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Chapter-2 अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएँ 
1.आर्थिक समस्या क्या है? 
(What is an Economic Problem ? ) 
मनुष्य की आवश्यकताएँ- असीमित
साधन- सीमित
अतएव प्रत्येक अर्थव्यवस्था को साधनों का चुनाव करना पड़ता है
साधनों के चुनाव संबंधी इस समस्या को ही आर्थिक समस्या कहा जाता है।
क्या चुनाव करना पड़ेगा-
अर्थव्यवस्था के साधनों (Resources) जैसे- भूमि, श्रम, पूँजी आदि का किस प्रकार कुशलतापूर्वक प्रयोग किया जाए। उदाहरण के लिए, अर्थव्यवस्था को निर्णय लेना पड़ता है कि कितने साधनों का प्रयोग उद्योगों के विकास के लिए तथा कितने साधनों का प्रयोग कृषि के विकास के लिए किया जाए।
अतः आर्थिक समस्या चुनाव की समस्या ( Problem of Choice) या साधनों के वचतपूर्ण प्रयोग की समस्या है। यह ध्यान रखना चाहिए कि आर्थिक समस्या केवल वर्तमान साधनों के वितरण की समस्या ही नहीं बल्कि भविष्य में उनके विकास तथा वितरण की समस्या भी है। अतएव आर्थिक समस्या वह समस्या है जिसका संबंध वर्तमान साधनों के उचित बंटवारे तथा भविष्य में साधनों की वृद्धि और उनके वितरण से है ।
परिभाषा-
एरिक रोल के अनुसार, “आर्थिक समस्या मूल रूप से चुनाव की आवश्यकता से पैदा होने वाली समस्या है। इस चुनाव का संबंध वैकल्पिक प्रयोगों वाले सीमित साधनों के प्रयोग से है। यह साधनों के उपयुक्त उपयोग की समस्या है।”
लेफ्टविच के अनुसार, “आर्थिक समस्या का संबंध मनुष्य की वैकल्पिक आवश्यकताओं के लिए सीमित साधनों के वितरण तथा इन साधनों का अधिक-सेअधिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग करने से है
आर्थिक समस्या के क्या कारण हैं? 
What are the Causes of Economic Problem ?
आर्थिक समस्या के उत्पन्न होने के तीन कारण हैं:
1 .असीमित आवश्यकताएँ
2. सीमित या दुर्लभ साधन
3. वैकल्पिक प्रयोग
1.असीमित आवश्यकताएँ (Unlimited Wants ):

  • मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं। किसी समाज के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं को किसी निश्चित समय में पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं किया जा सकता। वास्तविकता तो यह है कि मनुष्य की आवश्यकताएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं । कुछ वर्ष पूर्व भारत में रंगीन टेलीविजन कोई माँग नहीं थी परंतु अब लगभग प्रत्येक परिवार रंगीन टेलीविजन खरीदना चाहता है। समय के साथ-साथ वीडियो कैमरा, कंप्यूटर, कीमती कार, मोबाइल फोन की माँग में और अधिक वृद्धि होने की संभावना है। अतएव हम यह कह सकते हैं कि किसी निश्चित समय में प्रत्येक समाज में असंख्य असंतुष्ट आवश्यकताएँ होती हैं।

