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  अध्याय-7 उत्पादन के नियमः कारक के प्रतिफल तथा पैमाने के प्रतिफल 

(Laws of Production: Returns to a Factor and Returns to Scale

■ उत्पादन के नियम की धारणा 

■ कारक के प्रतिफल तथा पैमाने के प्रतिफल में आधारभूत अंतर विषय 

■ कारक के प्रतिफलः एक कारक के बढ़ते, समान तथा घटते प्रतिफल 

परिवर्ती अनुपात का नियम उत्पादन की अवस्थाएँ 

■ पैमाने के प्रतिफलः बढ़ते, समान तथा घटते प्रतिफल 

उत्पादन के नियम की धारणा (Concept of Law of Production )

अध्याय -6th में हम पढ़ चुके है कि उत्पादन फलन, उत्पादन के साधनों एवं उत्पादन की मात्रा में भौतिक संबंध (Physical Relation) को दर्शाता है,उत्पादन को बढ़ाने के लिए अल्पकाल में केवल परिवर्तनशील (Labour) साधनों के अधिक प्रयोग पर निर्भर किया जा सकता है, जबकि दीर्घकाल में सभी कारकों (Land,Labour,Capital) की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है ।  

अतएव उत्पादन के दो नियम हैं: कारक के प्रतिफल और पैमाने के प्रतिफल । 

1. कारक/साधन के प्रतिफल (Returns to a Factor):-

यदि उत्पादक उत्पादन में परिवर्तन अन्य कारकों को स्थिर रखकर उत्पादन के केवल एक ही कारक (Labour) में वृद्धि अथवा कमी के द्वारा करता है तथा इसके फलस्वरूप उत्पादन के कारकों के मिश्रण का अनुपात बदलता है तो उत्पादन और उत्पादन के कारकों के इस आनुपातिक संबंध को कारक के प्रतिफल (Returns to a Factor) कहते हैं।

1.पैमाने के प्रतिफल  (Returns to Scale):-

  यदि उत्पादक सभी कारकों (Land,Labour,Capital) में एक ही अनुपात में परिवर्तन करता है अर्थात् उत्पादन के कारकों के मिश्रण का अनुपात समान रहता है तो इस स्थिति में उत्पादन और उत्पादन के कारकों के आनुपातिक संबंध को पैमाने के प्रतिफल (Returns to the Scale) कहते हैं। अतएव उत्पादन के दो नियम हैं: कारक के प्रतिफल और पैमाने के प्रतिफल । 

 कारक के प्रतिफल तथा पैमाने के प्रतिफल में आधारभूत अंतर बताओ

(Basic Differences between Returns to a Factor and Returns to Scale) 

                               उत्पादन के नियम (Laws of Production) 
कारक/साधन के प्रतिफल (Returns to a Factor )  पैमाने के प्रतिफल (Returns to the Scale
1.एक परिवर्तनशील (L) कारक बाकी स्थिर साधन  1.सभी कारक (L,L,K) परिवर्तनशील 
2. कारक अनुपात परिवर्तनशील 2. कारक अनुपात स्थिर
3.उत्पादन के पैमाने  में परिवर्तन नहीं होता। 3.उत्पादन के पैमाने में परिवर्तन होता है। 
4.कारक के प्रतिफल का अध्ययन अल्पकाल में किया जाता है।  4.पैमाने का प्रतिफल का अध्ययन केवल दीर्घकालीन में किया जाता है। 

साधन / कारक के प्रतिफल की व्याख्या कीजिए (Returns to a Factor) 

जब उत्पादन के एक कारक की मात्रा को बढ़ा दिया जाता है परंतु बाकी कारकों की मात्रा स्थिर रहती है, तो कारकों के अनुपात में अंतर आ जाता है।

    मान लीजिये उत्पादन के दो कारक हैं: भूमि तथा श्रम | भूमि एक स्थिर (Fixed) कारक है जबकि श्रम एक परिवर्तनशील (Variable) कारक है। आपके पास दो हेक्टेयर भूमि है। आप एक श्रमिक को काम पर लगाकर टमाटर की खेती करते हैं।

 Labour  Land Ratio
1 2 1:2
2 2 2:2
3 2 3:2

अतएव श्रम तथा भूमि का अनुपात 1: 2 होगा। यदि आप श्रम की संख्या बढ़ाकर 2 कर देते हैं तो श्रम तथा भूमि का अनुपात 2: 2 हो जायेगा अर्थात् यदि पहले प्रति श्रमिक 2 हेक्टेयर भूमि थी तो अब प्रति श्रमिक 1 हेक्टेयर भूमि रह गई । अतएव कारकों के अनुपात में परिवर्तन होने के कारण उत्पादन की मात्रा में विभिन्न दरों से परिवर्तन होगा  अर्थशास्त्र में इस प्रवृत्ति को परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions) कहा जाता है। इस नियम से ज्ञात होता है कि उत्पादन के कारकों के अनुपात में परिवर्तन करने से उत्पादन की मात्रा में पहले बढ़ते हुए अनुपात में, उसके बाद समान अनुपात में तथा उसके बाद घटते हुए अनुपात में परिवर्तन होता है। 

कारक के प्रतिफल के इन तीनों पहलुओं की व्याख्या निम्नलिखित ढंग से की जा सकती है: 

(1) कारक के बढ़ते प्रतिफल (Increasing Returns to a Factor) 

(2) कारक के समान प्रतिफल (Constant Returns to a Factor ) 

(3) कारक के घटते प्रतिफल या ह्रासमान प्रतिफल (Diminishing Returns to a Factor)। 

(1) कारक के बढ़ते प्रतिफल (Increasing Returns to a Factor ) 

कारक के बढ़ते प्रतिफल वह स्थिति है जिसमें कुल उत्पाद उस समय बढ़ती हुई दर पर बढ़ता है जब स्थिर कारक (कारकों) की निश्चित इकाई के साथ परिवर्तनशील कारक की अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। इस स्थिति में परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पाद बढ़ता जाता है। अन्य शब्दों में, उत्पादन की सीमांत लागत कम होती जाती है

परिभाषा (Definition) 

  • बेन्हम के शब्दों में, “जब कारकों के संयोग में एक कारक के अनुपात को बढ़ाया जाता है तब एक सीमा तक उस कारक की सीमांत उत्पादकता में वृद्धि होगी । ” ( Increasing returns to a factor states that as the proportion of one factor in a combination of factors is increased upto a point, the marginal productivity of the factor will increase. -Benham) 

व्याख्या (Explanation) 

कारक के बढ़ते प्रतिफल को तालिका 1 तथा चित्र 1 द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है: 

                                      तालिका 1. कारक के बढ़ते प्रतिफल 

श्रम की इकाइयाँ

Labour

भूमि की इकाइयाँ

Land

कुल उत्पाद

TP

सीमांत उत्पाद

MP

1 1 4 4
2 1 10 10-4 = 6

 

3 1 18 18-10=8

 

4 1 28 28-18=10

 

5 1 40 40-28 = 12

 

