अध्याय 1 -अर्थशास्त्र की अवधारणा एवं अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का महत्त्व (Concept of Economics and Significance of Statistics in Economics)
अर्थशास्त्र क्या है? (What is Economics?)
अंग्रेजी भाषा में अर्थशास्त्र को Economics कहा जाता है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Oikos (घरेलू) तथा Nemein (प्रबंध) से लिया गया है। इनका अर्थ होता है गृह प्रबंध।
अर्थशास्त्र हिंदी के दो शब्दों, अर्थ = धन तथा शास्त्र = वैज्ञानिक अध्ययन से मिलकर बना है।
निम्नलिखित तत्वों से परिभाषा बनाई जा सकती है।
- आवश्यकताएँ- असीमित
- साधन [धन]- सीमित
- अधिक से अधिक आवश्यकताओं की संतुष्टि
प्रत्येक गृहस्थ की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं, परंतु उन्हें संतुष्ट करने वाले अधिकतर साधन सीमित होते हैं सीमित साधनों को असीमित आवस्यकता पर इस प्रकार खर्च करना है कि अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो जाए ,जिस शास्त्र में यह अध्ययन किया जाता है उसे अर्थशास्त्र कहते है
अर्थशास्त्र के कितने मूल अंश हैं? Principal Components of Economics
नार्वे के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री तथा अर्थशास्त्र के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रैगनर फ्रिश ने अर्थशास्त्र को दो भागों में बांटा है
अर्थशास्त्र के दो मूल अंश व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र
1.व्यष्टि-अर्थशास्त्र– अंग्रेजी भाषा में ‘व्यष्टि’ को ‘Micro‘ कहा जाता है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द ग्रीक भाषा के शब्द Mikros से लिया गया है जिसका अर्थ है छोटा (SMALL)
व्यष्टि- अर्थशास्त्र केवल एक आर्थिक इकाई की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है, जैसे एक व्यक्तिगत गृहस्थ की नमक के लिए माँग, अथवा कुछ आर्थिक इकाइयों के छोटे से समूह जैसे बाजार की नमक के लिए माँग । अतएव व्यष्टि – अर्थशास्त्र में हम व्यक्तिगत इकाइयों जैसे एक उपभोक्ता, एक फर्म, एक उद्योग की आर्थिक क्रियाओं तथा किसी एक विशिष्ट वस्तु के मूल्य का अध्ययन करते हैं।
2.समष्टि अर्थशास्त्र –
अंग्रेजी भाषा में ‘समष्टि’ को ‘Macro’ कहा जाता है । अंग्रेजी भाषा का यह शब्द ग्रीक भाषा के शब्द Makros से लिया गया है, जिसका अर्थ है बड़ा (Large)। यह संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक क्रियाओं एवं आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है। राष्ट्रीय आय, रोजगार एवं कीमत स्तर से संबंधित विषय समष्टि अर्थशास्त्र के मूल अंग है।
प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी आर्थिक क्रिया में लिप्त है। हम सभी उपभोक्ता हैं, अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए हम विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग करते हैं । उपभोग एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्रिया (Economic Activity) है।
उपभोक्ता कौन है? (Who is a Consumer?)
उपभोक्ता एक वह व्यक्ति है जो अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग करता है।
उपभोग क्या है? (What is Consumption ?)
उपभोग एक क्रिया है जिसके द्वारा अपनी आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं के उपयोगिता मूल्य का प्रयोग होता है।
वस्तु के उपयोगिता मूल्य का अर्थ है मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं की क्षमता या गुण (शक्ति)।
उत्पादक कौन है? (Who is a Producer?)
उत्पादक वह व्यक्ति है जो आय अर्जित करने के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन या बिक्री करता है।
उत्पादन क्या है? (What is Production?)
उत्पादन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कच्चे माल को उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित किया जाता है। वस्तुएं तभी उपयोगी होती हैं जब उत्पादन प्रक्रिया में वे उपयोगिता मूल्य प्राप्त कर लेती हैं।
बचत क्या है? (What is Saving?)
यह आय का वह भाग है जिसका उपभोग नहीं किया जाता। एक प्रकार से यह उपभोग से त्याग या संयम (Abstinance) की एक क्रिया है।
निवेश क्या है? (What is Investment? )
यह उन पूंजीगत परिसंपत्तियों (Assets) की खरीद पर किया गया व्यय है जो हमें आय अर्जित में सहायता देता है।
अतएव हम उपभोक्ता, उत्पादक, बचतकर्ता तथा निवेशकर्ता हैं। हम सभी विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में संलग्न हैं। आर्थिक क्रियाओं में उपभोग, उत्पादन, बचत, निवेश तथा अन्य कई सम्मिलित होते हैं।
आर्थिक क्रिया क्या है ? (What is Economic Activity?)
