विद्यार्थी के मासिक व्यय

व्यय की मदें  ……….                                                             व्यय की रकम ……

(i) स्कूल / कॉलेज की फीस …………………………………………..

(ii) स्टेशनरी …………………………………………………………

(iii) पुस्तकों पर व्यय …………………………………………………

(iv) बस किराया, अन्य यात्रा व्यय …………………………………..

(v) छात्रावास का व्यय ………………………………………………..

(vi) मनोरंजन ………………………………………………………

(ii) निजी साधन से.. …………………………………………………

(iv) अन्य …. ………………………………………………………………………………

(vii) अन्य व्यय ( व्यय की मदें बताइए ) ……………………………

  1. क्या आपको मिलने वाली मासिक आय पर्याप्त है ? ………हाँ
  2. यदि मासिक आय कम है तो उसे बढ़ाने के लिए आपके क्या सुझाव हैं ?
  3. क्या आप अपनी वर्तमान मासिक आय में से कुछ बचत कर सकते हैं? यदि कर सकतेतो किस मद में तथा कितनी बचत कर सकते हैं? ……………………………..

आँकड़ों के संकलन में त्रुटियों के प्रमुख स्रोत (Main Sources of Errors in Collection of Data):-

इन्हें निम्नलिखित रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है:

(i) मापन संबंधी त्रुटियाँ जो कि दो कारणों से उत्पन्न हो सकती हैं: जब

(a) प्रत्येक गणनाकार अलग-अलग प्रकार के मापक टेप का प्रयोग करता है।

(b) सभी गणनाकार एक ही प्रकार के मापक टेप प्रयोग करते हैं, परंतु वे विभिन्न निकटतम मान निकालते हैं।

(ii) प्रश्नावली के दुरुपयोग संबंधी त्रुटियां तब उत्पन्न होती हैं जब उत्तरदाता प्रश्नों को ठीक तरह से समझ नहीं पाते अथवा कुछ प्रश्नों का गलत अर्थ लगा लेते हैं।

(iii) अनुत्तर संबंधी त्रुटियाँ तब पैदा होती हैं जब उत्तरदाता प्रश्नावली को भरने से इंकार कर दे। इस कारण, सूचना के अभाव में, आँकड़ा संग्रहण में त्रुटियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

(iv) अंकगणितीय त्रुटियाँ तब उत्पन्न होती हैं जब कुछ प्रश्नों में गणित के हिसाब-किताब में गलती हो जाए ।

(v) रिकार्डिंग संबंधी त्रुटियाँ तब उत्पन्न होती हैं जब गणनाकार या उत्तरदाता आँकड़े लिखने में गलती करता है।

द्वितीयक आँकड़ों का संकलन करने के मुख्य स्रोत बताओ (Collection of Secondary Data)

द्वितीयक आँकड़ों को एकत्रित करने के मुख्य स्रोत हैं:

(1) प्रकाशित स्रोत (Published Sources) 

(2) अप्रकाशित स्रोत (Unpublished Sources) 

1.प्रकाशित स्रोत(Published Sources) 

द्वितीयक आँकड़ों के मुख्य प्रकाशित स्रोत निम्नलिखित हैं:

(i) सरकारी प्रकाशन ( Government Publications ) :-

भारत की केंद्रीय तथा राज्य सरकारों के मंत्रालय तथा विभाग विभिन्न विषयों से संबंधित आँकड़े प्रकाशित करते रहते हैं। ये आँकड़े काफी उपयोगी तथा विश्वसनीय होते हैं। कुछ प्रमुख सरकारी प्रकाशन निम्नलिखित हैं : Statistical Abstract of India, Annual Survey of Industries, Agricultural Statistics of India, Report on Currency and Banking, Labour Gazette, Reserve Bank of India Bulletin etc.