तालिका  से ज्ञात होता है कि जब भूमि की स्थिर मात्रा के साथ श्रम की अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जा रहा है तो कुल उत्पाद बढ़ती हुई दर पर बढ़ रहा है। परिवर्तनशील कारक (Labour) का सीमांत उत्पाद भी बढ रहा है। 

कुल उत्पाद (TP) बढ़ती दर पर बढ़ रहा है तथा सीमांत उत्पाद भी बढ़ रहा है जो कारक के बढ़ते प्रतिफल को दर्शाता है। 

चित्र  A से ज्ञात होता है कि कुल उत्पाद बढ़ती हुई दर पर बढ़ रहा है जबकि चित्र 1 (B) से ज्ञात होता है कि परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पाद बढ़ता जा रहा है। 

कारक के बढ़ते प्रतिफल के कारण (Causes of Increasing Returns to a Factor) 

कारक के बढ़ते प्रतिफल के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं: 

(A)स्थिर कारक का पूर्ण प्रयोग (Fuller – utilisation of Fixed Factor ):-

उत्पादन, की प्रारंभिक अवस्था में, उत्पादून के स्थिर कारक जैसे मशीन का अल्प प्रयोग होता है। उसके पूर्ण प्रयोग के लिये परिवर्तनशील कारक जैसे श्रम की अधिक इकाइयों की आवश्यकता होती है। इसलिये आरम्भिक अवस्था में परिवर्तनशील कारक की अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग करने के फलस्वरूप कुल उत्पादन में वृद्धि होती है, अन्य शब्दों में, परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पादन बढ़ने लगता है। 

(B) परिवर्तनशील कारक की कुशलता में वृद्धि (Increased Efficiency of the Variable Factor ):-

परिवर्तनशील कारक जैसे श्रम की अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग करने से प्रक्रिया आधारित (Process Based) श्रम विभाजन संभव हो जाता है। इसके फलस्वरूप उस कारक की कुशलता में वृद्धि होती है तथा सीमांत उत्पादकता बढ़ जाती है। 

(C) कारकों में उचित समन्वय ( Better Co-ordination between the Factors) :-

जब तक उत्पादन के स्थिर कारक का अल्प प्रयोग होता है, परिवर्तनशील कारक की अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग करने से स्थिर तथा परिवर्तनशील कारक की समन्वयता (Coordination) में वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप कुल उत्पादन में बढ़ती हुई दर से वृद्धि होती है। 

(2) कारक के समान प्रतिफल (Constant Returns to a Factor):- 

कारक के समान प्रतिफल से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें परिवर्तनशील कारक की अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग करने से इनकी सीमांत उत्पादकता में वृद्धि नहीं होती। इस स्थिति में सीमांत उत्पाद स्थिर हो जाता है। इसके फलस्वरूप कुल उत्पादन में वृद्धि समान दूर से होती है। अन्य शब्दों में, उत्पादन समान लागत पर होता है। 

परिभाषा (Definition) 

हैन्स के शब्दों में, “कारक के समान प्रतिफल के नियम के अनुसार, कारक के समान प्रतिफल उस समय प्राप्त होते हैं जब परिवर्तनशील कारक की अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग करने से उत्पादन में समान दर से वृद्धि होती है ।” (Constant returns to a factor occurs when additional application of the variable factor increases output only at a constant rate. Hanson) 

व्याख्या (Explanation ) 

तालिका  तथा चित्र से कारक के समान प्रतिफल के नियम की व्याख्या की जा सकती है: 

तालिका 2. कारक के समान प्रतिफल (Constant Returns to a Factor) 

श्रम की इकाइयाँ भूमि की इकाइयाँ

 

कुल उत्पाद

 

सीमांत उत्पाद

 

1 1 5 5
2 1 10 5
3 1 15 5
4 1 20 5
5 1 25 5

उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है कि जैसे-जैसे भूमि की स्थिर इकाई के साथ श्रम की अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है, कुल उत्पाद समान दर से बढ़ता जाता है अर्थात परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पाद स्थिर (Constant) रहता है। 

Constant Returns to a Factor 

Diagram -2

कुल उत्पाद (TP) समान दर से बढ़ रहा है तथा सीमांत उत्पाद स्थिर है जो कारकं के बढ़ते प्रतिफल को दर्शाता है। 

उपरोक्त चित्र 2 (A) में ऊपर उठती हुई TP वक्र से ज्ञात होता है कि कुल उत्पाद समान दर से बढ़ रहा है। चित्र 2 (B) में OX वक्र के समानांतर MP वक्र से ज्ञात होता है कि परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पादन स्थिर है। 

कारक के समान प्रतिफल के कारण (Causes of Constant Returns to a Factor) 

कारक के समान प्रतिफल के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं: 

(A)स्थिर कारक का अनुकूलतम प्रयोग (Optimum Utilisation of the Fixed Factor ):-

  जब परिवर्तनशील कारक की अधिक इकाइयों का प्रयोग करने से उत्पादन में वृद्धि होती है तो एक ऐसी स्थिति आती है जब स्थिर कारक का अनुकूलतम प्रयोग होने लगता है। इस अवस्था में परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पादन अधिकतम होता है तथा स्थिर रहता है।

(B)आदर्श कारक अनुपात (Ideal Factor Ratio):-

 जब स्थिर तथा परिवर्तनशील कारक का आदर्श अनुपात में प्रयोग क्रिया जाता है तो समान प्रतिफल की स्थिति उत्पन्न होती है। इस स्थिति में कारक का सीमांत उत्पादन अधिकतम स्तर पर स्थिर हो जाता है। 

(C)परिवर्तनशील कारक का कुशलतम प्रयोग (Most Efficient Utilisation of Variable Factor) :-

जब स्थिर कारक के साथ परिवर्तनशील कारक की बढ़ती हुई इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो एक ऐसी स्थिति आती है  जिसमें सबसे अधिक उपयुक्त श्रम विभाजन संभव होता है। इसके फलस्वरूप परिवर्तनशील कारक जैसे श्रम का सबसे अधिक उपयुक्त प्रयोग होता है तथा उसका सीमांत उत्पादन अधिकतम मात्रा पर स्थिर हो जाता है । 

 कारक के घटते प्रतिफल या ह्रासमान प्रतिफल का नियम 

(Diminishing Returns to a Factor or Law of Diminishing Returns) 

कारक के घटते प्रतिफल या ह्रासमान प्रतिफल का नियम में कुल उत्पाद उस समय घटती हुई दर पर बढ़ता है जब स्थिर कारक के साथ परिवर्तनशील कारक की अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। इस स्थिति में परिवर्तनशील (L) कारक का सीमांत उत्पाद कम होता जाता  है। अन्य शब्दों में, उत्पादन की सीमांत लागत बढ़ती जाती है। 

परिभाषा ( Definition ) 

  • बेन्हम के शब्दों में, “कारक के घटते प्रतिफल के नियम के अनुसार, जैसे- जैसे कारकों के संयोग में किसी एक कारक का अनुपात बढ़ाया जाता है वैसे-वैसे एक सीमा के पश्चात् उस कारक का सीमांत उत्पादन कम होने लगता है । ” ( The law of diminishing returns to a factor states, as the proportion of one factor in a combination of factors is increased after a point, the marginal product of the factor will diminish. —Benham