यह वह क्रिया है जिसका संबंध दुर्लभ साधनों (संसाधनों) के प्रयोग से है। आवश्यकताओं की तुलना में साधन सदैव दुर्लभ होते हैं। D>S
आधुनिक अर्थशास्त्र के एक प्रतिपादक, एल्फ्रेड मार्शल ( Alfred Marshall) के अनुसार, विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में लगे होने के कारण हम ‘जीवन का सामान्य व्यवसाय’ निभा रहे हैं। अतएव वह अर्थशास्त्र को “जीवन के सामान्य व्यवसाय के संबंध में मानव जाति के अध्ययन” के रूप में परिभाषित करता है ।” (Economics is a study of mankind in the ordinary business of life.)
आर्थिक समस्या क्या है? (What is Economic Problem?)
हमारी आवश्यकताओं के संदर्भ में हमारे साधन दुर्लभ(सीमित) हैं और इन साधनों के वैकल्पिक उपयोग हैं।इसलिए हमें चुनना करना पड़ता है चुनना करना आर्थिक समस्या है
यह चयन की समस्या है (वैकल्पिक उपयोगों में दुर्लभ(सीमित) संसाधनों के आवंटन की समस्या है जो इस तथ्य के कारण उत्पन होती है कि संसाधन दुर्लभ हैं और इनके वैकल्पिक उपयोग हैं।
हमारी आवश्यकताओं के संदर्भ में हमारे साधन दुर्लभ हैं और इन साधनों के वैकल्पिक उपयोग हैं। यदि दुर्लभता न होती, तब कोई भी आर्थिक समस्या न होती और यदि कोई भी आर्थिक समस्या न होती तो अर्थशास्त्र भी नहीं होता । इसीलिए
रॉविन्स के अनुसार “अर्थशास्त्र एक वह विज्ञान है जो वैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित साधनों तथा उद्देश्यों से संबंध रखने वाले मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है।” (Economics is a science that studies human behaviour as a relationship between ends and scarce means which have alternative uses. -Robbins)
सांख्यिकी क्या है ? (What is Statistics?)
सांख्यिकी संख्यात्मक-सूचनाओं (आंकड़े) भण्डार है। जिनमे कारण और परिणाम संबंधित हो।
सांख्यिकी से अभिप्राय है संख्यात्मक सूचना या उनसे संबंधित परिमाणात्मक तथ्य एवं निष्कर्ष से है । (Statistics means quantitative information or quantification of the facts and findings relating to different phenomena.)
सांख्यिकी – बहुवचन संज्ञा (Statistics – A Plural Noun)
बहुवचन के रूप में सांख्यिकी का अर्थ अंकों के रूप में व्यक्त की गई सूचना अथवा आँकड़ो (Statistics) से होता है, जैसे जनसंख्या संबंधी आँकड़े, रोजगार संबंधी आँकड़े, सार्वजनिक व्यय के आँकड़े इत्यादि । संख्यात्मक तथ्यों के समूह को सांख्यिकी कहा जाता है। निम्नलिखित तालिका द्वारा दो प्रकार के आँकड़े प्रकट होते हैं। एक तो वे आँकड़े जो सांख्यिकी हैं और दूसरे वे आँकड़े जो सांख्यिकी नहीं हैं:
आँकड़े जो सांख्यिकी नहीं हैं (Data which are not Statistics) | आँकड़े जो सांख्यिकी हैं (Data which are Statistics) |
1. गाय की चार टाँगें हैं। | 1. भारत में 26 वर्ष से ऊपर की आयु के युवकों की औसत ऊँचाई 6 फिट है जबकि नेपाल में 5 फिट है। |
2. राम की जेब में दो सौ रुपये हैं। | 2. भारत में जन्म दर 18 प्रति हजार है जबकि अमेरिका में 8 प्रति हजारहै। |
3. एक 100 कि०मी०/घंटा की तेज रफ्तार वाले टक द्वारा एक महिला को घायल करना । | 3. पिछले 10 वर्षों में भारत ने क्रिकेट के 60 टेस्ट मैच जीते हैं तथा50 हारे हैं। |
सभी सांख्यिकी आँकड़े हैं। परंतु सभी आँकड़े सांख्यिकी नहीं हैं। (All numerical data cannot be called statistics but all statistics are called numerical data.)