(ii) अर्द्धसरकारी प्रकाशन (Semi- Government Publications):-

अर्द्ध-सरकारी संस्थाएँ जैसे नगरपालिकाएँ, नगर निगम, जिला परिषद् आदि भी कई मदों जैसे जन्म- मरण, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि से संबंधित आँकड़े प्रकाशित करती रहती हैं। ये आँकड़े भी विश्वसनीय तथा अनुसंधान के लिए उपयोगी होते हैं।

(iii) समितियों आयोगों की रिपोर्ट (Reports of Committees and Commissions):-

सरकार द्वारा नियुक्त विभिन्न समितियों तथा आयोगों की रिपोर्टों में महत्त्वपूर्ण आँकड़े संकलित होते हैं। उदाहरण के लिए, वित्त आयोग (Finance Commission), एकाधिकार आयोग (Monopolies Commission), योजना आयोग (Planning Commission) आदि द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों (Reports) से उपयोगी आँकड़े प्राप्त होते हैं।

(iv) व्यापारिक संघों के प्रकाशन (Publications of Trade Associations ):-

बड़े-बड़े व्यापारिक संघ भी अपने अनुसंधान तथा सांख्यिकी विभागों द्वारा एकत्रित आँकड़े प्रकाशित करते रहते हैं। उदाहरण के लिए, चीनी मिल संघ (Sugar Mills Associations) चीनी के कारखानों से संबंधित आँकड़े प्रकाशित करता है।

(v) अनुसंधान संस्थाओं के प्रकाशन (Publications of Research Institutions):- विभिन्न विश्वविद्यालय तथा अनुसंधान संस्थान अपने शोध कार्यों के परिणाम प्रकाशित करते रहते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय सांख्यिकीय संस्थान (Indian Statistical Institute), व्यावहारिक आर्थिक शोध की राष्ट्रीय परिषद् (National Council of Applied Economic Research) आदि संस्थाएं कई प्रकार के उपयोगी आँकड़े प्रकाशित करती हैं।

(vi) पत्रपत्रिकाएँ (Journals and Papers):-

कई समाचार-पत्र जैसे इकॉनॉमिक टाइम्स (The Economic Times), पत्रिकाएँ जैसे योजना, Facts for You, कॉमर्स (Commerce) आदि भी उपयोगी आँकड़े प्रकाशित करती हैं।

(vii) व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ताओं के प्रकाशन (Publications of Research Scholars):-

व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ता भी अपने अनुसंधान संबंधी आँकड़ों को एकत्रित करके उनका प्रकाशन करवाते रहते हैं।

(viii) अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन (International Publications):-

अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ (ILO), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक (World Bank) आदि तथा विदेशी सरकारें भी महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय आँकड़े प्रकाशित करती हैं। इनका द्वितीयक आँकड़ों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

2.अप्रकाशित स्रोत(Unpublished Sources)

द्वितीयक आँकड़ों का अप्रकाशित स्रोत भी होता है । सरकार, विश्वविद्यालय, निजी संस्थाएँ तथा व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ता विभिन्न उद्देश्यों के लिये ऐसे आँकड़ों का संकलन करते रहते हैं, जिन्हें प्रकाशित नहीं कराया जाता। इन अप्रकाशित संख्यात्मक सूचनाओं का द्वितीयक आँकड़ों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

द्वितीयक आँकड़ों के प्रयोग के संबंध में सावधानियाँ(Precautions in the Use of Secondary Data):- द्वितीयक आँकड़ों का संकलन दूसरे व्यक्तियों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इसलिए इनका प्रयोग करते समय काफी सावधानी की आवश्यकता होती है। क्योंकि इनमें काफी कमियाँ हो सकती हैं।

कौनोर के अनुसार, “आँकड़े, विशेष रूप से अन्य व्यक्तियों द्वारा एकत्रित आँकड़े, प्रयोगकर्ता के लिए अनेक त्रुटियों से पूर्ण होते हैं।” (Statistics especially other people’s statistics are full of pitfalls for the users.(Connor) अतएव द्वितीयक आँकड़ों का प्रयोग करने से पहले निम्नलिखित तीन बातों का निश्चय कर लेना चाहिए:-

(i) क्या आँकड़े विश्वसनीय हैं ? (Whether the data are reliable?)

(ii) क्या आँकड़े वर्तमान उद्देश्य के लिए उपयोगी हैं ? (Whether the data are suitable for the existing purpose?)

(iii) क्या आँकड़े पर्याप्त हैं ? (Whether the data are adequate ?)

