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Chapter-3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत: विश्लेषण संबंधी कुछ सैद्धांतिक उपकरण 

(Theory of Consumer Behaviour:-Some Theoretical Tools of Analysis)

  1. उपभोक्ता व्यवहार की धारणा (Concept of Consumer Behaviour

उपभोक्ता किसे कहते हैं

उपभोक्ता वह विवेकशील व्यक्ति होता है जो अपनी सीमित आय को वस्तुओं तथा सेवाओं पर खर्च करता है तथा अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करता है।

उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपनी आवश्यकता के प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए वस्तु और सेवा के उपयोगी मूल्य का प्रयोग करता है

उपभोक्ता व्यवहार-

उपभोक्ता व्यवहार से अभिप्राय उस विधि से है जिसके द्वारा उपभोक्ता ये चुनाव करते हैं कि वे अपनी आय को वस्तुओं तथा सेवाओं पर किस प्रकार खर्च करेंगे।

उपभोक्ता अपनी आय को इस प्रकार खर्च करता है कि उसे दी हुई आय और वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त हो सके।

उपभोक्ता व्यवहार में उपभोक्ता शब्द का प्रयोग संस्थाओं, व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूहों अर्थात परिवारों के लिए किया जाता

उपभोक्ता का उद्देश्य उपभोक्ता संतुलन की स्थिति प्राप्त करना होता है।

उपभोक्ता संतुलन

“एक उपभोक्ता उस समय संतुलन की अवस्था में होता है जब वह अपने व्यवहार को वर्तमान परिस्थितियों में सबसे अच्छा मानता है तथा उसमें, जब तक परिस्थितियों में परिवर्तन न हो, कोई परिवर्तन करना पसंद नहीं करता । ”

  • सैम्युअलसन के शब्दों में, “एक उपभोक्ता उस समय संतुलन में होता है जब वह अपनी दी हुई आय तथा वाजार कीमतों से प्राप्त संतुष्टि को अधिकतम कर लेता है।

बजट रेखा किसे कहते हैं

यह वह रेखा है जो दो वस्तु के उन विभिन्न संभव संयोगों को प्रकट करती है जो दिए हुए अपने बजट (आय) तथा दोनो वस्तु की दी हुई कीमतों पर उपभोक्ता खरीद सकता है।

मान लीजिए एक उपभोक्ता का बजट (आय)  60 है तथा सेब और संतरे वह 2 वस्तुएँ है जिन पर उपभोक्ता अपने ₹ 60 खर्च करता है। यह भी मान लीजिए कि सेबों की प्रति इकाई कीमत ₹ 2 और संतरों की प्रति इकाई कीमत ₹ 1 है । इनके अनुरूप हमें सेबों तथा संतरों का निम्नलिखित सेट प्राप्त होता है जो उपभोक्ता अपनी दी गई आय द्वारा खरीद सकता है। यह सेट उपभोक्ता के लिए उस उपभोग संभावना को व्यक्त करता है जो वह अपनी निश्चित आय और दोनो वस्तु की दी हुई कीमतों पर खरीद सकता है।

तालिका 1. उपभोक्ता के लिए उपभोग संभावनाएँ

सेब कीमत ₹ 2 संतरे कीमत ₹ 1
0 60
10 40
20 20
30 0

 

 

यदि एक उपभोक्ता अपनी समस्त आय सेब पर खर्च करता है, तो वह इसकी 30 इकाइयाँ खरीद सकता है। इसके विपरीत यदि वह अपनी समस्त आय संतरे पर खर्च करता है तो वह इसकी 60 इकाइयाँ प्राप्त करता है । वैकल्पिक रूप से, उपभोक्ता सेब की 10 इकाइयाँ (इस पर 10 x 2 = ₹20 खर्च करके) और संतरे की 40 इकाइयाँ (इस पर 40 ×1 = 40 खर्च करके) खरीद सकता है। वह सेब की 20 इकाइयाँ (इस पर 20 x 2 = ₹ 40 खर्च करके) और संतरे की 20 इकाइयाँ (इस पर 20 x 1 = ₹20 खर्च करके) भी खरीद सकता है। इस भाँति आप उन विभिन्न संयोगों के बारे में भी सोच सकते हैं, जो एक उपभोक्ता अपनी दी हुई आय तथा सेब और संतरे की दी हुई कीमतों पर खरीद सकता है।

