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Chapter-1st

व्यष्टि अर्थशास्त्र क्या है?

अंग्रेजी भाषा में अर्थशास्त्र को Economics कहा जाता है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Oikos (घरेलू,गृह ) तथा Nemein (प्रबंध) से लिया गया है। इनका अर्थ होता है गृह प्रबंध।

अर्थशास्त्र हिंदी के दो शब्दों, अर्थ = धन तथा शास्त्र = वैज्ञानिक अध्ययन से मिलकर बना है।
निम्नलिखित तत्वों से परिभाषा बनाई जा सकती है।

  1. आवश्यकताएँ- असीमित
  2. साधन [धन]- सीमित
  3. अधिक से अधिक आवश्यकताओं की संतुष्टि

प्रत्येक गृहस्थ की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं, परंतु उन्हें संतुष्ट करने वाले अधिकतर साधन सीमित होते हैं सीमित साधनों को असीमित आवस्यकता  पर इस प्रकार खर्च करना है कि अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो जाए ,जिस शास्त्र में यह अध्ययन किया जाता है उसे अर्थशास्त्र कहते है

अर्थशास्त्र की विभिन्न अर्थशात्रियो द्वारा दी गई परिभाषाएँ हैं।

(1) धन संबंधी परिभाषा

आधुनिक अर्थशास्त्र के पिता एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तके ‘An Enquiry into the Nature and Causes of Wealth of Nations‘ में अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी है ।
“अर्थशास्त्र राष्ट्रों के धन की प्रकृति तथा कारणों की खोज है।” (Economics is an enquiry into the nature and causes of wealth of nations. —Adam Smith)
इस परिभाषा के अनुसार, अर्थशास्त्र के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि धन क्या है, धन की मात्रा को कैसे बढ़ाया जा सकता है, धन से अभिप्राय सब प्रकार की भौतिक वस्तुओं से है ।
आलोचना (Criticism) : अर्थशास्त्र की धन संबंधी परिभाषा दोषपूर्ण है। इस परिभाषा के अनुसार अर्थशास्त्र में मनुष्य के कल्याण के स्थान पर केवल धन का अध्ययन किया जाता है। परंतु धन तो मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने का केवल साधन मात्र है। धन को मनुष्य से अधिक महत्त्व देना अनुचित है, इसलिए कार्लाइल, रस्किनमौरिस आदि लेखकों ने अर्थशास्त्र की धन संबंधी परिभाषा के कारण इसकी आलोचना की है। उन्होंने इसे दुखदायी विज्ञान कह कर इसकी निन्दा की है।
(ii) भौतिक कल्याण संबंधी परिभाषा
(Material Welfare Definition ) 
डॉमार्शल ने 1890 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘Principles of Economics‘ में अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी है।
अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय के संबंध में मानव जाति का अध्ययन है। यह व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्यों के उस भाग का अध्ययन करता है जिसका घनिष्ठ संबंध कल्याण प्रदान करने वाले भौतिक पदार्थों की प्राप्ति तथा उनका उपयोग करने से है
(Economics is a study of mankind in the ordinary business of life. It examines that part of individual and social action which is most closely connected with the attainment and use of material requisites of well being. – Marshall)
इस परिभाषा के अनुसार अर्थशास्त्र में सामाजिक मनुष्य के उन कार्यों का अध्ययन किया जाता है, जिन्हें वे अपना कल्याण बढ़ाने वाले भौतिक पदार्थों को प्राप्त करने तथा उनका उपयोग करने के लिए करते हैं। अर्थशास्त्र में अभौतिक पदार्थों या सेवाओं का अध्ययन नहीं किया जाता। जीवन के साधारण व्यवसाय से अभिप्राय मनुष्य के आर्थिक कार्यों से है। आर्थिक कार्य वे कार्य हैं जिनका संबंध धन कमाने तथा खर्च करने से है ।
(iii) दुर्लभता संबंधी परिभाषा
(Scarcity Definition) 
रोबिन्स ने 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक An Essay on the Nature and Significance of Economic Science‘ में अर्थशास्त्र की दुर्लभता संबंधी परिभाषा दी है।
रोबिन्स के अनुसार, अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो विभिन्न उपयोगों वाले सीमित साधनों तथा उद्देश्यों से संबंध रखने वाले मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है ।” (Economics is a science that studies human behaviour as a relationship between ends and scarce means which have alternative uses. —Robbins)
रोबिन्स के अनुसार, अर्थशास्त्र में मनुष्यों के उन कार्यों का अध्ययन किया जाता है जिन्हें वे अपनी असीमित आवश्यकताओं  को पूरा करने वाले सीमित साधनों की प्राप्ति के लिए करते हैं। ये साधन न केवल सीमित ही होते हैं अपितु इनके वैकल्पिक प्रयोग भी होते हैं। इस प्रकार अर्थशास्त्र (A) असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने वाले, (B) सीमित साधनों जिनके विभिन्न या वैकल्पिक उपयोग होते हैं, (C) के चुनाव का अध्ययन है।  
(iv) विकास – केंद्रित परिभाषा
(Growth-Oriented Definition)
आधुनिक अर्थशास्त्री जैसे नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री प्रो. सैम्युअलसन, पीटरसन, फर्गुसन आदि के अनुसार,
“अर्थशास्त्र वह शास्त्र है जिसमें मनुष्य के उन कार्यों का अध्ययन किया जाता है जो वे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करने के लिए सीमित साधनों के उचित प्रयोग के संबंध में करते हैं
इन अर्थशास्त्रियों ने अपनी परिभाषा में मार्शल तथा रोबिंन्स दोनों की परिभाषाओं को शामिल किया है। इनके अनुसार अर्थशास्त्र का संबंध सीमित साधनों के कुशलतम बंटवारे तथा उपयोग से है जिसके फलस्वरूप आर्थिक विकास की दर को तेज किया जा सके तथा सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जा सके।
इन परिभाषाओं के मिश्रण से ही हम अर्थशास्त्र की एक अधिक उचित परिभाषा की रचना कर सकते हैं जैसा कि निम्नलिखित से ज्ञात होता है।
अर्थशास्त्र मानव व्यवहार का वह विज्ञान है
आवश्यकतएँ- असीमित 
साधन- सीमित  वैकल्पिक उपयोग
उद्देश्य- अधिकतम संतुष्टि, विकास तथा कल्याण