द्वितीयक आँकड़ों की विश्वसनीयता, उपयुक्तता तथा पर्याप्तता की जाँच करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए:-

(1)संकलन संगठन की योग्यता (The Ability of Collecting Organisation):-

किसी भी व्यक्ति को द्वितीयक आँकड़ों का प्रयोग करने से पहले उस संगठन की योग्यता बारे में जान लेना चाहिए जो प्रारंभिक रूप में आँकड़ों का संकलन करता है। आँकड़ों का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए यदि ये आँकड़े योग्य, अनुभवी तथा पक्षपातहीन अन्वेषकों द्वारा एकत्रित किए गए हों।

 (2) उद्देश्य तथा क्षेत्र (Objective and Scope):-

यह भी सावधानी रखनी चाहिए कि द्वितीयक आँकड़े जब प्राथमिक रूप से एकत्रित किए गए थे तो उनका उद्देश्य तथा क्षेत्र क्या था। यदि उनका उद्देश्य तथा क्षेत्र वही है जिसके लिए अब द्वितीयक आँकड़ों का

प्रयोग किया जाएगा तो ये आँकडे उपयोगी सिद्ध होंगे। इसके विपरीत यदि उनका उद्देश्य तथा क्षेत्र अलग हैं तो इनका उपयोग करना उपयुक्त नहीं होगा।

(3) संकलन विधि (Method of Collection ) :-

यह भी ज्ञात कर लेना चाहिए कि द्वितीयक आँकड़ों को प्राथमिक रूप में संकलित करते समय जो विधि अपनाई गई है वह उपयुक्त तथा विश्वसनीय थी या नहीं। यदि वह विधि उपयुक्त थी तो इन आँकड़ों का द्वितीयक रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए।

(4) संकलन का समय तथा परिस्थितियाँ (Time and Conditions of Collection):- यह भी निश्चित कर लेना चाहिए कि उपलब्ध आँकड़े किस समय से संबंधित हैं तथा उन्हें किन परिस्थितियों में एकत्रित किया गया है। उदाहरण के लिए, युद्ध के दौरान एकत्रित किए गए आँकड़े शान्ति के दिनों में भी उपयुक्त हों, यह आवश्यक नहीं है। इसलिए द्वितीयक आँकड़ों का प्रयोग करते समय इस तथ्य को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए ।

(5) इकाई की परिभाषा ( Definition of the Unit):-

संकलित आँकड़ों को प्रयोग करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि पूर्व अनुसंधान में आँकड़ों की इकाइयों का जिन अर्थों में प्रयोग किया गया है वे वर्तमान अनुसंधान में प्रयोग की जाने वाली इकाइयों के अर्थ के समान हैं अथवा नहीं। यदि उनमें समानता नहीं पाई जाती तो उनका प्रयोग उपयुक्त नहीं होगा ।

(6) शुद्धता (Accuracy):-

उपलब्ध आँकड़ों का द्वितीयक आँकड़ों के रूप में प्रयोग करने से पहले उनकी शुद्धता के स्तर की भी जाँच कर लेनी चाहिए। यदि वर्तमान अनुसंधान के लिए शुद्धता का उच्च स्तर आवश्यक हो जबकि उपलब्ध आँकड़ों के संकलन में केवल सामान्य शुद्धता को ध्यान में रखा गया हो तो ऐसे आँकड़े उपयुक्त नहीं होंगे। संक्षेप में, डॉ० वाउले ने ठीक कहा है कि, “प्रकाशित आँकड़ों को बिना उनके अर्थ व सीमाएं जाने जैसे का तैसा ग्रहण कर लेना कभी सुरक्षित नहीं है।  ( It is never safe to take published statistics at their face value without knowing their meaning and limitations. –Dr. Bowley) द्वितीयक आँकड़ों का प्रयोग करते समय उपरोक्त सावधानियाँ बरतनी आवश्यक हैं।

द्वितीयक आँकड़ों के दो महत्त्वपूर्ण स्रोतः

भारत की जनगणना तथा राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन की रिपोर्ट एवं प्रकाशन