व्याख्या (Explanation ) 

तालिका 3 तथा चित्र 3 द्वारा कारक के घटते / ह्रासमान प्रतिफल को स्पष्ट किया जा सकता है। 

तालिका 3. कारक के घटते / ह्रासमान प्रतिफल (Diminishing Returns to a Factor) 

श्रम की इकाइयाँ भूमि की इकाइयाँ कुल उत्पाद सीमांत उत्पाद
1 1 5 5
2 1 8 3
3 1 10 2
4 1 11 1
5 1 11 0
6 1 10 -1

 

तालिका 3 से ज्ञात होता है कि जैसे-जैसे श्रम की अधिक इकाइयों का भूमि की स्थिर इकाइयों के साथ प्रयोग किया जाता है तो कुल उत्पाद घटती दर पर बढ़ता है तथा पांचवी इकाई के बाद गिरना आरंभ हो जाता है। परिवर्तनशील कारक अर्थात श्रम का सीमांत उत्पाद घटता जाता है। यह एक बिंदु के पश्चात शून्य तथा ऋणात्मक भी हो सकता है। 

Diminishing Returns to a Factor 

Figure :-3

कुल उत्पाद (TP) घटती दर पर बढते हुए P बिंदु के पश्चात गिरने लगता है। जो कारक के घटते प्रतिफल को दर्शाता है। TP के अनुरूप सीमांत उत्पाद गिरता हुआ Q बिंदु तक शून्य हो जाता है और इसके बाद ऋणात्मक हो जाता

चित्र 3(A) से ज्ञात होता है कि कुल उत्पाद घटती दर पर बढ़ रहा है तथा बिंदु P के बाद गिरना आरंभ हो जाता है। चित्र 3(B) में नीचे की ओर गिरती हुई MP वक्र से ज्ञात होता है कि परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पाद घटता जा रहा है। कारक के घटते प्रतिफल के

लागू होने के कारण (Causes of the Diminishing Returns to a Factor) 

घटते प्रतिफल के नियम के लागू होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-

(A)उत्पादन के स्थिर कारक ( Fixity of the Factors):-

इस नियम के लागू होने का मुख्य कारण यह है कि उत्पादन का कोई न कोई कारक स्थिर होता है। जब वह स्थिर कारक परिवर्तनशील कारकों के साथ प्रयोग में लाया जाता है तो परिवर्तनशील कारकों की तुलना में इसका अनुपात कम हो जाता है। इसलिए जब परिवर्तनशील कारक की एक अतिरिक्त इकाई को स्थिर कारक की अपेक्षाकृत कम इकाइयों के साथ उत्पादन करना पड़ता है तो परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पाद कम होने लगता है। 

(B)अपूर्ण कारक स्थानापन्नता (Imperfect Factor Substitutability):-

श्रीमती जोन रोबिन्सन के अनुसार, घटते प्रतिफल के नियम के लागू होने का मुख्य कारण कारकों में पाई जाने वाली अपूर्ण स्थानापन्नता है। एक कारक के स्थान पर दूसरे कारक का पूरी तरह प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसलिए जब स्थिर कारक का इष्टतम प्रयोग होने लगता है तो उसके स्थान पर किसी दूसरे कारक का स्थानापन्न नहीं किया जा सकता। इसके फलस्वरूप परिवर्तनशील कारकों तथा स्थिर कारकों का अनुपात उचित नहीं हो पाता तथा परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पाद कम होने लगता है। 

(C)कारकों की कम समन्वयता (Poor Co-ordination between the Factors):-

स्थिर कारक के साथ परिवर्तनशील कारक के निरन्तर बढ़ते हुए प्रयोग के कारण उनमें आदर्श कारक – अनुपात (Ideal Factor Ratio) नहीं रह पाता। इसके फलस्वरूप परिवर्तनशील तथा स्थिर कारकों का उपयुक्त समन्वय नहीं रह पाता तथा परिवर्तनशील कारक का सीमांत उत्पादन कम होने लगता है। कारकों की समन्वयता इतनी खराब हो जाती है कि कुल उत्पाद घटने लगता है। इसके फलस्वरूप परिवर्तनशील कारक की सीमांत उत्पादकता शून्य या ऋणात्मक हो जाती है जैसा कि चित्र 4 (B) में दिखाया गया है। 

नियम का लागू होना (Application of the Law) 

अर्थशास्त्रियों में इस नियम के लागू होने के संबंध में मतभेद पाया जाता है। मार्शल ने इस धारणा को इन शब्दों में व्यक्त किया में है, ‘“जहां प्रकृति द्वारा उत्पादन में दिए जाने वाले योगदान में घटते प्रतिफल की प्रवृत्ति होती है वहां मनुष्य द्वारा उत्पादन दिए जाने वाले योगदान में बढ़ते प्रतिफल की प्रवृत्ति होती है।” मार्शल के इस कथन से हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि कृषि में प्रकृति का योगदान उद्योगों की अपेक्षा अधिक होता है। इसलिए कृषि पर घटते प्रतिफल का नियम लागू होता है। इसके विपरीत उद्योगों में मनुष्यों का योगदान अधिक होता है, इसलिए परिवर्तनशील, कारक के बढ़ते प्रतिफल की प्रवृत्ति पाई जाती है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों अनुसार यह धारणा उचित नहीं है। उनके अनुसार इस नियम के लागू होने का मुख्य कारण किसी एक कारक का स्थिर होना है। यह स्थिर कारक केवल भूमि, कारखाने, मछली पालन, या भवन ही नहीं होते, बल्कि मशीनें, कच्चा माल आदि भी हो सकते हैं। इसलिए यह नियम उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र अर्थात कृषि, खनिज, उद्योग आदि में लागू होता है। कृषि में यह अन्य क्षेत्रों की तुलना में जल्दी लागू होने लगता है। 

परिवर्ती अनुपात का नियम  की रेखाचित्र  व  तालिका की सहायता से व्याख्या कीजिए (Law of Variable Proportions)

आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उपरोक्त तीनों प्रवृत्तियों के स्थान पर परिवर्ती अनुपात के नियम का प्रतिपादन किया है। उनके अनुसार, अल्पकाल में जब किसी वस्तु का उत्पादन बढ़ाया जाता है तो परिवर्ती अनुपात का नियम लागू होता है। अल्पकाल जब उत्पादन के एक कारक की मात्रा को बढ़ा दिया जाता है परंतु बाकी कारकों की मात्रा स्थिर रहती है, तो कारकों के अनुपात में परिवर्तन हो जाता है। कारकों के अनुपात में परिवर्तन होने के कारण उत्पादन की मात्रा में विभिन्न दरों से परिवर्तन होगा । अर्थशास्त्र में इस प्रवृत्ति को परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions) कहा जाता है। परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार, जब उत्पादन का केवल एक कारक परिवर्तनशील होता है तथा अन्य कारक स्थिर होते हैं तो उत्पादन के परिवर्तनशील कारक के अनुपात में वृद्धि करने से उत्पादन पहले बढ़ते हुए अनुपात में बढ़ता है, फिर समान अनुपात में तथा इसके बाद घटते हुए अनुपात में बढ़ता है। परंतु समान अनुपात इतनी कम मात्रा में पाया जाता है कि आधुनिक अर्थशास्त्री इसका अध्ययन एवं विश्लेषण नहीं करते। 