अर्थशास्त्र के कितने मूल अंश हैं?

Principal Components of Economics

नार्वे के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री तथा अर्थशास्त्र के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रैगनर फ्रिश ने अर्थशास्त्र को दो भागों में बांटा है
अर्थशास्त्र के दो मूल अंश व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र

1.व्यष्टि-अर्थशास्त्र
अंग्रेजी भाषा में ‘व्यष्टि’ को Micro‘ कहा जाता है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द ग्रीक भाषा के शब्द Mikros से लिया गया है जिसका अर्थ है छोटा (SMALL)
व्यष्टि- अर्थशास्त्र केवल एक आर्थिक इकाई की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है, जैसे एक व्यक्तिगत गृहस्थ की नमक के लिए माँग, अथवा कुछ आर्थिक इकाइयों के छोटे से समूह जैसे बाजार की नमक के लिए माँग । अतएव व्यष्टि – अर्थशास्त्र में हम व्यक्तिगत इकाइयों जैसे एक उपभोक्ता, एक फर्म, एक उद्योग की आर्थिक क्रियाओं तथा किसी एक विशिष्ट वस्तु के मूल्य का अध्ययन करते हैं।
2.समष्टि अर्थशास्त्र
अंग्रेजी भाषा में ‘समष्टि’ को Macro’ कहा जाता है । अंग्रेजी भाषा का यह शब्द ग्रीक भाषा के शब्द Makros से लिया गया है, जिसका अर्थ है बड़ा (Large)। यह संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक क्रियाओं एवं आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है। राष्ट्रीय आय, रोजगार एवं कीमत स्तर से संबंधित विषय समष्टि अर्थशास्त्र के मूल अंग है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र के विभिन्न अध्ययन क्षेत्र (Scope) कौन से हैं

