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अध्याय-9- आगम / संप्राप्ति की धारणाएँ (Concepts of Revenue)

■ आगम / संप्राप्ति से क्या अभिप्राय है?

■ आगम / संप्राप्ति की धारणाएँ – कुल, औसत एवं सीमांत आगमं

■  कुल, औसत तथा सीमांत आगम / संप्राप्ति में पारस्परिक संबंध

■ विभिन्न बाजारों में पाए जाने वाले आगम / संप्राप्ति वक्रों का एक तुलनात्मक अध्ययन

1.आगम / संप्राप्ति से क्या अभिप्राय है(What is Revenue?)

आपकी आइसक्रीम बनाने की एक फैक्ट्री है । आप प्रतिदिन एक हजार आइसक्रीम बनाते हैं। आपने इन आइसक्रीमों को बेचकर एक हजार रुपये प्राप्त किए। अर्थशास्त्र में इन एक हजार रुपयों को आगम ( Revenue) कहा जाएगा। अतएव किसी वस्तु की बिक्री करने से एक फर्म को जो कुल रकम प्राप्त होती है उसे फर्म का आगम ( Revenue) कहा जाएगा।

डूले के अनुसार, “एक फर्म का आगम उसकी बिक्री प्राप्ति या वस्तु की विक्री से मिलने वाली मौद्रिक प्राप्तियाँ है ।” (The Revenue of a firm is its sales receipts or money receipts from the sale of a product. – Dooley) इसे बिक्री से प्राप्त धन (Sale Proceeds) भी कहा जाता है।

2. आगम / संप्राप्ति की धारणाएँ(Concepts of Revenue) 

आगम की तीन मुख्य धारणाएँ हैं:

(1) कुल आगम (Total Revenue)

(2) सीमांत आगम (Marginal Revenue)

(3) औसत आगम (Average Revenue)

(1) कुल आगम/संप्राप्ति (Total Revenue):-

एक फर्म द्वारा अपने उत्पादन की एक निश्चित मात्रा को बेचकर जो धन प्राप्त होता है उसे कुल आगम कहा जाता है। मान लीजिए यदि 100 आइसक्रीम ₹ 50 आइसक्रीम की दर से बेची जाती हैं तो फर्म का कुल आगम (TR):

मात्रा (Quantity) x कीमत (Price) = कुल आगम (Total Revenue)

100 × ₹ 50 = ₹ 5,000 होगा।

परिभाषा ( Definition ):-

डूले के अनुसार, “कुल आगम एक फर्म द्वारा प्राप्त सब बिक्री राशि, प्राप्तियों या आगम का जोड़ है । ” (Total revenue is the sum of all sale receipts or income of a firm.

(2) सीमांत आगम / संप्राप्ति (Marginal Revenue) 

सीमांत आगम से अभिप्राय है किसी वस्तु की एक अधिक या कम इकाई की बिक्री से कुल आगम में होने वाला परिवर्तन।

परिभाषा ( Definition):-

  • फर्ग्यूसन के अनुसार, ” एक फर्म द्वारा अपने उत्पादन की एक इकाई कम या अधिक बेचने से कुल आगम में जो अंतर आता है उसे सीमांत आगम कहा जाता है । ” (Marginal revenue is the change in total revenue which results from the sale of one more or one less unit of output. -Ferguson)

सीमांत आगम का अनुमान लगाने के लिए या तो कुल आगम में होने वाले परिवर्तन (ΔTR) को वस्तु की मात्रा में होने वाले परिवर्तन (AQ) से भाग दे दिया जाता है या इसका अनुमान n वस्तु के कुल आगम में से n – 1 वस्तु के कुल आगम को घटाकर लगाया जाता है।

                                               कुल आगम में परिवर्तन 

                           MR =————————————–

                                               बेची गई मात्रा में परिवर्तन 

                                                         ΔTR 

                                         MR=————-

                                                         ΔΟ 

ध्यान रखिए सीमांत आगम वस्तु की अंतिम इकाई की बिक्री से प्राप्त आगम नहीं है। अर्थशास्त्र में सीमांत शब्द का प्रयोग ‘अतिरिक्त’ के लिये किया जाता है। अतएव सीमांत आगम से अभिप्राय है उत्पादक को वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई की बिक्री से प्राप्त आगम।

अथवा

        MR = TR– TRn-1 

(यहाँ, MR = सीमांत आगम; A = परिवर्तन, TR = कुल आगम; 4Q = बेची गई मात्रा में परिवर्तन; TR = n इकाई का कुल आगम; TRn−1 = n – 1 इकाई का कुल आगम।)