परिभाषा (Definition) 

  • लेफ्टविच के अनुसार, “परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है कि यदि प्रति इकाई समयानुसार एक कारक की मात्रा में समान इकाइयों में वृद्धि की जाती है तथा अन्य कारकों की मात्राएं स्थिर रखी जाती हैं तो वस्तु के कुल उत्पादन में वृद्धि होगी, लेकिन एक बिंदु के बाद प्राप्त उत्पादन की वृद्धियां धीरे-धीरे कम होती जाएंगी। ” (The law of variable proportions states that if the input of one resource is increased by equal increments per unit of time while the inputs of other resources are held constant, total output will increase, but beyond some point the resulting output increases will become smaller and smaller. -Leftwitch)
  • मान्यताएँ (Assumptions) 

इस नियम की मुख्य मान्यताएँ इस प्रकार हैं: 

(i ) उत्पादन फलन परिवर्तनशील अनुपात प्रकार (Variable Proportion Type) का है। इसका अभिप्राय यह है कि स्थिर कारक के साथ परिवर्तनशील कारक की अधिक मात्रा का प्रयोग करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 

(ii) परिवर्तनशील कारक की सभी इकाइयाँ समरूप हैं या समान रूप से कुशल हैं। इनका एक-एक करके प्रयोग किया जा सकता है । अतएव घटते प्रतिफल इस कारण से लागू होना आरंभ नहीं होते क्योंकि परिवर्तनशील कारकों की बाद की इकाइयाँ पहली इकाइयों से कम कुशल हैं; बल्कि वह इसलिए लागू होना शुरू होते हैं क्योंकि परिवर्तनशील कारकों और स्थिर कारकों का आदर्श संयोग नहीं हो पाता। 

(ii) उत्पादन के कुछ कारक स्थिर हैं इसलिये उत्पादन में वृद्धि केवल परिवर्तनशील कारक में वृद्धि करके ही की जा सकती है। 

(vi ) उत्पादन की तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होता । यह बहुत महत्त्वपूर्ण मान्यता है । 

वास्तव में उत्पादन की तकनीक में परिवर्तन होने से नियम को लागू होने से रोका जा सकता है । उत्पादन तकनीक में सुधार होने से पहले जितने कारकों (Inputs) से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, या कम कारकों से पहले जितना उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

परिवर्ती अनुपात नियम  के  व्याख्या (Explanation of the Law)

परिवर्ती अनुपात के नियम की व्याख्या तालिका 4 की सहायता से की जा सकती है। यह इस मान्यता पर बनाई गई है कि भूमि उत्पादन का स्थिर तथा श्रम परिवर्तनशील कारक है। उत्पादन को बढ़ाने के लिए परिवर्तनशील कारक की मात्रा में वृद्धि की गई है।

                                               Table – 4

(Law of Variable Proportions or Variable Returns to a Factor) 

भूमि की इकाइयाँ श्रम की इकाइयाँ कुल उत्पाद सीमांत उत्पाद
1 1 2 2
1 2 5 3
1 3 9 4
1 4 11 2
1 5 12 1
1 6 12 0
1 7 11 -1

तालिका 4 से स्पष्ट हो जाता है कि श्रम की तीसरी इकाई तक कुल उत्पाद बढ़ती दर पर बढ़ रहा है। इसलिए सीमांत उत्पाद भी बढ़ रहा है। चौथी इकाई से कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ रहा है इसलिये सीमांत उत्पाद कम होने लगा है। छठी इकाई पर कुल उत्पाद अधिकतम है तथा सीमांत उत्पाद शून्य है। सातवीं इकाई से कुल उत्पाद कम हो रहा है तथा सीमांत उत्पाद ऋणात्मक (Negative) हो गया है। कुल उत्पाद अधिकतम है जब सीमांत उत्पाद शून्य है और यह तब होता है जब सीमांत उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है। 

परिवर्ती अनुपात का नियम और उत्पादन की तीन अवस्थाएँ 

(Law of Variable Proportions and Three Stages of Production) 

परिवर्ती अनुपात के नियम के निष्कर्षों का अध्ययन करने के लिये, अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन की तीन अवस्थाओं का विवेचन किया है। हम तालिका 4  के निष्कर्षों को चित्र 4 में प्रकट कर सकते हैं।

         तालिका 5. उत्पादन की तीन अवस्थाएँ (Three Stages of Production) 

 

भूमि की इकाइयाँ श्रम की इकाइयाँ कुल उत्पाद TP सीमांत उत्पाद  MP औसत उत्पाद AP विवरण 
                                                                      पहली अवस्था
1 1 2 2 2 MP में वृद्धि के कारण बढ़ते प्रतिफल की अवस्था
1 2 5 3 2.5
1 3 9 4 3
                                                     पहली अवस्था का अंत

                                                    दूसरी अवस्था का आरम्भ

1 4 11 2 2.7 MP में  कमी के कारण  घटते प्रतिफल
1 5 12 1 2.4
1 6 12 0 2.0
                                                     दूसरी अवस्था का अंत

                                                      तीसरी अवस्था का आरंभ

1 7 11 -1 1.6 MPऋणात्मक  तथा घटते हुए TP के कारण ऋणात्मक प्रतिफल

तालिका 4 से स्पष्ट है कि उत्पादन की पहली अवस्था में जैसे-जैसे किसी कारक की मात्रा बढ़ायी जाती है तो सीमांत उत्पाद में वृद्धि होती है। दूसरी अवस्था में उत्पादन के कारक की मात्रा बढ़ने पर कुल उत्पाद घटती दर पर बढ़ता है परंतु सीमांत उत्पाद में कमी होती है तथा तीसरी अवस्था में कुल उत्पाद में कमी होती है तथा सीमांत उत्पाद ऋणात्मक होता है। 

Figure→ 4

चित्र 4 में OY-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा तथा OX- अक्ष पर श्रम की संख्या प्रकट की गई है। चित्र 4 (A) में TP कुल उत्पाद वक्र है। इस वक्र से ज्ञात होता है कि बिंदु E तक कुल उत्पाद बढ़ती दर से बढ़ रहा है। बिंदु E से G तक यह घटती दर से बढ़ रहा है। बिंदु G पर यह अधिकतम हो गया है। उसके पश्चात यह कम होना शुरू हो गया है। चित्र 4 (B) में MP सीमांत उत्पाद वक्र है। बिंदु H तक सीमांत उत्पाद बढ़कर अधिकतम हो गया है। इसके पश्चात सीमांत उत्पाद घटता जा रहा है। बिंदु I पर सीमांत उत्पाद तथा औसत उत्पाद एक-दूसरे के बराबर हैं। 