उपभोक्ता बजट ( वजट समूह) किसे कहते हैं

उपभोक्ता बजट से अभिप्राय उपभोक्ता की निर्धारित आय से है।उसके पास एक निश्चित आय है।उपभोक्ता इस निश्चित आय को दो वस्तुओं की खरीद पर खर्च करता है, तथा उन दोनों वस्तुओं की कीमतें पहले से ही निर्धारित हैं जिनका कि उपभोक्ता को ज्ञान है।

बजट समूह (Budget Set ) 

यह दो वस्तुओं के एक समूह के प्राप्य संयोगों को व्यक्त करता है। जब वस्तुओं की कीमतें तथा उपभोक्ता की आय दी हुई है। तालिका 1 की उपभोग संभावनाओं का रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण चित्र 1 प्रकट करता है।

(प्राप्य अथवा संभाव्य ) तथा (अप्राप्य अथवा असंभाव्य ) संयोग 

[Attainable (or feasible) and Non-attainable (non-feasible) Combinations ] 

क्या उपभोक्ता अपनी बजट रेखा की सीमा से बाहर जा सकता है ? निश्चित रूप से नहीं, यदि उसका बजट दिया हुआ है तथा सेब एवं संतरे की कीमतें दी हुई हैं। अतएव बजट रेखा की सीमा के बाहर कोई भी बिंदु असंभाव्य संयोग को प्रकट करता है। चित्र 2 इस बात को स्पष्ट करता है।

प्राप्य ,संभाव्य(Attainable,Feasibale)

अप्राप्य, असंभाव्य(Non-attainable,non-feasible)

उपभोक्ता की प्राथमिकताएँ (Preferences of the Consumer ) 

तालिका सेबों तथा संतरों के विभिन्न संयोगों को प्रकट कर रही है।

तालिका 2-                संतरों तथा सेबों के विभिन्न संयोग 

सेबों तथा संतरों के संयोग

 

सेब संतरे
A 1 10
B 2 7
C 3 5
D 4 4

 

मान लो ये संयोग (A, B, C, D) उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्रदान करते हैं । उपभोक्ता की पसंद (Preferences) इस प्रकार होगी कि :

A से प्राप्त संतुष्टि स्तर = B से प्राप्त संतुष्टि स्तर = C से प्राप्त संतुष्टि स्तर, इसी प्रकार अन्य से भी ।

उपभोक्ता A, B, C, D में कोई अंतर नहीं पाता है, अथवा A, B, C, D के बीच वह तटस्थ (Indifferent) है। तदनुसार इन संयोगों को तटस्थता समूह ( Indifference Set ) कहा जाता है ।

एकदिष्ट उपभोक्ता अधिमान एवं वस्तु प्रतिस्थापन:-

(Monotonic Preference of a Consumer and Goods Replacement)

एकदिष्ट अधिमान (Monotonic Preference) यह बतलाता है कि एक विवेकशील उपभोक्ता सदा किसी वस्तु की अधिक मात्रा को वरीयता देता है या पसंद करता है, क्योंकि वह उसे संतुष्टि का उच्च स्तर प्रदान

एकदृष्ट वरीयताओं का अर्थ है कि उपभोक्ता की प्राथमिकताएँ ऐसी हैं कि किसी वस्तु का अधिक उपयोग उसे हमेशा उच्च स्तर की संतुष्टि प्रदान करती है। तटस्थता वक्र का नीचे की ओर ढलान उपभोक्ता के एकदिष्ट अधिमान के कारण होता है। एकदिष्ट अधिमान के अनुसार, एक वस्तु की अधिक मात्रा सदैव ही संतुष्टि के उच्च स्तर को प्रदान करती है। तदनुसार, एक वस्तु वृद्धि के कारण दूसरी वस्तु में कमी होनी चाहिए, ताकि तटस्थता वक्र  के सभी बिंदुओं पर संतुष्टि का स्तर समान रहे।

यही वस्तु प्रतिस्थापन की अवधारणा है। इसके अनुसार वस्तु-X  की एक इकाई अधिक का उपभोग करने के लिए वस्तु-Y की कुछ इकाइयों का त्याग करना पड़ेगा ताकि संतुष्टि के स्तर में वृद्धि (वस्तु-X के अधिक उपभोग के कारण) संतुष्टि के स्तर में कमी (वस्तु-Y के कम उपभोग के कारण) से प्रतिभारित (Counter-balanced) हो जाए अर्थात बराबर हो जाए।