बहुवचन संज्ञा के रूप में विभिन्न लेखकों ने सांख्यिकी की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं:–
ए० एल० बाउले के अनुसार, “आँकड़े अनुसंधान के किसी विभाग में तथ्यों के संख्या के रूप में ऐसे विवरण होते हैं, जिन्हें एक-दूसरे के संबंधित रूप में प्रस्तुत किया जाता है।” (Statistics are numerical statements of facts in any department of enquiry placed in relation to each other. -A.L. Bowley)
यूल तथा केंडाल के अनुसार, “आँकड़ों से हमारा अभिप्राय उन संख्यात्मक तत्त्वों से है, जो पर्याप्त सीमा तक अनेक प्रकार के कारणों से प्रभावित होते हैं। ”
मात्रात्मक और गुणात्मक आँकड़ों में अंतर स्पस्ट करें (Distinction between Quantitative and Qualitative Data)
मात्रात्मक आँकड़े :-
मात्रात्मक आँकड़ों से अभिप्राय मात्रात्मक चरों से है आय व्यय तथा निवेश जैसे मात्रात्मक चर हैं जिन्हें संख्यात्मक या आंकिक शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है, जैसे मान लीजिए भारत में वर्ष 2009-10 में प्रति व्यक्ति प्रति मास आय ₹4,000, प्रति व्यक्ति व्यय ₹3,000 प्रति मास और शुद्ध निवेश ( या पूंजी निर्माण) ₹10,000 करोड़ प्रति वर्ष था। इन सभी आँकड़ों को मात्रात्मक आँकड़े कहा जाता है।
गुणात्मक आँकड़े:-
गुणात्मक आँकड़ों से अभिप्राय विभिन्न वस्तुओं (Objects) के गुणात्मक गुणों से है। कुछ गुणात्मक गुण होते हैं जैसे विभिन्न व्यक्तियों का ‘IQ(बुद्धि)’ स्तर अथवा उनकी सुन्दरता, इनको संख्यात्मक या आंकिक शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। ये गुण वस्तुओं (Objects) गुणात्मक विशेषताओं को व्यक्त करते हैं। इनको अच्छी, बहुत अच्छी या अति श्रेष्ठ (Excellent ) कोटि (Rank) दी जा सकती है। हम इन्हें 1, 2, 3 आदि कोटि (Rank) दे सकते हैं। इन सभी आँकड़ों को गुणात्मक आँकड़े कहा जाता है।
सांख्यिकी की बहुवचन संज्ञा अथवा समंकों (Data) के रूप में विशेषताएँ बताओ (Features or Characteristics of Statistics in the Plural Sense or as Numerical Data)
1.तथ्यों के समूह (Aggregate of Facts):-
एक अकेली संख्या सांख्यिकी नहीं कहलाती क्योंकि उससे कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। एक अकेली संख्या से आँकड़ों के औसतों या परिणाम नहीं निकाल सकते है
सांख्यिकी से अभिप्राय आँकड़ों के औसतों या समूहों से है जिनका किसी अन्वेषण जैसे की भारत में जनसंख्या की वृद्धि या किसी घटना जैसे की किसी वस्तु की मांग तथा कीमत में विपरीत संबंध को प्रकट करता है।
(2) संख्याओं में व्यक्त (Numerically Expressed):-
सांख्यिकी को संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है। गुणात्मक तत्त्वों जैसे छोटा या बड़ा, गरीब या अमीर आदि को सांख्यिकी नहीं कहा जाता । उदाहरण के लिए, यदि हम यह कहें कि इरफान पठान लंबा है तथा सचिन छोटा है तो ये कथन सांख्यिकी नहीं कहलायेंगे। परंतु यदि यह कहा जाता है कि इरफान पठान की लंबाई 6 फुट 2 इंच है तथा सचिन की लंबाई 5 फुट 4 इंच है तो ये कथन सांख्यिकी कहलायेंगे ।
(3) अनेक कारणों से प्रभावित (Affected by Multiplicity of Causes):-
आँकड़ों पर किसी एक कारण का प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि अनेक प्रकार के कारणों का प्रभाव पड़ता है। यदि आँकड़े केवल एक ही कारण से प्रभावित होते हैं तो उस कारण को हटाने के बाद वे सामान्य हो जायेंगे। उनका कोई महत्त्व नहीं रहेगा। अतएव आँकड़े कई प्रकार के कारणों द्वारा प्रभावित होते हैं। उदाहरण के लिए, कीमतों में होने वाली 30 प्रतिशत की वृद्धि के कई कारण हो सकते हैं जैसे-पूर्ति में कमी, मांग में वृद्धि, बिजली की कमी, श्रमिकों को अधिक मजदूरी, करों में वृद्धि आदि ।
( 4 ) उचित मात्रा में शुद्धता (Reasonable Accuracy):-
सांख्यिकी को एकत्रित करते समय शुद्धता के एक उचित स्तर को ध्यान में रखना चाहिए। यह शुद्धता अनुसंधान उद्देश्य, उसकी प्रकृति, आकार व उपलब्ध साधनों पर निर्भर करती है।
(5) एक-दूसरे से संबंधित रूप में होना (Placed in Relation to Each Other):-