बिंदु I के पश्चात सीमांत उत्पाद घटता जा रहा है। बिंदु C पर सीमांत उत्पाद शून्य होता है तथा C के पश्चात यह ऋणात्मक (Negative) हो जाता है। AP वक्र औसत उत्पाद को प्रकट कर रहा है। बिंदु I तक औसत उत्पाद बढ़ता जा रहा है। परंतु I के पश्चात औसत उत्पाद कम होना आरंभ हो गया है। 

तालिका 5 तथा चित्र 4 द्वारा ज्ञात होता है कि उत्पादन के परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार उत्पादन की अग्रलिखित तीन अवस्थाएँ हो सकती हैं:-

चित्र 4 के संदर्भ में उत्पादन की तीन अवस्थाएँ (Three Stages of Production) 

अवस्था  कुल उत्पाद  TP सीमांत उत्पाद MP औसत उत्पाद  AP
Ist Stage O से E तक  O से E तक बढ़ती दर पर बढ़ता है।  सीमांत उत्पाद पहले बढ़ता हुआ अधिकतम बिंदु H पर पहुंचता है इसके बाद घटना आरंभ हो जाता है। इस अवस्था में यह बढ़ता है परंतु यह MP से कम है। 
2nd Stage EG तक  घटती दर पर बढ़ते हुए (E से G) तक अधिकतम बिंदु G पर पहुँचता है  बिंदु H के बाद घटना आरंभ हो जाता है । घटते हुए बिंदु C पर शून्य हो जाता है।  यह बढ़ता हुआ अधिकतम बिंदु I पर पहुँच जाता है। इस बिंदु पर यह MP के बराबर होता है अर्थात AP = MP  बिंदु I पर अधिकतम होने के पश्चात घटना आरंभ हो जाता है। परंतु यह MP से अधिक है। 
3rd Stage G के बाद  घटना आरंभ हो जाता है।  ऋणात्मक हो जाता है।  घटना जारी रहता है। परंतु सदैव शून्य से अधिक रहता है। 

उत्पादन की अवस्थाओं का महत्त्व (Significance of the Stages of Production) 

परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार एक उत्पादक उत्पादन की प्रथम अवस्था में उत्पादन करना जारी रखता है क्योंकि इस अवस्था में परिवर्ती कारक की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई लगाने से ( अन्य बातें समान रहने पर) सीमांत उत्पाद तथा औसत उत्पाद में निरंतर वृद्धि हो रही होती है तथा कुल उत्पाद बढ़ता जाता है। अतएव उत्पाद को रोकने से उत्पादक को हानि होगी । 

उत्पादक के लिए उत्पादन की दूसरी अवस्था का सबसे अधिक महत्त्व है। वह उत्पादन की दूसरी अवस्था के अंत तक उत्पादन करना पसंद करेगा, क्योंकि इस अवस्था में कुल उत्पाद में निरंतर वृद्धि हो रही होती है। एक उत्पादक संतुलन की स्थिति में केवल दूसरी अवस्था में ही होगा । 

एक उत्पादक तीसरी अवस्था में उत्पादन नहीं करेगा क्योंकि इस अवस्था में परिवर्ती कारक की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई लगाने से निरंतर कमी हो रही होती है, तथा सीमांत उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है। 

संक्षेप में, एक प्रतियोगी फर्म केवल दूसरी अवस्था के अंत तक ही उत्पादन करना पसंद करेगी | 

नियम के लागू होने के कारण (Causes of the Application of the Law) 

परिवर्ती प्रतिफल के नियम के लागू होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-

(A)कारकों की अविभाजिता ( Indivisibility of Factors):

 बढ़ते प्रतिफल की अवस्था के लागू होने का मुख्य कारण यह है कि उत्पादन के कुछ कारक अविभाजित होते हैं। इसका अर्थ यह है कि एक निश्चित सीमा तक उत्पादन करने के लिये उस कारक की कम-से-कम एक इकाई की आवश्यकता होती है ।

 उदाहरण के लिये, यदि एक छोटी स्टिचिंग मशीन 10 दर्जन कॉपी पर पिन लगा सकती है। आप चाहे एक कॉपी पर पिन लगायें या एक दर्जन कॉपी पर पिन लगायें अथवा 10 दर्जन कापी पर पिन लगायें, आपको एक मशीन की आवश्यकता होगी। यदि आप इस मशीन को ₹ 2 प्रति घंटा किराये पर लेते हैं और केवल एक दर्जन कॉपियों पर पिन लगाएँगे तो पिन लगाने की लागत ₹ 2 प्रति दर्जन होगी। यदि आप 5 दर्जन पर पिन लगाएँगे तो लागत चालीस पैसे प्रति दर्जन होगी। यदि आप 10 दर्जन पर पिन लगाते हैं तो लागत 20 पैसे प्रति दर्जन होगी। इस प्रकार उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ औसत लागत कम होती जाती है तथा सीमांत उत्पादन बढ़ता जाता है। 

(B)उत्पादन के स्थिर कारक (Fixed Factors of Production):-

 इस नियम के लागू होने का मुख्य कारण यह है कि उत्पादन के कुछ कारक स्थिर होते हैं । जब ये स्थिर कारक परिवर्ती कारकों के साथ प्रयोग में लाए जाते हैं तो परिवर्तनशील कारकों की तुलना में इनका अनुपात कम हो जाता है। उत्पादन सभी कारकों के सहयोग का फल है। इसलिये जब परिवर्ती कारक की एक अतिरिक्त इकाई का अपेक्षाकृत कम स्थिर कारक की इकाइयों के साथ उत्पादन करना पड़ता है तो परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद कम होने लगता है । उदाहरण के लिये, 10 हेक्टेयर के खेत पर 5 श्रमिक काम कर रहे हैं तथा इन श्रमिकों के कारण भूमि का पूर्ण उपयोग हो रहा है। भूमि तथा श्रमिकों का अनुपात 2 हेक्टेयर भूमि प्रति श्रमिक होगा। इसके विपरीत यदि श्रमिकों की संख्या बढ़कर 10 हो जाये तो भूमि तथा श्रमिकों का अनुपात 1 हेक्टेयर भूमि प्रति श्रमिक होगा । एक श्रमिक 2 हेक्टेयर भूमि की तुलना में 1 हेक्टेयर भूमि से कम उत्पादन कर सकेगा। इसलिये जैसे – जैसे श्रमिकों की तुलना में भूमि का अनुपात कम होता जायेगा, श्रमिकों का सीमांत उत्पादन कम होता जायेगा ।

 (C)स्थिर कारक का इष्टतम से अधिक उपयोग(More than Optimum use of the Fixed Factor) :-

 जब किसी स्थिर कारक का इष्टतम उपयोग अर्थात् सबसे अच्छा उपयोग होने के पश्चात उसके साथ लगाये जाने वाले परिवर्ती कारक की मात्रा को बढ़ाया जाता है तो परिवर्ती कारक का सीमांत प्रतिफल कम होने लगता है। इसका कारण यह है कि में प्रयोग इष्टतम उपयोग होने के पश्चात परिवर्ती कारक की मात्रा के बढ़ने के फलस्वरूप स्थिर कारक का गलत अनुपात होने लगता है । उदाहरण के लिए, मान लीजिये एक मशीन उत्पादन का स्थिर कारक है । इस मशीन का इष्टतम उपयोग करने के लिये 4 श्रमिकों की आवश्यकता है यदि उस मशीन पर पांचवां श्रमिक लगाया जायेगा तो पांच श्रमिकों के फलस्वरूप कुल उत्पादकता में बहुत कम वृद्धि होगी, इसलिये सीमांत उत्पादकता कम हो जायेगी । 