तटस्थता समूह (Indifference Set ):-

यह दो वस्तुओं के संयोगों का समूह है जो उपभोक्ता को संतुष्टि का समान स्तर प्रदान करते हैं। इसलिए वह इन संयोगों के बीच तटस्थ हैं।

ह्रासमान सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम और उपभोक्ता की प्राथमिकताएँ 

(Law of Diminishing Marginal Rate of Substitution and Consumer’s Preferences) 

तालिका 2 में अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण नियम ‘ह्रासमान सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम’ (Law of Diminishing Marginal Rate of Substitution) निहित है। यह नियम क्या है ? यह निम्नलिखित व्याख्या से स्पष्ट हो जाता है:

जैसे-जैसे उपभोक्ता के पास किसी वस्तु की मात्रा बढ़ती है वैसे-वैसे उस वस्तु की इच्छा की गहनता कम होती जाती है।

इसके विपरीत जैसे-जैसे उपभोक्ता के पास किसी वस्तु की मात्रा कम होती चली जाती है, वैसे-वैसे उस वस्तु की इच्छा की गहनता बढ़ती जाती है।

जब एक वस्तु को दूसरी वस्तु का स्थान दिया जाता है तो प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली संतुष्टि का लाभ कम होता जाता है, जबकि प्रत्येक त्यागी गई इकाई की संतुष्टि की हानि बढ़ती जाती है।

परिणामस्वरूप उपभोक्ता बार-बार वस्तु-1 की एक इकाई के बदले वस्तु-2 की एक इकाई का त्याग नहीं करेगा। वह वस्तु – 1 की प्रत्येक अगली इकाई के बदले वस्तु-2 की कम (फिर और कम) मात्रा का त्याग करने को तैयार होगा।

दूसरे शब्दों में, जिस दर (Rate) पर वह वस्तु-2 का वस्तु- 1 की प्रत्येक अगली इकाई के लिए त्याग करेगा, वह दर कम होती चली जाएगी। उपभोक्ता की यह प्रवृत्ति नियमानुसार चलती है। इसलिए उसकी इस प्रवृत्ति को ह्रासमान सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम कहा जाता है।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जब उपभोक्ता एक वस्तु की कुछ इकाइयों को दूसरी वस्तु का स्थान देता है तो उसका कुल सन्तुष्टि स्तर समान रहता है। अर्थात कुल सन्तुष्टि-स्तर में कोई वृद्धि या कमी नहीं आती। तालिका 3 से इस नियम की पुष्टि होती है

तालिका 3. संतरों तथा सेबों के विभिन्न संयोग एवं ह्रासमान सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम

सेबों तथा संतरों के संयोग

 

सेब संतरे सीमांत प्रतिस्थापन दर

 

A 1 10 3:1 (उपभोक्ता 1 अतिरिक्त सेब के बदले 3 संतरों का त्याग करने को तैयार है)

 

2:1 (उपभोक्ता 1 अतिरिक्त सेब के बदले 2 संतरों का त्याग करने को तैयार

 

1:1 अतिरिक्त सेब के बदले केवल 1 संतरे का त्याग करने को तैयार है

 

B 2 7
C 3 5
D 4 4  

प्रारंभ में उपभोक्ता 1 सेब तथा 10 संतरे लेता है । फिर वह 1 सेब और लेता है और उसके बदले 3 संतरों का त्याग करता है। यहाँ सीमांत प्रतिस्थापन दर 3:1 की है। उसके बाद उपभोक्ता एक और सेब के बदले केवल 2 संतरों का त्याग करता है। अब सीमांत प्रतिस्थापन दर घटकर 2: 1 रह जाती है। इसके बाद एक और सेब के बदले में केवल 1 ही संतरे का त्याग किया जाता है। अर्थात सीमांत प्रतिस्थापन दर घट कर 1:1 हो जाती है। याद रहे कि जब सीमांत प्रतिस्थापन दर घट रही है, किसी भी परिस्थिति में उपभोक्ता का कुल तुष्टि-स्तर कम या अधिक नहीं होता। सेब और संतरों के विभिन्न संयोगों (A, B, C, D) से मिलने वाला सन्तुष्टि -स्तर समान रहता है।

  1. तटस्थता वक्र किसे कहते हैं(Indifference Curve)

तटस्थता वक्र वह, जो दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को दर्शाती है जिनसे मिलने वाली कुल सन्तुष्टि उपभोक्ता के लिए समान रहती है,तटस्थता वक्र (IC) कहलाता है। तालिका 2 का रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण तटस्थता वक्र (IC) कहलाएगा।