मान लीजिए जब किसी वस्तु की 10 इकाइयाँ बेची जाती हैं तो कुल आगम ₹ 1,000 है। इसके विपरीत जब 11 इकाइयाँ बेची जाती हैं तो कुल आगम बढ़कर ₹1,100 हो जाता है, अतएव एक अधिक इकाई की बिक्री करने से ₹ 100 का अतिरिक्त आगम प्राप्त होता है। इसे सीमांत आगम कहा जायेगा । अन्य शब्दों में,

                                 MR = TRn – TRn-1 

                         MR= TR11 – TR10 = ₹ 1,100 – ₹ 1,000 = ₹ 100 

  अथवा

                                                              ΔTR 

                                          MR =    ————–

                                                              ΔΟ 

 

                     1,100- 1,000                      100

                ———————-       =     ———–       =    100 

                     11 – 10                                    1 

(3) औसत आगम / संप्राप्ति से क्या  अभिप्राय (Average Revenue):-

औसत आगम से अभिप्राय है उत्पादन की प्रति इकाई की बिक्री से प्राप्त आगम । यदि =

AR = TR/Q          1000/100 =₹10

अतएव औसत आग़म वह दर है जिस पर कोई वस्तु बेची जाती है। दर क्या है ? निश्चित रूप में किसी वस्तु की कीमत को दर कहा जाता है। इसलिए औसत आगम वस्तु की कीमत है ।

AR (औसत आगम) = P (कीमत )

औसत आगम= कुल आगम / बेची गई मात्रा

AR= TR/Q

( यहाँ, P = प्रति इकाई कीमत Q = वस्तु की मात्रा ।)

परिभाषा ( Definition):-

मैकोनल के अनुसार, “किसी वस्तु की बिक्री से प्राप्त होने वाला प्रति इकाई आगम औसत आगम कहलाता है । ” (Average Revenue is the per unit revenue received from the sale of commodity.-McConnell)

अभ्यास कीजिए (Let us Practice)

हम एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म का उदाहरण लेते हैं। एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म कीमत स्वीकारक है तथा हम जानते हैं कि कीमत = AR| इसलिए हम लिख सकते हैं कि पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म वस्तु की कितनी भी मात्रा एक दी हुई कीमत या दिए हुए AR पर बेच सकती है। मान लीजिए वस्तु की कीमत = ₹10 है अर्थात् AR = ₹10। फर्म 10, 20, 30, 40, 50 या कोई भी मात्रा प्रचलित कीमत ₹10 प्रति इकाई की दर से बेच सकती है। इस उदाहरण के आधार पर निम्नलिखित तालिका द्वारा TR, AR तथा MR की धारणाओं को अधिक स्पष्ट किया जा सकता है।

                                 तालिका 1. एक फर्म का कुल औसत तथा सीमांत आगम 

                               (Total, Average and Marginal Revenue of a Firm) 

उत्पाद (Q) कीमत या औसत आगम ( P= AR) कुल आगम

(TR = AR × Q)

सीमांत आगम

(MR =TRn-TRn-1)

1 10 10 10-0=10
2 10 20 20-10=10
3 10 30 30-20=10
4 10 40 40-30=10
5 10 50 50-40=10

 उपरोक्त तालिका द्वारा निम्नलिखित संबंध स्पष्ट हो जाते हैं:

  • TR = AR × Q

₹ 10 × 5 = ₹ 50

TR =  ∑ MR (सभी MR मूल्यों का जोड़)

10+ 10+ 10+10+10=50

(2) AR =TR/Q           50/10=5 (कीमत)

(3) MR = TRn – TRn-1 = ₹50 – ₹40 = ₹ 10

(5 इकाइयों का कुल आगम) – (4 इकाइयों का कुल आगम) =10

यह ध्यान रखिए कि जब AR स्थिर होता है तो AR = MR | 

कुछ अन्य संबंध (A Few More Relationships) 

तालिका 1 से कई अन्य संबंध भी स्पष्ट हो जाते हैं, जैसे

(1) MR किसी वस्तु की एक अधिक इकाई की बिक्री से कुल आगम में होने वाली वृद्धि है।

(2) यदि कीमत (अर्थात् AR) स्थिर रहती है तो MR (MR = AR) भी स्थिर रहता है।

(3) स्थिर MR से अभिप्राय है कि वस्तु की अतिरिक्त इकाइयाँ बेचने से कुल आगम में

स्थिर वृद्धि होगी। अर्थात् कुल आगम में स्थिर समान दर से वृद्धि होगी ।

क्या MR शून्य या ऋणात्मक हो सकता है ? (Can MR be Zero or Negative?) 