(D)अपूर्ण स्थानापन्न (Imperfect Substitute ):-

 श्रीमती जोन रोबिन्सन के अनुसार, परिवर्ती अनुपात के नियम के लागू होने का मुख्य कारण कारकों में पाई जाने वाली अपूर्ण स्थानापन्नता है । एक कारक के स्थान पर दूसरे कारक का पूरी तरह प्रयोग नहीं किया जा सकता है । यदि कारकों में पूर्ण स्थानापन्नता संभव होती तो स्थिर कारक का इष्टतम उपयोग होने के पश्चात जैसे-जैसे परिवर्ती कारक की मात्रा को बढ़ाया जाता, स्थिर कारक के स्थान पर उसके स्थानापन्न का प्रयोग करके उसकी पूर्ति को भी बढ़ाया जा सकता था। इसके फलस्वरूप उत्पादन को पहले जैसे अनुपात में बढ़ाना संभव हो सकता था। परंतु वास्तविक जीवन में उत्पादन के कारक अपूर्ण स्थानापन्न होते हैं इसलिए जब स्थिर कारक का इष्टतम प्रयोग होने लगता है तो उसके स्थान पर किसी दूसरे कारक का प्रतिस्थापन नहीं किया जा सकता। इसके फलस्वरूप परिवर्ती कारकों तथा स्थिर कारकों का अनुपात उचित नहीं हो पाता तथा परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद कम होने लगता है। 

 नियम का स्थगन  (Postponement of the Law) 

                 अथवा

क्या इस नियम को लागू होने से रोका जा सकता है।

(1) यदि उत्पादन तकनीक में सुधार होगा तो परिवर्ती अनुपात के नियम का स्थगन किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, तकनीक में होने वाले सुधारों के फलस्वरूप इस नियम को कुछ समय के लिए स्थगित किया जा सकता है।

 (2) इस नियम का तब भी स्थगन किया जा सकता है जब स्थिर कारकों के किसी स्थानापन्न की खोज कर ली जाती है।

नियम के स्थगन का यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए कि इस नियम को लागू होने से रोका जा सकता है। जब कारक – अनुपात सर्वोत्तम स्तर पर नहीं रहता, तब यह नियम अवश्य लागू होता है। 

परिवर्ती अनुपात के  नियम की रेखाचित्र व तालिका की सहायता से व्याख्या कीजिए (Law of Variable Proportions) 

आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उपरोक्त तीनों प्रवृत्तियों के स्थान पर परिवर्ती अनुपात के नियम का प्रतिपादन किया है। उनके अनुसार, अल्पकाल में जब किसी वस्तु का उत्पादन बढ़ाया जाता है तो परिवर्ती अनुपात का नियम लागू होता है। अल्पकाल जब उत्पादन के एक कारक की मात्रा को बढ़ा दिया जाता है परंतु बाकी कारकों की मात्रा स्थिर रहती है, तो कारकों के अनुपात में परिवर्तन हो जाता है। कारकों के अनुपात में परिवर्तन होने के कारण उत्पादन की मात्रा में विभिन्न दरों से परिवर्तन होगा । अर्थशास्त्र में इस प्रवृत्ति को परिवर्ती अनुपात का नियम (Law of Variable Proportions) कहा जाता है। परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार, जब उत्पादन का केवल एक कारक परिवर्तनशील होता है तथा अन्य कारक स्थिर होते हैं तो उत्पादन के परिवर्तनशील कारक के अनुपात में वृद्धि करने से उत्पादन पहले बढ़ते हुए अनुपात में बढ़ता है, फिर समान अनुपात में तथा इसके बाद घटते हुए अनुपात में बढ़ता है। परंतु समान अनुपात इतनी कम मात्रा में पाया जाता है कि आधुनिक अर्थशास्त्री इसका अध्ययन एवं विश्लेषण नहीं करते।

परिभाषा (Definition) 

  • लेफ्टविच के अनुसार, “परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है कि यदि प्रति इकाई समयानुसार एक कारक की मात्रा में समान इकाइयों में वृद्धि की जाती है तथा अन्य कारकों की मात्राएं स्थिर रखी जाती हैं तो वस्तु के कुल उत्पादन में वृद्धि होगी, लेकिन एक बिंदु के बाद प्राप्त उत्पादन की वृद्धियां धीरे-धीरे कम होती जाएंगी। ” (The law of variable proportions states that if the input of one resource is increased by equal increments per unit of time while the inputs of other resources are held constant, total output will increase, but beyond some point the resulting output increases will become smaller and smaller. -Leftwitch)

 मान्यताएँ (Assumptions

इस नियम की मुख्य मान्यताएँ इस प्रकार हैं:

(1) उत्पादन फलन परिवर्तनशील अनुपात प्रकार (Variable Proportion Type) का है। इसका अभिप्राय यह है कि स्थिर कारक के साथ परिवर्तनशील कारक की अधिक मात्रा का प्रयोग करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

(ii) परिवर्तनशील कारक की सभी इकाइयाँ समरूप हैं या समान रूप से कुशल हैं। इनका एक-एक करके प्रयोग किया जा सकता है । अतएव घटते प्रतिफल इस कारण से लागू होना आरंभ नहीं होते क्योंकि परिवर्तनशील कारकों की बाद की इकाइयाँ पहली इकाइयों से कम कुशल हैं; बल्कि वह इसलिए लागू होना शुरू होते हैं क्योंकि परिवर्तनशील कारकों और स्थिर कारकों का आदर्श संयोग नहीं हो पाता।

(ii) उत्पादन के कुछ कारक स्थिर हैं इसलिये उत्पादन में वृद्धि केवल परिवर्तनशील कारक में वृद्धि करके ही की जा सकती है।

(iii ) उत्पादन की तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होता । यह बहुत महत्त्वपूर्ण मान्यता है ।

वास्तव में उत्पादन की तकनीक में परिवर्तन होने से नियम को लागू होने से रोका जा सकता है । उत्पादन तकनीक में सुधार होने से पहले जितने कारकों (Inputs) से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, या कम कारकों से पहले जितना उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

 नियम की व्याख्या (Explanation of the Law) 

परिवर्ती अनुपात के नियम की व्याख्या तालिका 4 की सहायता से की जा सकती है। यह इस मान्यता पर बनाई गई है कि भूमि उत्पादन का स्थिर तथा श्रम परिवर्तनशील कारक है। उत्पादन को बढ़ाने के लिए परिवर्तनशील कारक की मात्रा में वृद्धि की गई है।

                                                       Table – 4

(Law of Variable Proportions or Variable Returns to a Factor)

 

भूमि की इकाइयाँ श्रम की इकाइयाँ कुल उत्पाद सीमांत उत्पाद
1 1 2 2
1 2 5 3
1 3 9 4
1 4 11 2
1 5 12 1
1 6 12 0
1 7 11 -1