केवल उन संख्याओं को समंक(आंकड़ा) कहा जायेगा जो एक-दूसरे से संबंधित हों अर्थात् उनकी परस्पर तुलना की जा सके। जब तक उनमें तुलना का गुण न हो वे सांख्यिकी नहीं कहलायेंगे।
उदाहरण के लिए, यह कहा जाता है कि राम की आयु 40 वर्ष है, मोहन की लंबाई 5 फुट है, सोहन का वजन 60 किलो है तो इन संख्याओं को समंक नहीं कहा जायेगा, क्योंकि इनमें कोई संबंध नहीं है अर्थात् इनकी तुलना करना संभव नहीं है। इसके विपरीत यदि इन तीनों की आयु, ऊँचाई तथा वजन एक साथ रखे जायें तो ये समंक हो सकते हैं।
( 6 ) पूर्व – निश्चित उद्देश्य (Pre-determined Purpose) :-
आँकड़े किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए ही एकत्रित किये जाते हैं। बिना किसी उद्देश्य से एकत्रित की गई सूचनाएँ केवल संख्या ही कहलायेंगी, उन्हें सांख्यिकी नहीं कहा जायेगा। यदि किसी गाँव के किसानों के संबंध में आँकड़े एकत्रित किये जा रहे हैं तो इसका कोई पूर्व – निश्चित उद्देश्य होना चाहिए कि उन्हें क्यों एकत्रित किया जा रहा है। उनकी आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए, उनमें जमीन के वितरण या उनकी जनसंख्या का पता लगाने के लिए या किसी अन्य उद्देश्य से आँकड़े एकत्रित किये जा रहे हैं।
(7) गणना तथा अनुमान (Enumerated or Estimated):–
समंक को गणना द्वारा या अनुमान द्वारा एकत्रित किया जा सकता है। यदि अनुसंधान का क्षेत्र विस्तृत है तो अनुमान पद्धति उपयुक्त हो सकती है जैसे प्रधानमंत्री की दिल्ली की सभा में 1 लाख लोग तथा मुम्बई में 2 लाख लोग आये। ये आँकड़े अनुमान द्वारा प्राप्त किए गए हैं। इसके विपरीत
यदि अनुसंधान क्षेत्र सीमित है तो गणना पद्धति ही उचित होगी जैसे कक्षा में 20 विद्यार्थी उपस्थित हैं या काम पर 10 मजदूर आये हैं। यह गणना द्वारा ज्ञात किया जायेगा।
( 8 ) व्यवस्थित रूप से संकलित (Collected in a Systematic Manner):-
आँकड़े व्यवस्थित रूप से संकलित किये जाने चाहिए। इन्हें एकत्रित करने से पहले एक योजना बना लेनी चाहिए। अव्यवस्थित रूप से संकलित किए गए ऑकड़ों से कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकेगा। उदाहरणस्वरूप किसी कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त अंक एकत्र कर लिये जायें परंतु यह ध्यान न रखा जाये कि वे किस कक्षा, विषय या परीक्षा के हैं तथा कितने अंकों में से हैं तो कोई परिणाम नहीं निकलेगा।
सांख्यिकी – एकवचन संज्ञा (Statistics – A Singular Noun)
एकवचन के रूप में सांख्यिकी के अध्ययन से अभिप्राय – सांख्यिकी अध्ययन की विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त करना है।
सांख्यिकी विधि वह विधि है जो संख्यात्मक आँकड़ों के संकलन, वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा निर्वचन का अध्ययन करती है ।
परिभाषा (Definition)
क्राक्सटन तथा काउडेन के अनुसार, “सांख्यिकी को संख्यात्मक आँकड़ों का संग्रह करने, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा उनके निर्वचन से संबंधित विज्ञान कहा जा सकता है। ‘ (Statistics may be defined as the collection, presentation, analysis and interpretation of numerical data. -Croxton and Cowden)
लॉविट के अनुसार, “सांख्यिकी वह विज्ञान है जो संख्या संबंधी तथ्यों के संग्रहण, वर्गीकरण और सारणीकरण से संबंध रखता है, ताकि वे घटनाओं की व्याख्या, विवरण और तुलना के लिए आधारस्वरूप प्रयोग हो सके । ” (Statistics is the science which deals with the collection, classification and tabulation of numerical facts as a basis for the explanation, description and comparison of phenomena. -Lovitt)
सांख्यिकी अध्ययन की अवस्थाएँ (Stages of Statistical Study)
एकवचन के रूप में सांख्यिकी ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए अध्ययन का केंद्र-बिंदु है। आपको यह सीखना तथा समझना है कि आँकड़ों का एकत्रीकरण, व्यवस्थितीकरण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा निर्वचन कैसे किया जाए।
1.आँकड़ों का संकलन (Collection of Data)
2.आँकड़ों का व्यवस्थितीकरण (Organisation of Data)
3.आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण (Presentation of Data)