2.सीमित या दुर्लभ साधन (Limited or Scarce Means) :
दुर्लभता क्या है? दुर्लभता एक सापेक्ष धारणा है। इसका अर्थ है माँग की तुलना में पूर्ति का अभाव, भले ही साधनों की कीमत शून्य ही क्यों न हो ,
आवश्यकताओं को संतुष्ट करने वाली अधिकतर वस्तुएँ तथा सेवाएँ सीमित या दुर्लभ होती हैं। इन पदार्थों को दुर्लभ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनकी माँग इनकी पूर्ति से अधिक होती है अर्थात् D > S
मकोनल के शब्दों में, “ दुर्लभता वह स्थिति है जिसमें एक निश्चित समय में साधनों की उपलब्धता उनकी माँग से कम होती है ” दुर्लभता तुलनात्मक है, इससे अभिप्राय है कि वस्तुएँ और उन्हें उत्पादन करने वाले साधन उनकी आवश्यकताओं की तुलना में कम होते हैं।
3.वैकल्पिक प्रयोग (Alternative Uses):
प्रत्येक साधन या वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग होते हैं। उदाहरण के लिए, दूध एक सीमित वस्तु है। इसका विभिन्न कार्यों जैसे- पनीर, रसगुल्ले या आइसक्रीम बनाने में प्रयोग किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज को यह चुनाव करना पड़ता है कि वह अपने सीमित साधनों का उपयोग कौन सी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए करे।
इन सीमित वस्तुओं को आर्थिक वस्तुएँ (Economic Goods) या धन (Wealth) भी कहा जाता है। प्रत्येक परिवार की आय सदैव सीमित होती है। एक परिवार अपनी सीमित आय का प्रयोग अपनी आवश्यकता को सन्तुष्ट करने वाली किसी भी वस्तु या सेवा को खरीदने के लिए कर सकता है ।
इसी प्रकार प्रत्येक समाज अपने सीमित साधनों अर्थात भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम का प्रयोग विभिन्न प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करने के लिए कर सकता है। इसलिए यदि इनका प्रयोग एक वस्तु की प्राप्ति या उत्पादन के लिए किया जायेगा तो किसी दूसरी वस्तु का त्याग करना पड़ेगा। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज को अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यह चुनाव करना पड़ता है कि वह अपने सीमित साधनों का प्रयोग कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करने के लिए करें तथा कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का त्याग कर दें। वास्तव में चुनाव की समस्या ही अर्थशास्त्र की मुख्य समस्या है। इसे ही आर्थिक समस्या कहा जाता है।
अर्थव्यवस्था की विभीन्न केंद्रीय समयस्याओं की व्याख्या कीजिए?
 (Central Problems of an Economy) 
मनुष्य अपनी आजीविका कमाने हैं तथा आवश्यकताओं की संतुष्टि करने के दोरान कुछ आधारभूत आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इन समस्याओं को एक अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएँ भी कहा जाता है।
प्रत्येक अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित तीन केंद्रीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
(1) किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए तथा कितनी मात्रा में किया जाए
(2) उत्पादन किस प्रकार किया जाए
(3) उत्पादन किसके लिए किया जाए
(1) किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए तथा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए ? 
(What to Produce and How Much to Produce ? ) 
प्रत्येक अर्थव्यवस्था की सबसे पहली समस्या यह है कि कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए जिससे लोगों की अधिकतम आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जा सके। इस समस्या के उत्पन्न होने का मुख्य कारण यह है कि आवश्यकताओं की तुलना में साधन सीमित होते हैं तथा इनके वैकल्पिक प्रयोग होते हैं। प्रत्येक अर्थव्यवस्था को यह चुनाव करना पड़ता है कि किन आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जाए तथा किन का त्याग किया जाए ? जिन आवश्यकताओं को संतुष्ट करने का निर्णय ले लिया जाता है, उनके विषय में दो बातें तय करनी पड़ती हैं:

(A) कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए?

(A) ‘उपभोक्ता वस्तुओंचीनी, कपड़ा, गेहूँ, घी आदि का उत्पादन किया जाए
(B)पूँजीगत वस्तुओं मशीनों, ट्रैक्टरों आदि का उत्पादन किया जाए? इसी प्रकार यह चुनाव करना पड़ता है
©युद्धकालीन वस्तुओं-बंदूकों, तोपों, टैंकों का उत्पादन किया जाए तथा कौन-सी शांतिकालीन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए ?

(B)कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए:-   

जब एक अर्थव्यवस्था यह तय कर लेती है कि कौन-सी वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन करना है तो उसे यह भी निर्णय लेना पड़ता है कि उन वस्तुओं का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए ?