 

तालिका 4 से स्पष्ट हो जाता है कि श्रम की तीसरी इकाई तक कुल उत्पाद बढ़ती दर पर बढ़ रहा है। इसलिए सीमांत उत्पाद भी बढ़ रहा है। चौथी इकाई से कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ रहा है इसलिये सीमांत उत्पाद कम होने लगा है। छठी इकाई पर कुल उत्पाद अधिकतम है तथा सीमांत उत्पाद शून्य है। सातवीं इकाई से कुल उत्पाद कम हो रहा है तथा सीमांत उत्पाद ऋणात्मक (Negative) हो गया है। कुल उत्पाद अधिकतम है जब सीमांत उत्पाद शून्य है और यह तब होता है जब सीमांत उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है।

परिवर्ती अनुपात का नियम और उत्पादन की तीन अवस्थाएँ 

(Law of Variable Proportions and Three Stages of Production) 

परिवर्ती अनुपात के नियम के निष्कर्षों का अध्ययन करने के लिये, अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन की तीन अवस्थाओं का विवेचन किया है। हम तालिका 5 के निष्कर्षों को चित्र 4 में प्रकट कर सकते हैं।

         तालिका 5. उत्पादन की तीन अवस्थाएँ (Three Stages of Production) 

 

भूमि की इकाइयाँ श्रम की इकाइयाँ

 

कुल उत्पाद

 

सीमांत उत्पाद

 

औसत उत्पाद

 

विवरण

 

पहली अवस्था
1 1 2 2 2 MP में वृद्धि के कारण बढ़ते प्रतिफल की अवस्था
1 2 5 3 2.5
1 3 9 4 3
                                       पहली अवस्था का अंत

                                        दूसरी अवस्था का आरम्भ

1 4 11 2 2.7 MP में  कमी के कारण  घटते प्रतिफल
1 5 12 1 2.4
1 6 12 0 2.0
                                         दूसरी अवस्था का अंत

                                        तीसरी अवस्था का आरंभ

1 7 11 -1 1.6 ऋणात्मक MP तथा घटते हुए TP के कारण ऋणात्मक प्रतिफल

 

 

तालिका 5 से स्पष्ट है कि उत्पादन की पहली अवस्था में जैसे-जैसे किसी कारक की मात्रा बढ़ायी जाती है तो सीमांत उत्पाद में वृद्धि होती है। दूसरी अवस्था में उत्पादन के कारक की मात्रा बढ़ने पर कुल उत्पाद घटती दर पर बढ़ता है परंतु सीमांत उत्पाद में कमी होती है तथा तीसरी अवस्था में कुल उत्पाद में कमी होती है तथा सीमांत उत्पाद ऋणात्मक होता है।

Figure→ 4

चित्र 4 में OY-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा तथा OX- अक्ष पर श्रम की संख्या प्रकट की गई है। चित्र 4 (A) में TP कुल उत्पाद वक्र है। इस वक्र से ज्ञात होता है कि बिंदु E तक कुल उत्पाद बढ़ती दर से बढ़ रहा है। बिंदु E से G तक यह घटती दर से बढ़ रहा है। बिंदु G पर यह अधिकतम हो गया है। उसके पश्चात यह कम होना शुरू हो गया है। चित्र 4 (B) में MP सीमांत उत्पाद वक्र है। बिंदु H तक सीमांत उत्पाद बढ़कर अधिकतम हो गया है। इसके पश्चात सीमांत उत्पाद घटता जा रहा है। बिंदु I पर सीमांत उत्पाद तथा औसत उत्पाद एक-दूसरे के बराबर हैं।

बिंदु I के पश्चात सीमांत उत्पाद घटता जा रहा है। बिंदु C पर सीमांत उत्पाद शून्य होता है तथा C के पश्चात यह ऋणात्मक (Negative) हो जाता है। AP वक्र औसत उत्पाद को प्रकट कर रहा है। बिंदु I तक औसत उत्पाद बढ़ता जा रहा है। परंतु I के पश्चात औसत उत्पाद कम होना आरंभ हो गया है।

तालिका 5 तथा चित्र 4 द्वारा ज्ञात होता है कि उत्पादन के परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार उत्पादन की अग्रलिखित तीन अवस्थाएँ हो सकती हैं:-

चित्र 4 के संदर्भ में उत्पादन की तीन अवस्थाएँ (Three Stages of Production ) 

 

अवस्था  कुल उत्पाद 

 

सीमांत उत्पाद औसत उत्पाद 

 

Ist Stage O से E तक O से E तक बढ़ती दर पर बढ़ता है। सीमांत उत्पाद पहले बढ़ता हुआ अधिकतम बिंदु H पर पहुंचता है इसके बाद घटना आरंभ हो जाता है। इस अवस्था में यह बढ़ता है परंतु यह MP से कम है।
2nd Stage EG तक घटती दर पर बढ़ते हुए (E से G) तक अधिकतम बिंदु G पर पहुँचता है बिंदु H के बाद घटना आरंभ हो जाता है । घटते हुए बिंदु C पर शून्य हो जाता है। यह बढ़ता हुआ अधिकतम बिंदु I पर पहुँच जाता है। इस बिंदु पर यह MP के बराबर होता है अर्थात AP = MP  बिंदु I पर अधिकतम होने के पश्चात घटना आरंभ हो जाता है। परंतु यह MP से अधिक है।
3rd Stage G के बाद घटना आरंभ हो जाता है। ऋणात्मक हो जाता है। घटना जारी रहता है। परंतु सदैव शून्य से अधिक रहता है।

उत्पादन की अवस्थाओं का महत्त्व (Significance of the Stages of Production) 

परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार एक उत्पादक उत्पादन की प्रथम अवस्था में उत्पादन करना जारी रखता है क्योंकि इस अवस्था में परिवर्ती कारक की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई लगाने से ( अन्य बातें समान रहने पर) सीमांत उत्पाद तथा औसत उत्पाद में निरंतर वृद्धि हो रही होती है तथा कुल उत्पाद बढ़ता जाता है। अतएव उत्पाद को रोकने से उत्पादक को हानि होगी ।

उत्पादक के लिए उत्पादन की दूसरी अवस्था का सबसे अधिक महत्त्व है। वह उत्पादन की दूसरी अवस्था के अंत तक उत्पादन करना पसंद करेगा, क्योंकि इस अवस्था में कुल उत्पाद में निरंतर वृद्धि हो रही होती है। एक उत्पादक संतुलन की स्थिति में केवल दूसरी अवस्था में ही होगा ।

एक उत्पादक तीसरी अवस्था में उत्पादन नहीं करेगा क्योंकि इस अवस्था में परिवर्ती कारक की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई लगाने से निरंतर कमी हो रही होती है, तथा सीमांत उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है।

संक्षेप में, एक प्रतियोगी फर्म केवल दूसरी अवस्था के अंत तक ही उत्पादन करना पसंद करेगी |

नियम के लागू होने के कारण (Causes of the Application of the Law):-

परिवर्ती प्रतिफल के नियम के लागू होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:-