अथवा

व्यष्टि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री (Subject Matter) की व्याख्या करे

(1) वस्तु कीमत निर्धारण के सिद्धांत
(2साधन कीमत के सिद्धांत
(3) माँग के सिद्धांत
(4) उत्पादन के सिद्धांत
1.कीमत निर्धारण का सिद्धांत (Theory of Price Determination):
व्यष्टि- अर्थशास्त्र में कीमत निर्धारण के सिद्धांत का भी अध्ययन किया जाता है । उत्पादित वस्तुओं को विभिन्न परिस्थितियों में खरीदा व बेचा जा सकता है विभिन्न बाज़ारो में, जैसे कि पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में वस्तुओं की कीमत निर्धारण से संबंधित समस्याओं का अध्ययन कीमत निर्धारण सिद्धांत में किया जाता है। इस सिद्धांत में माँग तथा पूर्ति की दशाओं का भी विश्लेषण किया जाता है।
(2) साधन कीमत सिद्धांत (Theory of Factor Pricing):
वस्तुओं को बेचने से जो आय प्राप्त होती है उसका उत्पादन के साधनों में साधन कीमत अर्थात मजदूरी, ब्याज, लगान, लाभ आदि के रूप में बँटवारा कर दिया जाता है। साधन कीमत के निर्धारण अर्थात बँटवारे से संबंधित समस्याओं का अध्ययन साधन या कारक कीमत के सिद्धांत में किया जाता है।
(3)माँग का सिद्धांत (Theory of Demand ) :
व्यष्टि अर्थशास्त्र में यह अध्ययन किया जाता है कि किसी वस्तु की माँग कैसे निर्धारित होती है। इसके अंतर्गत माँग के सिद्धांत का भी अध्ययन किया जाता है। उपभोक्ता की माँग तथा उसकी अधिकतम संतुष्टि से संबंधित सिद्धांत, माँग का सिद्धांत कहलाता है। इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि एक उपभोक्ता अपनी निश्चित आय को बाजार मूल्यों पर विभिन्न वस्तुओं में किस प्रकार बाँटता है ।
(4)उत्पादन का सिद्धांत (Theory of Production):
व्यष्टि अर्थशास्त्र में उत्पादन के सिद्धांत का भी अध्ययन किया जाता है। एक फर्म उत्पादन के साधनों को एकत्रित करके उत्पादन करती है। इनसे संबंधित उत्पादन फलन तथा उत्पादन के नियमों का अध्ययन उत्पादन के सिद्धांत में किया जाता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन के महत्व  की व्याख्या करें  ।

 1.अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली (Operation of an Economy):
इसका सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग यह समझाने में है कि अर्थव्यवस्था किस प्रकार कार्य करती है।
इसके द्वारा ज्ञात होता है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न अंग जैसे उपभोक्ता, फर्म आदि कुशलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं या नहीं।
2. भविष्यवाणी (Prediction):
व्यष्टि-अर्थशास्त्र के सिद्धांत भविष्यवाणी के आधार पर बनाये जा सकते हैं। परंतु ये भविष्यवाणियाँ कुछ आँकड़ो व शर्तों पर आधारित होती हैं।यदि एक विशेष घटना घटती है तो उसके विशेष परिणाम निकलेंगे। उदाहरण के लिए यदि माँग बढ़ेगी तो कीमतों के बढ़ने की सम्भावना होगी।
3. आर्थिक नीतियाँ (Economic Policies):
व्यष्टि अर्थशास्त्र का प्रयोग आर्थिक नीति बनाने के लिये किया जा सकता है। कीमत नीति एक ऐसा उपकरण है जो इस कार्य में सहायक सिद्ध होती है इसके प्रयोग से हम अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली सरकारी नीतियों का विश्लेषण कर सकते हैं। हम यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि सरकार की नीतियों का संसाधनों के बँटवारे पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
(4)आर्थिक कल्याण (Economic Welfare):
व्यष्टि अर्थशास्त्र द्वारा आर्थिक कल्याण की दशाओं का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। यह आदर्शात्मक अर्थशास्त्र (Normative Economics) का मुख्य विषय है। व्यष्टि अर्थशास्त्र इस बात का सुझाव देता है कि आर्थिक कल्याण के आदर्श को कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
(5) प्रबन्ध संबंधी निर्णय (Managerial Decision):
व्यावसायिक फर्में व्यष्टि – अर्थशास्त्र का प्रयोग प्रबंध संबंधी निर्णय लेने के लिए करती हैं। इस संबंध में लागतों (Costs) तथा माँग के विश्लेषण द्वारा बनाई गई नीतियों का बहुत महत्त्व है।
(6) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सहयोग (Helpful in International Trade):
व्यष्टि अर्थशास्त्र के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं जैसे व्यापार शेष असंतुलन, विदेशी विनिमय दर आदि को समझा जा सकता।