यह निर्णय लेना पड़ता है कि
उपभोक्ता वस्तुओं का कितना उत्पादन किया जाए
पूँजीगत वस्तुओं का कितना उत्पादन किया जाए?
उदाहरण के लिए, यदि कोई अर्थव्यवस्था एक निश्चित समय में अपने सीमित साधनों द्वारा कपड़े तथा गेहूँ का अधिक उत्पादन करना चाहेगी तो उसे मशीनों का उत्पादन कम करना पड़ेगा।
वास्तव में, उत्पादक उन्हीं वस्तुओं का तथा उतनी ही मात्रा में उत्पादन करते हैं जिनसे उन्हें अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।
( 2 ) उत्पादन किस प्रकार किया जाए? 
(How to Produce?)
एक अर्थव्यवस्था की दूसरी मुख्य समस्या यह है कि वस्तुओं का उत्पादन कैसे किया जाए या उत्पादन की व्यवस्था  कैसे की जाए ? इस समस्या का संबंध उत्पादन की तकनीक का चुनाव करने से है ।
(i) श्रम प्रधान तकनीक (Labour Intensive Technique): इस तकनीक में श्रम का उपयोग पूँजी की तुलना में अधिक किया जाता है।
(ii) पूँजी प्रधान तकनीक (Capital Intensive Technique) : इस तकनीक में पूँजी का उपयोग श्रम की तुलना में अधिक किया जाता है।
उदाहरण के लिए, कपड़े का उत्पादन हथकरघों की सहायता से हो सकता है अथवा आधुनिक मशीनों द्वारा किया जा सकता है।
एक अर्थव्यवस्था को यह तय करना पड़ता है कि वह कौन-सी तकनीक का प्रयोग किस उद्योग में करे, जिससे उत्पादन अधिक कुशलतापूर्वक किया जा सके।
कुशल तकनीक वह तकनीक है जिसके प्रयोग से समान मात्रा का उत्पादन करने के लिए सीमित साधनों की सबसे कम आवश्यकता होती है। अन्य शब्दों में, उत्पादन न्यूनतम लागत पर किया जाना चाहिए।
किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन की कौन-सी तकनीक अपनाई जाए, यह साधनों की उपलब्धता तथा उनके सापेक्षिक मूल्यों (Relative Prices) पर निर्भर करेगा।
(3) उत्पादन किसके लिए किया जाए ? 
(For Whom to Produce ? ) 
एक अर्थव्यवस्था को यह भी निर्धारित करना पड़ता है कि उत्पादन किसके लिए किया जाए?
वास्तव में उत्पादन स्व-उपभोग या वाजार में विनिमय के लिए किया जाता है। इस समस्या का संबंध उत्पादन के वितरण से है। इसके मुख्य दो पहलू हैं:
(i) प्रथम पहलू का संबंध व्यक्तिगत वितरण से है। इसका अभिप्राय यह है कि उत्पादन का समाज के विभिन्न व्यक्तियों तथा परिवारों में किस प्रकार वितरण किया जाए। इसका संबंध आय के वितरण की असमानता की समस्या से भी है।
(ii) वितरण की समस्या का एक दूसरा पहलू कार्यात्मक वितरण (Functional Distribution) है। इसका संबंध यह ज्ञात करने से है कि उत्पादन के विभिन्न साधनों अर्थात भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम में उत्पादन का बंटवारा कैसे हो । इसका संबंध आय के वितरण की असमानता से नहीं है ।
केंद्रीय समस्याओं का विस्तृत रूप 
(Extended Version of the Central Problems) 
प्रो. सैम्युअलसन किसी अर्थव्यवस्था की केवल तीन समस्याओं पर बल देते हैं। परंतु स्टिगलर तथा लेफ्टविच जैसे अर्थशास्त्रियों ने केंद्रीय समस्याओं का विस्तृत रूप प्रस्तुत किया है। वे निम्नलिखित दो अन्य समस्याओं पर भी बल देते हैं जो समष्टि- अर्थशास्त्र से संबंधित हैं।
(i) साधनों का पूर्ण उपयोग कैसे हो ? 
(How to Achieve Fuller Utilisation of Resources?) 
एक अर्थव्यवस्था की अगली मुख्य समस्या सभी साधनों का पूर्ण उपयोग करना अर्थात् पूर्ण रोज़गार प्रदान करना है। है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था की यह जिम्मेदारी हो जाती है कि सभी साधनों का पूर्ण उपयोग किया जाए। कोई भी साधन बिना उपयोग के न रहे तथा न ही उनका उपयोग कम हो।
लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन के साधन जैसे भूमि, श्रम तथा पूँजी का पूरा उपयोग नहीं हो पाता है, फैक्ट्रियां बंद रहती हैं,
मज़दूर बेरोज़गार रहते हैं या भूमि का पूरा उपयोग नहीं हो पाता। परंतु प्रत्येक अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधन सीमित होते हैं। इसलिए सीमित साधनों का उपयोग न करना या उनका कम उपयोग करना अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होता प्रत्येक अर्थव्यवस्था अनैच्छिक एवं अन्य प्रकार की बेरोज़गारी को दूर करने का प्रयत्न करती है। एक अर्थव्यवस्था को यह भी ध्यान में रखना पड़ता है कि पूर्ण रोजगार की स्थिति में कीमत स्थिरता बनी रहनी चाहिए।
(ii) साधनों का विकास कैसे हो ? 
(How to Achieve Growth of Resources ? ) 
प्रत्येक अर्थव्यवस्था की एक अन्य मुख्य समस्या, उत्पादन के स्तर में वृद्धि करना है। इस समस्या को ही आर्थिक विकास की समस्या कहा जाता है। आर्थिक विकास से अभिप्राय है प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में निरंतर वृद्धि । प्रत्येक अर्थव्यवस्था के सामने यह समस्या होती है कि अपनी उत्पादन क्षमता को कैसे बढ़ाया जाए जिससे अधिक उत्पादन किया जा सके। एक अर्थव्यवस्था तकनीकी प्रगति करके या नई वस्तुओं का उत्पादन करके आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। इसके लिए पूँजी निर्माण की आवश्यकता होती है । पूँजी निर्माण के लिए वर्तमान उपभोग का त्याग करना पड़ता है। अतएव आर्थिक विकास की लागत भावी विकास के लिए वर्तमान उपभोग का त्याग है। आर्थिक विकास द्वारा सामाजिक न्याय तथा समानता के लक्ष्य की भी प्राप्ति होनी चाहिए।