तालिका 2 का रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण :-

IC एक तटस्थता वक्र है । इस वक्र पर प्रत्येक बिंदु दो वस्तुओं के ऐसे संयोग प्रदान कर रहा है जिनसे उपभोक्ता को संतुष्टि का समान स्तर प्राप्त होता है। अतएव बिंदु A पर उपभोक्ता की संतुष्टि का स्तर वही है जो बिंदु B, C या D पर है। 
IC वक्र का प्रत्येक बिंदु (जैसे A, B, C …) सेबों तथा संतरों के समान संयोग को प्रकट करता है। चूँकि प्रत्येक संयोग उपभोक्ता को संतुष्टि का समान स्तर प्रदान करता है, इसलिए इस वक्र को सम संतुष्टि वक्र भी कहा जाता है । और चूंकि उपभोक्ता किसी एक संयोग के प्रति अपनी प्राथमिकता को प्रकट नहीं कर सकता वह सभी संयोगों के प्रति तटस्थ व उदासीन होता है। इसलिए इसे तटस्थता वक्र व उदासीनता वक्र भी कहा जाता है।

तटस्थता मानचित्र (Indifference Map) 

तटस्थता मानचित्र तटस्थता वक्र के एक समूह को व्यक्त करता है जैसा कि चित्र  में दिखाया गया है। एक तटस्थता वक्र जो दूसरे तटस्थता वक्र के दायीं ओर एवं ऊपर है उपभोक्ता की संतुष्टि के उच्च स्तर को प्रकट करता है । अतएव IC3 वक्र, IC2, वक्र की तुलना में संतुष्टि के ऊँचे स्तर को प्रकट करता है। इसी प्रकार IC2, वक्र IC1, वक्र की तुलना में अधिक संतुष्टि प्रकट करता है। ऊँचा तटस्थता वक्र उपभोक्ता के ऊँचे आय स्तर के अनुरूप होता है।

 

यह उपभोक्ता के ऊँचे आय स्तर के अनुरूप है। ऊँचा तटस्थता वक्र संतुष्टि के ऊँचे स्तर को बतलाता

1.तटस्थता वक्र की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करे
 1.(Principal Properties of Indifference Curve) 

( 1 ) तटस्थता वक्र ( अनधिमान वक्र) ऋणात्मक ढाल वाली होती है अथवा उनका ढलान नीचे की ओर होता है

(एक तटस्थता वक्र का ढलान बाएँ से दाएँ नीचे की ओर होता है। यह प्रकट करती है कि यदि एक वस्तु अधिक ली जाती है तो दूसरी कम, इसलिए कुल संतुष्टि (IC के किसी बिंदु पर ) समान रहती है।

तटस्थता वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होती है (Indifference curves are convex to the point of origin): एक तटस्थता वक्र सामान्यता मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होती है। इसका कारण सीमांत प्रतिस्थापन दर क्ला घटना है।

(2) तटस्थता वक्र कभी भी एक दूसरे को छूती या काटती नहीं हैं

प्रत्येक तटस्थता वक्र संतुष्टि के विभिन्न स्तरों को प्रकट करती है। इसलिए इनका एक दूसरे को काटना संभव नहीं होता । यदि दो तटस्थता वक्र एक बिंदु पर कट करते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि दोनों तटस्थता वक्र एक ही बिंदु पर समान संतुष्टि के स्तर को प्रकट करते हैं जो कि संभव नहीं है जैसा कि रेखाचित्र में A बिंदु पर दिखाया गया है

3 ऊँची तटस्थता वक्र संतुष्टि के ऊँचे स्तर को बतलाती है:-

तटस्थता मानचित्र में एक ऊँची तटस्थता वक्र, निचली तटस्थता वक्र पर संयोगों की तुलना में, उन संयोगों को प्रकट करती है जिससे संतुष्टि का उच्च स्तर प्राप्त होता है।

(4)तटस्थता वक्र न तो X- अक्ष और न ही Y – अक्ष को छूती है

यह अकसर मान लिया जाता है कि एक उपभोक्ता दो वस्तुओं की विभिन्न मात्राओं के एक संयोग को खरीदता है।यदि तटस्थता वक्र किसी अक्ष X या Y को छूता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह एक वस्तु को प्रकट करता है जबकि तटस्थता वक्र दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगो को प्रकट करता है इसलिए एक तटस्थता वक्र न तो X- अक्ष को और न ही Y-अक्ष को छूती है।