हाँ। MR शून्य या ऋणात्मक हो सकता है। माँग वक्र या कीमत रेखा औसत आगम वक्र ही होता है

फर्म की औसत आगम वक्र ही उसकी माँग वक्र होती है क्योंकि AR से अभिप्राय है कीमत। इसलिए AR वक्र किसी फर्म के उत्पादन की कीमत तथा मात्रा में संबंध प्रकट करती है।

यह निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट हो जाता है।

 तालिका 2. शून्य या ऋणात्मक सीमांत आगम

                                 (Zero or Negative Marginal Revenue)

औसत आगम या कीमत (₹) उत्पाद

(Q)

कुल आगम (TR) (₹) सीमांत आगम (MR) (₹)
100 1 100 100
80 2 160 60
40 3 160 0
30 4 150 -10

उपरोक्त तालिका से निम्नलिखित संबंध स्पष्ट हो जाते हैं:

(i) एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में जब कीमत कम हो रही होती है सीमांत आगम शून्य या ऋणात्मक हो सकता है।

(ii) जब MR = 0 होता है तब TR का बढ़ना बंद हो जाता है। इसलिए जब MR = 0 तो TR अधिकतम होता है ।

(iii) जब MR ऋणात्मक होता है तो TR कम होना शुरू हो जाता है।

(iv) जब MR कम हो रहा होता है तो प्रत्येक अतिरिक्त इकाई की बिक्री के फलस्वरूप TR में पहले से कम वृद्धि होती जाती है । इसलिये TR में घटती दर से वृद्धि होती है।

ऋणात्मक सीमांत आगम 

ऋणात्मक सीमांत आगम एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में उस स्थिति में होता है जब कीमत कम हो रही होती है। यह पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में संभव नहीं होता क्योंकि इसमें कीमतें स्थिर रहती

कुल, औसत तथा सीमांत आगम / संप्राप्ति में संबंध (Relation between TR, AR and MR)

  1. कुल आगम (TR) = AR × Q or EMR
  2. औसत आगम (AR) = TR /Q
  3. सीमांत आगम (MR) =ΔTR/ΔQ  या MR = TRn – TRn-1
  4. जब TR बढ़ती दर पर बढ़ता है तो MR भी बढ़ता है ।
  5. जब TR स्थिर दर पर बढ़ता है तो MR स्थिर रहता है ।
  6. जब TR घटती दर पर बढ़ता है तो MR घटता है।
  7. जब TR अधिकतम होता है तो MR शून्य होता है।
  8. जब TR घटता है तो MR ऋणात्मक हो जाता है।
  9. जब AR घट रहा होता है तो MR रेखा AR रेखा के नीचे होती है। जैसा कि एकाधिकार या एकाधिकारी प्रतियोगिता की स्थिति में होता है।
  10. यदि AR स्थिर रहता है तो MR = AR होता है। यह पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में होता है तथा दोनों ही OX अक्ष के समानांतर सरल रेखा द्वारा दिखाए जाते हैं।
  11. AR सदैव धनात्मक रहता है। यह शून्य या ऋणात्मक नहीं हो सकता परंतु MR धनात्मक, शून्य या ऋणात्मक हो सकताहै।

कुल, औसत तथा सीमांत आगम / संप्राप्ति में पारस्परिक संबंध – चित्र द्वारा उदाहरण

(Relationship among Total, Average and Marginal Revenue-A Diagrammatic Illustration) 

आगम की इन तीनों धारणाओं के संबंध को चित्र 1 द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। चित्र 1 (A) में कुल आगम वक्र तथा 1 (B) में औसत तथा सीमांत आगम वक्र प्रकट किए गए हैं। इन चित्रों के OX- अक्षों पर उत्पादन की इकाइयाँ तथा OY – अक्षों पर आगम प्रकट किया गया है।

figure-1

चित्र 1(A) से ज्ञात होता है कि कुल आगम वक्र बिंदु O से B बिंदु तक बढ़ रहा है । B बिंदु पर जब कुल आगम अधिकतम है तो जैसा कि चित्र 1(B) से ज्ञात होता है सीमांत आगम शून्य (Zero) है। बिंदु B के पश्चात कुल आगम वक्र नीचे की ओर गिरने लगा है। इसका अभिप्राय यह है कि वस्तु की अधिक इकाइयाँ बेचने पर भी कुल आगम कम होता जा रहा है। इस अवस्था में सीमांत आगम ऋणात्मक (Negative) हो जाता है। चित्र 1(B) से ज्ञात होता है कि AR औसत आगम वक्र तथा MR सीमांत आगम वक्र है। इन वक्रों का ढलान नीचे की ओर है। इससे सिद्ध होता है कि उत्पादन की अधिक मात्रा की बिक्री करने के फलस्वरूप न केवल औसत आगम बल्कि सीमांत आगम भी कम होता जाएगा। उत्पादन की ‘M’ इकाई का सीमांत आगम शून्य हो गया है तथा उससे अगली इकाई का ऋणात्मक हो गया है। इस चित्र से यह भी ज्ञात होता है जब औसत आगम तथा सीमांत आगम दोनों गिर रहे हैं तो सीमांत आगम औसत आगम से कम होता है। सीमांत आगम धनात्मक (Positive), शून्य (Zero), ऋणात्मक (Negative) हो