उत्पादन संभावना वक्र(PPC) द्वारा केंद्रीय समस्याएँ का समाधान

(Solution of the Central Problems by Production Possibility Curve)

पहले उत्पादन संभावना वक्र को जानना आवश्यक है

उत्पादन संभावना वक्र से क्या अभिप्राय है।

उत्पादन संभावना वक्र वह वक्र है जो दो वस्तुओं के उत्पादन की वैकल्पिक संभावनाओं को प्रकट करती हैं। जब उत्पादन के साधन तथा तकनीक  दि हुई हों।

उत्पादन संभावना वक्र को उत्पादन संभावना सीमा (Production Possibility Frontier or Boundary) भी कहा जाता है। क्योंकि यह रेखा दी हुई स्थिति में दो वस्तुओं के उत्पादन की अधिकतम सीमा निर्धारित करती है

‘उत्पादन संभावना वक्र को रूपांतरण रेखा (Transformation Line) भी कहा जाता है क्योंकि इस रेखा से ज्ञात होता है कि यदि एक वस्तु-X का अधिक उत्पादन किया जाता है तो दूसरी वस्तु-Y से उत्पादन के साधन हटाकर वस्तु- X के उत्पादन में लगाये जाते हैं अर्थात् वस्तु-Y का वस्तु – X में रूपांतरण (Transformation) किया जाता है।

 

परिभाषा ( Definition ) 

सैम्युअलसन के अनुसार ‘’उत्पादन संभावना वक्र वह वक्र है जो दो वस्तुओं या सेवाओं के उन सभी संयोगों को प्रकट करती है जिनका अधिकतम उत्पादन एक अर्थव्यवस्था के दिए हुए साधनों तथा तकनीक के द्वारा साधनों रोजगार की स्थिति में संभव होता है।”

उत्पादन संभावना वक्र की धारणा  मान्यताओं :

(i)उत्पादन के साधनों की स्थिर मात्रा:-

उत्पादन के साधनों की मात्रा स्थिर है। परंतु सीमित मात्रा में उन्हें एक प्रयोग से दूसरे प्रयोग में हस्तांतरित किया जा सकता है।

(ii) उपलब्ध साधनों का पूर्ण एवं कुशल उपयोग (Fuller and Efficient Utilisation)

अर्थव्यवस्था में उपलब्ध सभी साधनों का पूर्ण एवं कुशलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है।

(iii)स्थिर तकनीक (Constant Technology):– उत्पादन की तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है।

(iv)दो वस्तुएँ (Two Goods) :-यह मान लिया गया है कि अर्थव्यवस्था में केवल दो वस्तुओं या वस्तुओं के दो संयोगों  का उत्पादन किया जाता है जैसे- गेहूँ तथा कपड़ा या पूँजीगत वस्तु।

तालिका- उत्पादन संभावना अनुसूची

 

Goods Possibilities/Combinations
A B C D
Wheat 0 2 4 6
Cloth 12 10 06 00
Total 12 12 10 06

 

उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है कि यदि ‘A’ संयोग का उत्पादन किया जायेगा तो केवल 12 गांठें कपड़े का उत्पादन होगा परंतु गेहूँ का उत्पादन 0(Zero) होगा। इसके विपरीत यदि ‘D’ संयोग का उत्पादन किया जाएगा तो 6 टन गेहूँ का उत्पादन होगा परंतु कपड़े का उत्पादन 0(Zero) होगा। ‘B’ संयोग ( 2 टन गेहूँ + 10 गांठें कपड़ा), C संयोग (4 टन गेहूँ + 6 गांठें कपड़ा)।

तालिका से उत्पादन संभावना वक्र को ज्ञात किया जा सकता है।

 

AD उत्पादन संभावना वक्र (PPC) है जो गेहूँ तथा कपड़े के उत्पादन के उन विभिन्न संयोगों को प्रकट करता है जिसका उत्पादन दिए हुए संसाधनों तथा तकनीक से किया जा सकता है। संयोग ‘A’ पर केवल कपड़े का उत्पादन होगा, गेहूँ का नहीं। इसी प्रकार संयोग ‘D’ पर केवल गेहूँ का ही उत्पादन होगा, कपड़े का नहीं। संयोग ‘B’ एवं ‘C’ पर गेहूँ तथा कपड़े दोनों का ही उत्पादन किया जाएगा।

उत्पादन संभावना वक्र की दो मुख्य विशेषताएँ (Basic Properties)

(i)उत्पादन संभावना वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है ( Slopes Downwards ) :

उत्पादन संभावना वक्र का ढलान ऊपर से नीचे की ओर बाएं से दाएं होता है। इसका कारण यह है कि पूर्ण रोजगार की स्थिति में दोनों वस्तुओं के उत्पादन को एक साथ नहीं बढ़ाया जा सकता है। यदि एक वस्तु जैसे गेहूँ का उत्पादन अधिक किया जाएगा तो दूसरी वस्तु जैसे कपड़े का उत्पादन कम किया जाएगा।

(ii)उत्पादन संभावना वक्र मूल बिंदु के नतोदर होती है (Concave to the Point of Origin):

यह वक्र मूल बिंदु के नतोदर (Concave) होती है। इसका कारण यह है कि गेहूँ की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने के लिए कपड़े की  तुलना में अधिक इकाइयों का त्याग करना पड़ेगा अर्थात् गेहूँ की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने की अवसर लागत (Opportunity Cost) कपड़े के उत्पादन में होने वाली हानि के रूप में बढ़ने की प्रवृत्ति प्रकट करती है। अन्य शब्दों में, उत्पादन बढ़ती अवसर लागत के नियम (Law of Increasing Opportunity Cost ) के आधार पर होगा।

अब जानते है उत्पादन संभावना वक्र(PPC) द्वारा केंद्रीय समस्याएँ का समाधान कैसे होता हैं

(1) किन वस्तुओं का तथा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए ? 

(What to Produce and How Much to Produce ? ) 

चित्र  से ज्ञात होता है कि यदि सारे साधन गेहूँ के उत्पादन पर खर्च कर दिये जायें जैसा बिंदु D से ज्ञात होता है तो गेहूँ का उत्पादन 6 टन किया जा सकेगा। इसके विपरीत यदि सारे साधन कपड़े के उत्पादन पर खर्च कर दिए जाएंगे तो कपड़े की 12 गांठों का उत्पादन किया जा सकेगा जैसा कि बिंदु A से ज्ञात होता है । उत्पादन संभावना वक्र AD पर गेहूँ तथा कपड़े के वे सभी संभव संयोग आते हैं जिनका उस समय उत्पादन किया जाता है जब साधनों का पूरी तरह से कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है।  इस रेखा के किसी भी बिंदु जैसे B, C द्वारा प्रकट होगा | ‘B’ बिंदु द्वारा ज्ञात होता है कि कपड़े की 10 गांठों तथा गेहूँ का 2 टन उत्पादन होगा। बिंदु C से ज्ञात होता है कि कपड़े की 6 गांठों तथा गेहूँ का 4 टन उत्पादन होगा। इसका अभिप्राय यह है कि गेहूँ का अधिक उत्पादन करने के लिए कपड़े के उत्पादन का त्याग करना पडेगा क्योंकि उत्पादन के साधन सीमित हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन के साधनों के विभिन्न प्रयोगों में बंटवारे की समस्या उत्पन्न होती है ।

 

(2) उत्पादन कैसे करना है (How to Produce?) 