अर्थशास्त्र की प्रकृति कैसी है (Nature of Economics)

किसी भी विषय की प्रकृति उसमें निहित विशेषता पर निर्भर करती है
है कि वह विषय विज्ञान है, अथवा कला,अर्थशास्त्र विज्ञान और कला दोनों ही है
क्योंकि इसमें कला और विज्ञान दोनों की विशेषें पाई जाती हैं पहले जानते है विज्ञानं किसे कहते हैं
विज्ञान वह शास्त्र है जिसमें किसी विषय का क्रमागत अध्ययन किया जाता हो और जिसके विभिन्न चरों में कारण व परिणाम का सम्बंध हो।
विज्ञान की विशेषता

  1. विषय का क्रमागत अध्ययन
  2. इसके वैज्ञानिक नियम होते हैं
  3. नियमों की सत्यता की जांचकीजा सकती है

अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है क्योंकि इसमें मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है विज्ञान की भांति अर्थशास्त्र में नियम हैं व उनकी आंकड़ो के आधार पर सत्यता जांच की जा सकती  हैं जिसके कारण हम इसे विज्ञान कह सकते हैं जो नियम निम्न प्रकार है

(i) क्रमागत अध्ययन ( Systematic Study):

एक सामाजिक विज्ञान के रूप में, शास्त्र में मनुष्य के व्यवहार का क्रमागत अध्ययन किया जाता है। इसका केंद्र-बिंदु है: 1) उपभोक्ताओं की अधिकतम संतुष्टि, (2) उत्पादकों के अधिकतम लाभ तथा (3) समाज के अधिकतम सामाजिक कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करना ।
(ii) वैज्ञानिक नियम (Scientific Laws ):

अर्थशास्त्र के नियम जैसे: माँग का नियम, पूर्ति का नियम, आदि वैज्ञानिक नियम हैं। ये नियम विभिन्न चरों के कारण तथा परिणाम (Cause and Effect) में संबंध स्थापित करते हैं। माँग के नियम से प्रकट होता है किसी वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाएगी। इस प्रकार यह नियम कीमत में होने वाले परिवर्तन (जो कारण हैं) के फलस्वरूप माँग में होने वाले परिवर्तन (जो प्रभाव हैं) में विपरीत संबंध स्थापित करता है।
(iii) नियमों की सत्यता (Validity of the Laws ):