4.आँकड़ों का विश्लेषण (Analysis of Data)
5.आँकड़ों का निर्वचन (Interpretation of Data)
सांख्यिकीय उपकरण क्या हैं? (What are Statistical Tools ? )
सांख्यिकीय उपकरण वे विधियाँ हैं जिनका प्रयोग आँकड़ों के एकत्रीकरण, व्यवस्थितीकरण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा निर्वचन के लिये किया जाता है।
सांख्यिकीय उपकरण (Statistical Tools)
सांख्यिकीय अध्ययन की प्रत्येक अवस्था में विशेष प्रकार की तकनीक या उपाय का प्रयोग किया जाता है। इन तकनीकों या उपायों को सांख्यिकीय उपकरण कहा जाता है ।
1.आँकड़ों का संकलन करने के लिए उपकरण :-
संगणना (Census) तथा निदर्शन ( Sampling) जैसी तकनीकें हैं।
2.आँकड़ों के व्यवस्थितीकरण के उपकरण:-
आँकड़ों का विन्यास (Array of Data) तथा मिलान रेखाओं (Tally Bars) की तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
3.आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण की प्रसिद्ध उपकरण हैं। –
तालिका, ग्राफ, चित्र(Table, Graph and Diagrams )
4.आँकड़ों के विश्लेषण के उपकरण है:-
औसत तथा प्रतिशत । औसतों, प्रतिशतों, सह-संबंध तथा प्रतीपगमन (Averages, Percentages, Correlation and Regression Coefficients)
5.आँकड़ों का निर्वचन के उपकरण है:-
औसतों, प्रतिशतों या सह-संबंध तथा प्रतीपगमन के विस्तार के रूप में किया जाता है।
सांख्यिकी का क्षेत्र (Scope of Statistics)
सांख्यिकी के क्षेत्र का अध्ययन तीन भागों में किया जा सकता है:
(1) सांख्यिकी की प्रकृति (Nature of Statistics),
(2) सांख्यिकी की विषय सामग्री ( Subject Matter of Statistics) तथा
(3) सांख्यिकी की सीमाएँ (Limitations of Statistics)।
सांख्यिकी की प्रकृति (Nature of Statistics)
प्रो० टिप्पेट अनुसार, “सांख्यिकी विज्ञान तथा कला दोनों ही है।” (Statistics is both a science as well as an art.—Prof. Tippet)
विज्ञान के रूप में सांख्यिकी संख्यात्मक आँकड़ों का वैज्ञानिक या व्यवस्थित ( Systematic) ढंग से अध्ययन करती है।
कला के रूप में, सांख्यिकी वास्तविक जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए मात्रात्मक आँकड़ों से संबंधित है। सांख्यिकी आँकड़ों का प्रयोग करके हम वास्तविक जीवन की समस्याओं को बेहतर रूप से समझ सकते हैं एवं उनका विश्लेषण कर सकते हैं। इसलिए भारत में बेरोजगारी की समस्या का अधिक अर्थपूर्ण रूप से विश्लेषण किया जाता हैं।
सांख्यिकी की विषय सामग्री (Subject Matter of Statistics)
सांख्यिकी की विषय सामग्री के दो संघटक हैं: विवरणात्मक सांख्यिकी तथा निष्कर्षात्मक सांख्यिकी ।
(1) विवरणात्मक सांख्यिकी (Descriptive Statistics)
(2) निष्कर्षात्मक साख्यिकी (Inferential Statistics)
(1) विवरणात्मक सांख्यिकी (Descriptive Statistics) :-
विवरणात्मक सांख्यिकी से अभिप्राय उन विधियों से है जिनका प्रयोग आँकड़ों के संकलन, प्रस्तुतीकरण तथा विश्लेषण के लिए किया जाता है। यह विधियाँ ‘केंद्रीय प्रवृत्तियों के मापों’ (औसत, माध्यिका, बहुलक), अपकिरण के मापों (माध्य विचलन, मानक विचलन आदि), ‘सह- संबंध के मापों’ आदि की गणनाओं से संबंधित है।
उदाहरण: विवरणात्मक सांख्यिकी का प्रयोग तब किया जाता है जब आप अपने विद्यालय में 12th के विद्यार्थियों की औसत लंबाई की गणना करते हैं।
(2) निष्कर्षात्मक सांख्यिकी (Inferential Statistics):-
निष्कर्षात्मक सांख्यिकी से अभिप्राय उन सभी विधियों से है जिनके द्वारा किसी प्रतिदर्श (Sample) के आधार पर समग्र या जनसंख्या (Universe or Population) के संबंध में निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
[सांख्यिकी में समग्र या जनसंख्या (Universe or Population) से अभिप्राय किसी विषय से संबंधित सभी मदों या इकाइयों के कुल जोड़ से है ।]
उदाहरण के लिए, यदि आपकी कक्षा का अध्यापक केवल कक्षा के विद्यार्थियों के प्रतिदर्श (Sample) के औसत वजन के आधार पर ही संपूर्ण कक्षा के औसत वजन की गणना करता है तो वह निष्कर्षात्मक सांख्यिकी का प्रयोग कर रहा है।
सांख्यिकी की सीमाओं का वर्णन कीजिए।(Limitations of Statistics)
सांख्यिकी की कुछ महत्त्वपूर्ण सीमाएँ निम्नलिखित हैं:
- केवल संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन ( Study of Numerical Facts only):–
सांख्यिकी केवल ऐसे तथ्यों का अध्ययन करती है जिन्हें संख्याओं के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। इसके अंतर्गत गुणात्मक तथ्यों जैसे ईमानदारी, मित्रता, बुद्धिमत्ता, स्वास्थ्य, देश-प्रेम, न्याय आदि का अध्ययन नहीं किया जाता ।
2. केवल समूहों का अध्ययन (Study of Aggregates only):-
सांख्यिकी के अंतर्गत केवल मात्रात्मक तथ्यों के समूहों का अध्ययन किया जाता है। इसमें किसी विशेष इकाई है का अध्ययन नहीं किया जाता है। उदाहरण: यह एक सांख्यिकीय तथ्य हो सकता कि आपकी कक्षा का अध्यापक ₹50,000 प्रति माह अर्जित करता है। परंतु, चूंकि यह तथ्य एक व्यक्ति से संबंधित है, इसे सांख्यिकी की विषय सामग्री नहीं माना जा सकता। इसे सांख्यिकी की विषय सामग्री केवल तभी कहा जाएगा जब हम प्रदेशों के मध्य आय का अंतर ज्ञात करने के उद्देश्य से सभी भागों के विद्यालयों के अध्यापकों की आय का अध्ययन करते है।
3. आँकड़ों में एकरूपता या सजातीयता का होना आवश्यक शर्त है (Homogeneity of Data an essential Requirement) :-
आँकड़ों की तुलना करने के लिए यह आवश्यक है कि जो आँकड़े एकत्रित किए जाएँ वे एक ही गुण को प्रकट करने वाले हों। के विभिन्न जाति या गुणों के आँकड़ों की परस्पर तुलना नहीं की जा सकती। उदाहरण लिए, कपड़े तथा अनाज के उत्पादन की मात्रा के अनुसार तुलना करना संभव नहीं है क्योंकि कपड़े को मीटर में तथा अनाज को टनों में व्यक्त किया जाता है। परंतु इनके उत्पादन की मात्रा की बजाय, उत्पादन के मूल्यों की तुलना संभव हो सकेगी।
3. परिणाम केवल औसतन सत्य होते हैं (Results are True only on an Average):-
सांख्यिकी के नियम केवल औसत के रूप में ही सत्य होते हैं। प्राकृतिक विज्ञान की तरह सांख्यिकी के नियम पूर्ण रूप से त्रुटि – मुक्त नहीं होते। वे हमेशा तथा सभी परिस्थितियों में लागू नहीं होते । उदाहरण के लिए, यदि कहा जाता है कि भारत की प्रति व्यक्ति आय ₹50,000 प्रति वर्ष है तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि प्रत्येक व्यक्ति की आय ₹50,000 होगी। कुछ व्यक्तियों की इससे अधिक हो सकती है तथा कुछ व्यक्तियों की कम हो सकती है।
4. बिना संदर्भ के निष्कर्ष गलत हो सकते हैं (Without Reference Results may Prove to be Wrong ) :-
सांख्यिकी निष्कर्षों को भली प्रकार से समझने के लिए यह आवश्यक है कि उन परिस्थितियों का भी अध्ययन किया जाए जिनमें निष्कर्ष निकाले गए हों अन्यथा वे असत्य सिद्ध हो सकते हैं। उदाहरण: कपड़े के व्यवसाय में तीन वर्षों का लाभ क्रमश: ₹ 1,000, ₹2,000 तथा ₹3,000 है। इसके विपरीत, कागज के व्यवसाय में उन्हीं तीन वर्षों का लाभ क्रमश: ₹3,000, ₹2,000 तथा ₹ 1,000 है। दोनों का औसत लाभ ₹2,000 होता है। इससे परिणाम निकलता है कि दोनों व्यवसायों की एक-सी अवस्था है किंतु यह वास्तविकता नहीं है। संदर्भ में देखा जाए तो कपड़े का व्यवसाय प्रतिवर्ष उन्नति कर रहा है, जबकि कागज का व्यवसाय अवनति कर रहा है।
5. केवल विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग (Can be used only by Experts ):-
सांख्यिकी का प्रयोग केवल उन व्यक्तियों द्वारा ही किया जा सकता है जिन्हें सांख्यिकी विधियों का विशेष ज्ञान है। अनजान साधारण व्यक्ति इसका प्रयोग नहीं कर सकते । इसलिए कहा जा सकता है कि अयोग्य मनुष्य के हाथ में आँकड़े, अयोग्य डॉक्टर के हाथ में दवाई के समान हैं, जिसका दुरुपयोग बड़ी आसानी से हो सकता है तथा जिसके अनेक विनाशकारी परिणाम हो सकते है।
6. दुरुपयोग संभव (Prone to Misuse) :-
सांख्यिकी का दुरुपयोग बहुत ही सामान्य है। सांख्यिकी का पहले से तैयार निष्कर्ष का समर्थन करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है भले ही जब यह निष्कर्ष बिलकुल गलत हो। आँकड़ों के संबंध में यह कहा जाता है कि ‘“समंक गीली मिट्टी के समान हैं जिनसे आप देवता या शैतान की मूर्ति जो चाहें बना सकते हैं।” (Statistics are like clay of which you can make a god or devil, as you please.)