(5) तटस्थता वक्रों को एक दूसरे के समानांतर होने की आवश्यकता नहीं है:

तटस्थता को एक दूसरे के समानांतर होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग-अलग तटस्थता के लिए प्रतिस्थापन के सीमांत दर (MRS) अलग-अलग हो सकता है। यदि MRS भिन्न होता है, तो तटस्थता का ढलान भी भिन्न होता है

उपरोक्त उपकरणों(तटस्थता वक्रों  तथा बजट रेखा) का अनुप्रयोग दवारा उपभोक्ता संतुलन (Application of the Above Tools: Consumes’s Equilibrium) 

उपरोक्त उपकरणों का अनुप्रयोग अर्थात तटस्थता वक्र तथा बजट रेखा के द्वारा एक उपभोक्ता का संतुलन कैसे निर्धारित होता है इसके अनुसार जहाँ पर उपभोक्ता की बजट लाइन को उसका तटस्थता वक्र जी बिंदु पर टच करता है वहां पर भुगतान का संतुलन निर्धारित होता है

जैसा कि पहले बताया जा चुका है उपभोक्ता का संतुलन उस परिस्थिति को कहा जाता है जिसमें वह अपनी निर्धारित आय को विभिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार खर्च करता है कि उसका कुल तुष्टि स्तर अधिकतम हो।

हम एक ऐसी स्थिति ले रहे हैं जिसमें उपभोक्ता दो वस्तुओं पर अपनी निर्धारित आय को खर्च करता है – वस्तु- X एवं वस्तु – Y | उपभोक्ता का IC और बजट रेखा (कीमत रेखा) के  द्वारा हम उपभोक्ता की संतुलन स्थिति इस प्रकार दर्शा सकते हैं जैसे कि चित्र  में दर्शाया गया है।

उपरोक्त चित्र में बजट रेखा AB को IC2 बिन्दु P पर स्पर्श करता है इसलिए बिन्दु P उपभोक्ता के संतुलन को दर्शाता है।

IC1 बजट रेखा-AB को दो बार कट करती है न की स्पर्श इसलिए IC1 संतुलन को नहीं दर्शाता,IC3 उपभोक्ता की पहुँच से बाहर है

उपयोगिता विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता के संतुलन का निर्धारण कैसे होता है।

 

उपयोगिता की धारणा का (Meaning of the Concept of Utility) 

अर्थशास्त्र में ‘‘किसी पदार्थ की वह शक्ति जिसके द्वारा आवश्यकता की संतुष्टि होती है, उपयोगिता कहलाती है।” (Utility is the want satisfying power of a good.)

पानी की वह शक्ति जिसके द्वारा आपकी प्यास संतुष्ट हो सकती है,उपयोगिता कहलायेगी।

उपभोग के आधार पर उपयोगिता की दो धारणाएँ हो सकती हैं:-

(अ) कुल उपयोगिता (Total Utility):-

किसी वस्तु की विभिन्न मात्राओं के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता की इकाइयों के जोड़ कुल को उपयोगिता कहा जाता है।

कुल उपयोगिता किसी वस्तु की मात्रा के उपभोग पर निर्भर करती है। अर्थात्

TUx = f (Qx)

कुल उपयोगिता (TU), वस्तु की मात्रा (Qx) का फलन (f) है।

(ब )सीमांत उपयोगिता (Marginal Utility):

किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है उसे सीमांत उपयोगिता कहते हैं। सीमांत उपयोगिता को निम्नलिखित समीकरण  से मापा जा सकता है:

MUnth =TUn –TUn-1

अथवा

MU = ΔTU/ΔQ

nth = nth इकाई की सीमांत उपयोगिता, TU = n इकाइयों की कुल उपयोगिता, TU-1 = n-1 इकाइयों की कुल उपयोगिता, ΔTU = कुल उपयोगिता में परिवर्तन, ΔQ = वस्तु की मात्रा में परिवर्तन

सीमांत उपयोगिता हो सकती है:-

(i) धनात्मक (ii) शून्य तथा (iii) ऋणात्मक

(i) धनात्मक सीमांत उपयोगिता (Positive Marginal Utility):

किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग करने से यदि कुल उपयोगिता बढ़ती जाती है तो इन इकाइयों की सीमांत उपयोगिता धनात्मक कहलाएगी।

(ii) शून्य सीमांत उपयोगिता (Zero Marginal Utility):