अर्थव्यवस्था की दूसरी केंद्रीय समस्या यह है कि उत्पादन कैसे करना है ? इस समस्या का संबंध उत्पादन की विधि या तकनीक के चुनाव से है। इस स्थिति को चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। चित्र  से ज्ञात होता है कि यदि अर्थव्यवस्था एक ऐसी तकनीक का प्रयोग करेगी जो उत्पादन के सभी साधनों का प्रयोग करती है परंतु अकुशल है तो उत्पादन की मात्रा बिंदु E द्वारा प्रकट की जाएगी। यह बिंदु E, उत्पादन संभावना वक्र PP के अंदर स्थित है। इससे सिद्ध होता है कि अकुशल तकनीक का प्रयोग करने के फलस्वरूप उत्पादन कम होता है। यदि उत्पादन की कुशल तकनीक का प्रयोग किया जाएगा तो या तो किसी एक वस्तु का अधिक उत्पादन संभव हो सकेगा जैसा कि बिंदु A या C से ज्ञात होता है या दोनों वस्तुओं का उत्पादन अधिक किया जा सकेगा जैसा कि बिंदु B से ज्ञात होता है।

 

(3) साधनों का पूर्ण उपयोग (Fuller Utilisation of Resources

साधनों के पूर्ण प्रयोग की समस्या को चित्र  द्वारा स्पष्ट किया गया है। जब AD उत्पादन संभावना वक्र के किसी बिंदु द्वारा प्रकट किये गये संयोगों का उत्पादन किया जाता है तब साधनों का पूर्ण प्रयोग होता है। इसके विपरीत यदि उत्पादन संभावना वक्र AD के अंदर किसी बिंदु जैसे F या G पर उत्पादन किया जाता है तो यह साधनों के अल्प- प्रयोग की स्थिति होगी अर्थात् साधनों का अल्प उपयोग किया जायेगा।

(4) साधनों का विकास 

 

साधनों का विकास तभी संभव होता है जब समाज उपलब्ध साधनों में वृद्धि कर सके या उत्पादकता में वृद्धि हो। इसके फलस्वरूप, जैसा कि चित्र  से ज्ञात होता है, उत्पादन संभावना वक्र AD दाईं ओर खिसक कर PP हो जायेगा। उत्पादन संभावना वक्र दाईं ओर खिसक कर साधनों में होने वाली वृद्धि को प्रकट करता है| PP वक्र के द्वारा प्रकट संयोग, AD वक्र के संयोगों की तुलना में कपड़े तथा गेहूँ की अधिक मात्रा को प्रकट कर रहे हैं। इस प्रकार PP वक्र आर्थिक विकास को प्रकट करता है ।

 

विभीन्न अर्थव्यवस्था में केंद्रीय समयस्याओं का समाधान

(अ) बाजार अर्थशास्त्र/पूँजीवादी (Market Economy ) :-

यह एक स्वतंत्र अर्थव्यवस्था है, जिसमें केंद्रीय समस्याएँ (क्या, कैसे और किसके लिए उत्पादन किया जाए) का समाधान पूर्ति और माँग की बाजार शक्तियों द्वारा किया जाता है।अर्थार्थ उत्पादन के साधनों का स्वामी एक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह (पूंजीपति ) हो ।

(ब) केंद्रीय योजनाबद्ध /समाजवादी  अर्थव्यवस्था (Centrally Planned Economy):-

यह वह अर्थव्यवस्था है जिसमें केंद्रीय समस्याओं (क्या, कैसे और किसके लिए उत्पादन किया जाए) का समाधान सरकार द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकारी द्वारा किया जाता है।अर्थार्थ उत्पादन के साधनों का स्वामी सरकार हो।

(स) मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy ):-

यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसकी विशेषताएँ बाजार अर्थव्यवस्था तथा केंद्रीय योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का मिश्रण है। केंद्रीय समस्याओं (क्या, कैसे तथा किसके लिए उत्पादन) का समाधान बाजार शक्तियों की स्वतंत्र अंतर्क्रियाओं पर संपूर्ण रूप से निर्भर नहीं करता । लाभ अधिकतम करने के उद्देश्य को पूरा किया जाता है लेकिन सामाजिक न्याय की लागत पर नहीं ।

 

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