अर्थशास्त्र में सांख्यिकी के महत्त्व पर प्रकाश डाले । (Importance of Statistics in Economics)
अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है:
- आर्थिक समस्याओं की परिमाणात्मक अभिव्यक्ति (Quantitative Expression of Economic Problems ):-
विभिन्न समस्याएँ चाहे वह बेरोजगारी या कीमत वृद्धि या घटते हुए निर्यात की हों, को समझने के लिये अर्थशास्त्री को सबसे पहले उसकी परिमाणात्मक अभिव्यक्ति (Quantitative Expression) द्वारा उसके विस्तार का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। उदाहरण के लिये, बेरोजगारी की समस्या को अर्थशास्त्री इस प्रकार व्यक्त करते हैं कि भारत की कार्यशील जनसंख्या का 20 प्रतिशत भाग बेरोजगार है अथवा सन् 1995-2005 के बीच भारत की बेरोजगार कार्यशील जनसंख्या 18 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत हो गई है।
2. अंतर्क्षेत्रीय तुलनाएँ (Inter-sectoral Comparisons):-
अंतर्क्षेत्रीय तुलनाओं से अभिप्राय है अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के मध्य में की जाने वाली तुलनाएँ। उदाहरण के लिए, बेरोजगारी की समस्या का विश्लेषण करने के लिए अर्थशास्त्री यह जानना चाहेंगे कि ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी का कितना विस्तार है। वे यह जानकारी प्राप्त करना चाहेंगे कि शहरी जनसंख्या में पाई जाने वाली बेरोजगारी प्रतिशत की तुलना में ग्रामीण जनसंख्या में कितने प्रतिशत बेरोजगारी है ।
3. अंतर – समय तुलनाएँ (Inter – Temporal Comparisons):-
तुलना से यह अभिप्राय है कि समय के साथ-साथ किसी समस्या के विस्तार में कितना परिवर्तन हुआ है। उदाहरण के लिए, इसका अभिप्राय यह होगा कि विभिन्न योजनाओं की अवधि में ग्रामीण और शहरी कार्यशील जनसंख्या में कितने प्रतिशत लोग बेरोजगार हैं।
(4) कारण- परिणाम संबंध ज्ञात करना (Working Out Cause and Effect Relationship):-
अर्थशास्त्री विभिन्न आँकड़ों के समूहों में कारण- परिणाम संबंध ज्ञात करने के लिए प्रयत्नशील होते हैं। इसके फलस्वरूप उनके लिए, समस्याओं का प्रभावपूर्ण निदान तथा उपचार करना संभव हो जाता है । उदाहरण के लिए, यदि संख्यात्मक अध्ययन के द्वारा अर्थशास्त्री को यह ज्ञात होता है कि माँग में कमी होने के कारण अर्थव्यवस्था में निवेश में कमी होने की प्रवृति प्रकट हो रही है तो वह सरकार को अर्थव्यवस्था में माँग के स्तर को बढ़ाने से संबंधित उपायों के विषय में सुझाव देगा।
( 5 ) आर्थिक सिद्धांतों या आर्थिक मॉडल का निर्माण (Construction of Economic Theories or Economic Models):-
आर्थिक सिद्धांत क्या है? यह संख्यात्मक आँकड़ों के विभिन्न समूहों के बीच में स्थापित संख्यात्मक संबंध है जो आर्थिक महत्त्व के निष्कर्ष प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की कीमत तथा माँग में विपरीत संबंध एक पूर्व स्थापित संबंध है इसलिए यह आर्थिक सिद्धांत का एक भाग है। क्या सिद्धांतों या मॉडल का निर्माण संख्यात्मक प्रयोग के बिना संभव है? नहीं, यह संभव नहीं है।
(6) आर्थिक भविष्यवाणी (Economic Forecasting):-
भविष्यवाणी से हमारा अभिप्राय किसी ज्योतिषी की तरह भविष्यवाणी करने से नहीं है। इससे अभिप्राय आर्थिक महत्त्व की कुछ घटनाओं में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के संबंध में विचार प्रकट करने से है। उदाहरण के लिए, विभिन्न वर्षों में कीमत स्तर के व्यवहार का अध्ययन करने के बाद अर्थशास्त्री यह संख्यात्मक भविष्यवाणी कर सकते हैं कि निकट भविष्य में कीमत स्तर की क्या प्रवृत्ति होने की संभावना है। इसके द्वारा हमें भविष्य में आने वाली समस्याओं के संबंध में तैयार रहने में सहायता मिलती है।