  • कारकों की अविभाजिता ( Indivisibility of Factors):

बढ़ते प्रतिफल की अवस्था के लागू होने का मुख्य कारण यह है कि उत्पादन के कुछ कारक अविभाजित होते हैं। इसका अर्थ यह है कि एक निश्चित सीमा तक उत्पादन करने के लिये उस कारक की कम-से-कम एक इकाई की आवश्यकता होती है ।

उदाहरण के लिये, यदि एक छोटी स्टिचिंग मशीन 10 दर्जन कॉपी पर पिन लगा सकती है। आप चाहे एक कॉपी पर पिन लगायें या एक दर्जन कॉपी पर पिन लगायें अथवा 10 दर्जन कापी पर पिन लगायें, आपको एक मशीन की आवश्यकता होगी। यदि आप इस मशीन को ₹ 2 प्रति घंटा किराये पर लेते हैं और केवल एक दर्जन कॉपियों पर पिन लगाएँगे तो पिन लगाने की लागत ₹ 2 प्रति दर्जन होगी। यदि आप 5 दर्जन पर पिन लगाएँगे तो लागत चालीस पैसे प्रति दर्जन होगी। यदि आप 10 दर्जन पर पिन लगाते हैं तो लागत 20 पैसे प्रति दर्जन होगी। इस प्रकार उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ औसत लागत कम होती जाती है तथा सीमांत उत्पादन बढ़ता जाता है।

(B)उत्पादन के स्थिर कारक (Fixed Factors of Production):

इस नियम के लागू होने का मुख्य कारण यह है कि उत्पादन के कुछ कारक स्थिर होते हैं । जब ये स्थिर कारक परिवर्ती कारकों के साथ प्रयोग में लाए जाते हैं तो परिवर्तनशील कारकों की तुलना में इनका अनुपात कम हो जाता है। उत्पादन सभी कारकों के सहयोग का फल है। इसलिये जब परिवर्ती कारक की एक अतिरिक्त इकाई का अपेक्षाकृत कम स्थिर कारक की इकाइयों के साथ उत्पादन करना पड़ता है तो परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद कम होने लगता है । उदाहरण के लिये, 10 हेक्टेयर के खेत पर 5 श्रमिक काम कर रहे हैं तथा इन श्रमिकों के कारण भूमि का पूर्ण उपयोग हो रहा है। भूमि तथा श्रमिकों का अनुपात 2 हेक्टेयर भूमि प्रति श्रमिक होगा। इसके विपरीत यदि श्रमिकों की संख्या बढ़कर 10 हो जाये तो भूमि तथा श्रमिकों का अनुपात 1 हेक्टेयर भूमि प्रति श्रमिक होगा । एक श्रमिक 2 हेक्टेयर भूमि की तुलना में 1 हेक्टेयर भूमि से कम उत्पादन कर सकेगा। इसलिये जैसे – जैसे श्रमिकों की तुलना में भूमि का अनुपात कम होता जायेगा, श्रमिकों का सीमांत उत्पादन कम होता जायेगा ।

 (C) स्थिर कारक का इष्टतम से अधिक उपयोग(More than Optimum use of the Fixed Factor):-

जब किसी स्थिर कारक का इष्टतम उपयोग अर्थात् सबसे अच्छा उपयोग होने के पश्चात उसके साथ लगाये जाने वाले परिवर्ती कारक की मात्रा को बढ़ाया जाता है तो परिवर्ती कारक का सीमांत प्रतिफल कम होने लगता है। इसका कारण यह है कि में प्रयोग इष्टतम उपयोग होने के पश्चात परिवर्ती कारक की मात्रा के बढ़ने के फलस्वरूप स्थिर कारक का गलत अनुपात होने लगता है । उदाहरण के लिए, मान लीजिये एक मशीन उत्पादन का स्थिर कारक है । इस मशीन का इष्टतम उपयोग करने के लिये 4 श्रमिकों की आवश्यकता है यदि उस मशीन पर पांचवां श्रमिक लगाया जायेगा तो पांच श्रमिकों के फलस्वरूप कुल उत्पादकता में बहुत कम वृद्धि होगी, इसलिये सीमांत उत्पादकता कम हो जायेगी ।

(D)अपूर्ण स्थानापन्न (Imperfect Substitute ):-

श्रीमती जोन रोबिन्सन के अनुसार, परिवर्ती अनुपात के नियम के लागू होने का मुख्य कारण कारकों में पाई जाने वाली अपूर्ण स्थानापन्नता है । एक कारक के स्थान पर दूसरे कारक का पूरी तरह प्रयोग नहीं किया जा सकता है । यदि कारकों में पूर्ण स्थानापन्नता संभव होती तो स्थिर कारक का इष्टतम उपयोग होने के पश्चात जैसे-जैसे परिवर्ती कारक की मात्रा को बढ़ाया जाता, स्थिर कारक के स्थान पर उसके स्थानापन्न का प्रयोग करके उसकी पूर्ति को भी बढ़ाया जा सकता था। इसके फलस्वरूप उत्पादन को पहले जैसे अनुपात में बढ़ाना संभव हो सकता था। परंतु वास्तविक जीवन में उत्पादन के कारक अपूर्ण स्थानापन्न होते हैं इसलिए जब स्थिर कारक का इष्टतम प्रयोग होने लगता है तो उसके स्थान पर किसी दूसरे कारक का प्रतिस्थापन नहीं किया जा सकता। इसके फलस्वरूप परिवर्ती कारकों तथा स्थिर कारकों का अनुपात उचित नहीं हो पाता तथा परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद कम होने लगता है।

 नियम का स्थगन  (Postponement of the Law) 

                       अथवा

क्या इस नियम को लागू होने से रोका जा सकता है।

(1) यदि उत्पादन तकनीक में सुधार होगा तो परिवर्ती अनुपात के नियम का स्थगन किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, तकनीक में होने वाले सुधारों के फलस्वरूप इस नियम को कुछ समय के लिए स्थगित किया जा सकता है।

(2) इस नियम का तब भी स्थगन किया जा सकता है जब स्थिर कारकों के किसी स्थानापन्न की खोज कर ली जाती है।

नियम के स्थगन का यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए कि इस नियम को लागू होने से रोका जा सकता है। जब कारक – अनुपात सर्वोत्तम स्तर पर नहीं रहता, तब यह नियम अवश्य लागू होता है।

 पैमाने के प्रतिफल के  नियम की रेखाचित्र व तालिका की सहायता से व्याख्या कीजिए

दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारक परिवर्तनशील होते हैं, कोई भी कारक स्थिर नहीं होता। दीर्घकाल के सभी कारकों को एक ही अनुपात में बढ़ाकर किसी वस्तु के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। यदि सभी कारक एक ही अनुपात में बढ़ाए जाएं तो प्रतिफल में जो परिवर्तन होगा, उसे उत्पादन के पैमाने का प्रतिफल कहेंगे। साधारणतया पैमाने के प्रतिफल के नियम से अभिप्राय सभी कारकों में समान अनुपात में वृद्धि होने के कारण कुल उत्पादन में होने वाली

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