(Two Important Sources of Secondary Data: Census of India and Reports and Publications of National Sample Survey Organisation

(1) भारत की जनगणना (Census of India):

भारत की जनगणना भारत सरकार का दस-वर्षीय प्रकाशन है। यह भारत के Registrar General and Census Commissioner द्वारा प्रकाशित किया जाता है। द्वितीयक आँकड़ों का यह एक व्यापक स्रोत है। इसका संबंध भारत में जनसंख्या के आकार तथा जनांकिकीय परिवर्तन के विभिन्न पक्षों से है, इसमें निम्नलिखित पैरामीटरों पर सांख्यिकीय सूचना शामिल होती है:

(i) भारत में संख्या का आकार, वृद्धि दर तथा वितरण (Size, Growth Rate and

Distribution of Population in India)

(ii) जनसंख्या प्रक्षेपण (Population Projections)

(iii) जनसंख्या का घनत्व (Density of Population)

(iv) जनसंख्या की लिंग संरचना (Sex Composition of Population)

(v) साक्षरता की अवस्था (State of Literacy)।

उपरोक्त लिखे सभी पैरामीटरों/ तथ्यों के लिए उपलब्ध सूचना संपूर्ण देश तथा देश के विभिन्न राज्यों एवं यूनियन टेरीटरीज से संबंधित होती है। जैसे कि नाम से पता चलता है, भारत की जनगणना (Census of India) जनसंख्या आकार तथा परिवर्तन के पैरामीटरों से संबंधित होती है जिसमें गृहस्थी शामिल होता है।

(2) राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन की रिपोर्ट एवं प्रकाशन (Reports and Publication of National Sample Survey Organisation – NSSO):-

भारत में द्वितीयक आँकड़ों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत NSSO की रिपोर्ट तथा प्रकाशन है | Ministry of Statistics and Programme Implementation के अंतर्गत NSSO एक सरकारी संगठन है। देश के ग्रामीण तथा शहरी भागों में होने वाली विभिन्न आर्थिक क्रियाओं से संबंधित आधारभूत सांख्यिकीय सूचना, यह संगठन, नियमित रूप से सैम्पल सर्वे करके, एकत्रित करता है। उदाहरण स्वरूप “राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन” का 60वां क्रमिक सर्वेक्षण (जनवरी-जून-2004) रुग्णता और स्वास्थ्य-रक्षा के विषय में था । व्यापक रूप से NSSO के प्रकाशन एवं रिपोर्ट आर्थिक परिवर्तन के निम्नलिखित पैरामीटरों की सांख्यिकीय सूचना उपलब्ध कराता है:

(i) भूमि तथा पशु जोत (Land and Livestock Holdings) ।

NSSO के सर्वेक्षणों द्वारा एकत्रित किए गए आँकड़े इनके त्रैमासिक जनरलों में प्रकाशित

(ii) भवन दशाएं तथा प्रवास झुग्गी झोंपड़ी में रहने वालों पर विशेष बल देते हुए (Housing Conditions and Migration with special emphasis on Slum Dwellers) |

(iii) भारत में रोजगार तथा बेरोजगार की स्थिति (Employment and Unemployment Status in India) |

किए जाते हैं जिन्हें सर्वेक्षण कहा जाता है और इनकी रिपोर्ट NSSO रिपोर्टों के रूप में लोकप्रिय हैं।

(iv) भारत में उपभोक्ता व्यय, जिसमें लोगों की विभिन्न श्रेणियों के उपभोक्ता व्यय का स्तर तथा प्रतिमान शामिल हैं (Consumer Expenditure in India, including level and pattern of consumer expenditure of diverse categories of the people)

जनगणना की तुलना में NSSO की रिपोर्ट व प्रकाशन जनसंख्या / समग्र ( Universe) के सैम्पल अध्ययन पर आधारित होते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण एजेंसियाँ जो सांख्यिकीय आँकड़े संग्रहीत संसाधित तथा सारणीबद्ध करती हैं। वे हैं: राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO), भारत का महापंजीकार (RGI), वाणिज्यिक सतर्कता एवं सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCIS) और श्रम ब्यूरो (Labour Bureau) 

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