( 7 ) नीतियों का निर्माण (Formulation of Policies):-
एक वित्त मंत्री सांख्यिकी अध्ययनों के द्वारा ही सरकार की आय में वृद्धि के स्रोत के रूप में करों में वृद्धि या कमी करने के संबंध में निर्णय लेते हैं। वित्त मंत्री सांख्यिकी अन्वेषणों के द्वारा ही लोगों द्वारा कर(Tax) देने की क्षमता के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं। इसी के आधार पर वे करों की दर इस प्रकार निर्धारित करते हैं कि अधिकतम संभव आय प्राप्त करने के लिए लोगों को त्याग करना पड़े।
8. आर्थिक संतुलन (Economic Equilibrium):-
आर्थिक संतुलन से क्या अभिप्राय है? यह उत्पादकों या उपभोक्ताओं के लिए स्थिर अवस्था (State of Rest) है। इस स्थिति में उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं की संतुष्टि अधिकतम होती है। अर्थशास्त्रियों ने सांख्यिकी विधियों का प्रयोग करके आर्थिक सिद्धांतों (Eco-Fundas) की रचना की है जिनसे यह ज्ञात होता है कि उत्पादकों के लाभ कैसे अधिकतम होते हैं या उपभोक्ता किस प्रकार अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करते हैं।
सांख्यिकी की अविश्वसनीयता (Distrust of Statistics)
लोग सांख्यिकी पर विश्वास नहीं करते हैं। सांख्यिकी पर अविश्वास के संबंध में निम्न बातें कही
जाती हैं:-
(i) सांख्यिकी झूठ का इन्द्रधनुष है। (Statistics is a rainbow of lies.)
(ii) सांख्यिकी झूठ के तंतु हैं। (Statistics are tissues of falsehood.)
(iii) सांख्यिकी कुछ भी सिद्ध कर सकती है। (Statistics can prove anything.)
(iv) सांख्यिकी कुछ भी सिद्ध नहीं कर सकती । (Statistics cannot prove anything.)
(v) सांख्यिकी गीली मिट्टी के समान है जिससे आप देवता या शैतान जो भी इच्छा हो बना सकते (Statistics are like clay of which you can make a god or devil, as you please.)
(vi) डिजराइली के अनुसार, “झूठ के तीन प्रकार हैं-झूठ, सफेद झूठ तथा सांख्यिकी।” (There
are three kinds of lies – lies, damned lies and statistics.)
अविश्वसनीयता का कारण क्या है? (What Causes Distrust?)
सांख्यिकी की अविश्वसनीयता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
(i) एक ही समस्या के संबंध में विभिन्न प्रकार के आँकड़े प्राप्त होते हैं।
(ii) पूर्व निर्धारित निष्कर्षो को सिद्ध करने के लिए आँकड़ों को बदला जा सकता है।
(iii) सही आँकड़ों को भी इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है कि पढ़ने वाला संशय में पड़ जाए।
(iv) जब आँकड़ों का संकलन पक्षपातपूर्ण ढंग से किया जाता है तो परिणाम सामान्यतः गलत
निकलते हैं। इसके फलस्वरूप लोगों का इनमें विश्वास नहीं रह जाता।
अविश्वास कैसे दूर किया जाए ? ( How to Remove Distrust?)
सांख्यिकी के प्रति अविश्वास को दूर करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं:
(i) सांख्यिकीय सीमाओं की ओर ध्यान (Consideration of Statistical Limitation
सांख्यिकी का प्रयोग करते समय सांख्यिकी की सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए जैसे आँकड को एकरूप तथा सजातीय होना चाहिए ।
(ii) पक्षपात रहित (No Bias) : अनुसंधानकर्ता को पक्षपात रहित होना चाहिए। उसे केवल उचित आँकड़ों का प्रयोग करना चाहिए तथा उनसे बिना किसी पक्षपात के सही निष्कर्ष निकालने चाहिए।
(iii) विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग (Application by Experts): सांख्यिकी का प्रयोग केवल विशेषज्ञों द्वारा किया जाना चाहिए जिससे गलतियों की संभावना कम हो जायेगी।