प्रत्येक विज्ञान अपने नियमों की सत्यता की जाँच भी करता है। अर्थशास्त्र के माँग के नियम की सत्यता की जाँच की जा सकती है । अर्थशास्त्र प्राकृतिक विज्ञान जितना निश्चित नहीं है, परंतु यह भी एक विज्ञान है। यह एक सामाजिक विज्ञान एवं कला है जो आर्थिक समस्याओं एवं नीतियों का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करता है। इसका उद्देश्य एक अर्थव्यवस्था की विभिन्न आर्थिक संस्थाओं में वृद्धि तथा स्थिरता प्रदान करना है ।
अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान के रूप में (Economics as a Positive Science)
वास्तविक विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें किसी विषय की सही तथा वास्तविक स्थिति का अध्ययन किया जाता है। एक विज्ञान के रूप में अर्थशास्त्र के कथन वास्तविक कथन होते हैं। वास्तविक कथन वे कथन हैं-
जिनसे ज्ञात होता है कि ‘क्या है ‘ (What is?), ‘क्या था ? ‘ ( What was ? ) तथा विशेष परिस्थितियों में ‘क्या होगा ?’ (What ought to be?)।
इन कथनों की जाँच की जा सकती है हम इन कथनों की तथ्यों के आधार पर जाँच करके यह नतीजा निकाल सकते हैं कि ये कथन सही हैं या गलत हैं। ये कथन किसी प्रकार की सलाह नहीं देते। वास्तविक अर्थशास्त्र के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आवश्यकताएँ असीमित हैं, उन्हें पूरा करने वाले अधिकतर साधन दुर्लभ हैं। इन दुर्लभ साधनों के अनेक उपयोग हैं। ये सभी बातें वास्तविक हैं। एक वास्तविक विज्ञान तथ्यों के बारे में किसी प्रकार का सुझाव नहीं देता है।
अर्थशास्त्र एक आदर्शात्मक विज्ञान के रूप में (Economics as a Normative Science) 
अनेक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जैसे मार्शल, पीगूआदि यह मानते हैं कि अर्थशास्त्र एक आदर्शात्मक विज्ञान भी है
आदर्शात्मक विज्ञान वह विज्ञान है जिसके अध्ययन से ज्ञात होता है कि क्या होना चाहिए? (What ought to be?)
इसका उद्देश्य आदर्शों या लक्ष्यों को निर्धारित करना है। यह विज्ञान समस्याओं को सुलझाने के लिए सुझाव भी देता है । उदाहरण के तौर पर एक आदर्शात्मक विज्ञान के रूप में अर्थशास्त्र कई प्रकार के सुझाव देगा जैसे: कीमतों में स्थिरता पाई जानी चाहिए, आय का समान वितरण होना चाहिए, धनी लोगों को अधिक कर देने चाहिए तथा निर्धन लोगों को अधिक मजदूरी मिलनी चाहिए, आदि। ये किसी नीति के संबंध में सलाह देते हैं कि यह ठीक है या गलत है।
अर्थशास्त्र के जिस भाग में आदर्शात्मक कथनों का अध्ययन किया जाता है उसे आदर्शात्मक अर्थशास्त्र (Normative Economics) कहा जाता है। आदर्शात्मक कथनों की तथ्यों के आधार पर जांच नहीं की जा सकती।
संक्षेप में अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान भी है और आदर्शात्मक विज्ञान भी है।

अर्थशास्त्र कला के रूप में
(Economics as an Art ) 
कला- किसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग कला कहलाता है।
आप जानते हैं कि भारत में बेरोजगारी पाई जाती है। यह सूचना अर्थशास्त्र के वास्तविक विज्ञान होने से प्राप्त होती है। आप यह भी जानते हैं कि सरकार का लक्ष्य है कि बेरोज़गारी दूर होनी चाहिए तथा पूर्ण रोजगार की स्थिति प्राप्त होनी चाहिए। यह सूचना आदर्शात्मक विज्ञान से प्राप्त होती है। पूर्ण रोज़गार के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाती है।
नियोजन का मार्ग एक कला है क्योंकि निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए यह ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग है।
इसलिए इसी प्रकार अर्थशास्त्र में भी हम अपने व्यवहारिक ज्ञान के द्वारा विभिन्न समस्याओं का समाधान करते हैं तो जो विशेषता कला में है वही अर्थशास्त्र में है तो अर्थशास्त्र भी एक कला हैं।
अंत में, अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है।

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