सकता है परंतु औसत आगम धनात्मक ही होता है। औसत आगम शून्य उस अवस्था में होता है, जब वस्तु मुफ्त में ही दी जाए। वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता ।

बिंदु B तक TR वक्र घटती दर पर बढ़ रहा है। यह इसलिए क्योंकि MR गिर रहा है। बिंदु B पर TR अधिकतम है क्योंकि MR = 0 (शून्य)। बिंदु B के बाद TR गिरना शुरू हो जाता है । यह इसलिए क्योंकि MR ऋणात्मक है। शून्य कीमत की स्थिति में AR X- अक्ष को छूता है। इसके अनुरूप TR भी X- अक्ष को छूता है।

4. विभिन्न बाजारों में पाए जाने वाले आगम / संप्राप्ति वक्रों का एक तुलनात्मक अध्ययन

(A Comparative Study of Revenue Curves in Different Markets) 

प्रतियोगिता के आधार पर बाजार तीन प्रकार के होते हैं : –

पूर्ण प्रतियोगिता में AR तथा MR दोनों एक ही रेखा द्वारा प्रकट किये जाते हैं।

(1) पूर्ण प्रतियोगिता ( Perfect Competition )

( 2 ) एकाधिकार ( Monopoly)

( 3 ) एकाधिकारी प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)।

भिन्न-भिन्न प्रकार के बाजारों में एक फर्म के आगम वक्र में अंतर पाया जाता है:

(1) पूर्ण प्रतियोगिता में आगम वक्र ( Revenue Curves Under Perfect Competition):

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी समरूप वस्तु के बहुत से क्रेता तथा विक्रेता होते हैं पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में फर्म केवल बाजार कीमत पर ही अपने उत्पादन का विक्रय कर सकती है। यदि कोई फर्म अपने उत्पादन को बाजार कीमत से अधिक कीमत पर बेचना चाहें तो चूंकि उपभोक्ता को बाजार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान है तथा वह पूर्णतया गतिशील है, इसलिए फर्म अपने सभी उपभोक्ता खो बैठेगी अर्थात् वह बाजार कीमत से अधिक कीमत नहीं ले सकती। जहाँ तक फर्म द्वारा वस्तु की कीमत बाजार कीमत से कम लेने का प्रश्न है, पूर्ण

क्षैतिज सरल माँग रेखा (जब औसत आगम स्थिर होता है) से प्रकट होता है कि AR = MR इसलिये AR तथा MR दोनों ही एक रेखा द्वारा प्रकट किये जाते हैं।

आगम / संप्राप्ति की धारणाएँ प्रतियोगिता में उत्पादक को इसमें किसी प्रकार का लाभ नहीं होगा, चूँकि उसका उत्पादन कुल बाजार पूर्ति का बहुत कम भाग है तथा वह दी हुई बाजार कीमत पर अपना सारा उत्पादन बेच सकता है।

सारांश में, पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में फर्म की प्रत्येक इकाई की विक्रय कीमत समान होती है। परिणामस्वरूप, उसका सीमांत तथा औसत आगम बराबर होता है (Price = Average Revenue = Marginal Revenue)। इसे (AR = MR) चित्र 2 में DD वक्र द्वारा दिखाया गया है जो कि OX अक्ष के समानांतर है। चित्र से ज्ञात होता है कि पूर्ण प्रतियोगी फर्म ₹ 5 कीमत पर कितना भी उत्पाद बेच सकती है। अतएव फर्म का औसत तथा सीमांत आगम वक्र पूर्णतया. लोचदार होता है।

Figure-

पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म की कीमत रेखा या संप्राप्ति वक्र एक क्षैतिज सरल रेखा होती है। AR और MR एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं। यह इसलिए क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म कीमत स्वीकारक होती हैं। दी हुई कीमत पर यह उत्पाद की कितनी भी मात्रा बेच सकती है।

पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा के नीचे का क्षेत्र = कुल आगम 

(Under Perfect Competition Area under Price Line = TR) 

Figure-

हम जानते हैं कि कीमत = AR (औसत आगम) है और पूर्ण प्रतियोगी फर्म के लिए कीमत निश्चित होती है। अतः कीमत रेखा या AR वक्र एक क्षैतिज रेखा होती है । जब AR स्थिर रहता है तब AR = MR | अत: कीमत रेखा वही होती है जो MR वक्र होती है। हम जानते हैं कि TR = EMR | इसलिए MR वक्र के नीचे का क्षेत्र (दिए हुए उत्पादन के अनुरूप) = TR | क्योंकि AR – MR, इसलिए AR वक्र ( अथवा कीमत रेखा) के नीचे का क्षेत्र भी कुल आगम (TR) के बराबर होगा ।

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