यदि किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने से कुल उपयोगिता में कोई परिवर्तन नहीं आता तो वस्तु की इस इकाई की सीमांत उपयोगिता शून्य होगी (iii) ऋणात्मक सीमांत उपयोगिता (Negative Marginal Utility):

किसी वस्तु की अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने से यदि कुल उपयोगिता घट जाती है तो इस इकाई की सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक कहलाएगी। उपयोगिता

उपयोगिता विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता का  संतुलन:

 (Utility Analysis and Consumer’s Equilibrium-One Commodity Case) 

(i)एक वस्तु की स्थिति में उपभोक्ता का  संतुलन

पहले ये जानना जरूरी है की एक उपभोक्ता किसी वस्तु की कितनी मात्रा खरीदता है, ताकि अपनी संतुष्टि को वह अधिकतम कर सके और संतुलन बिंदु को प्राप्त कर सके ।

उपभोक्ता द्वारा किसी भी वस्तु का खरीदना तीन तत्वों पर निर्भर करता है:

(i) वस्तु की कीमत

(ii) वस्तु की सीमांत  तथा कुल  उपयोगिता

(iii) मुद्रा की सीमांत उपयोगिता ।

मुद्रा की सीमांत उपयोगिता क्या है?(What is Marginal Utility of Money) 

मान लीजिए यदि एक रुपया 10 ग्राम चीनी, 20 ग्राम चावल और 30 ग्राम नमक    (जो वस्तुओं की एक मानक टोकरी है) खरीद सकता है, और यदि इन वस्तुओं से कुल उपयोगिता ( मान लीजिए) 50 यूटिल्स है, तब मुद्रा की सीमांत उपयोगिता 50 मानी जाएगी। अर्थात् मुद्रा की अपनी कोई उपयोगिता नहीं होती

मुद्रा की सीमांत उपयोगिता से अभिप्राय उपभोक्ता के लिए एक रुपये के बराबर के मूल्य’ (Worth of a rupee) से है।

मान लो आपके लिए मुद्रा की सीमांत उपयोगिता = 4 यूटिल्स ( एक रुपये के बदले में उपलब्ध वस्तु से आपको मिलने वाली संतुष्टि के संदर्भ में) ।

मान लो X वस्तु को आप खरीदने के लिए इच्छुक हैं।

मान लो Px (X-वस्तु की कीमत) = ₹4 |

X-वस्तु की सीमांत उपयोगिता अनुसूची :-

Quantity of Good-X MUx
1 20
2 18
3 16
4 10
5 0
6 -5

 

कोई उपभोक्ता X-वस्तु की कितनी इकाइयाँ खरीदेगा:-

* क्या आप X -वस्तु की पहली इकाई खरीदेंगे ?

हाँ, क्योंकि

आपके लिए एक रुपये का मूल्य = 4 यूटिल्स (मुद्रा की सीमांत उपयोगिता)

पहली इकाई की सीमांत उपयोगिता (MUx) = 20 यूटिल्स

X-वस्तु की कीमत (Px) = ₹4

Px= MUx/Mum

Px=20/4=5

 

जिसका मान ₹5 के बराबर है आपके द्वारा किया जाने वाला भुगतान (₹4) आपकी प्राप्ति (₹5) से कम है। अतः

आप वस्तु – X की पहली इकाई अवश्य खरीदेंगे।

* क्या आप X -वस्तु की दूसरी इकाई खरीदेंगे ?

हाँ, क्योंकि

आपके लिए एक रुपये का मूल्य = 4 यूटिल्स

दूसरी इकाई की सीमांत उपयोगिता (MUx) = 18 यूटिल्स = जिसका मान ₹ 4.5 के बराबर है 18/4=4.5

X-वस्तु की कीमत (Px) = ₹ 4

आपके द्वारा किया जाने वाला भुगतान (₹4) आपकी प्राप्ति (₹ 4.5) से कम है। अतः आप वस्तु – X की दूसरी इकाई भी खरीदेंगे।

आप वस्तु-X की खरीद उस इकाई पर रोक देंगे, जहाँ आपके द्वारा किया गया भुगतान (= वस्तु – X की कीमत ) = सीमांत उपयोगिता के मुद्रा के बराबर मूल्य अर्थात्

Px= MUx/Mum

अर्थात् तीसरी इकाई 16/4=4

उपभोक्ता अपनी संतुलन की अवस्था तब प्राप्त कर लेता है जब

Px= MUx/MUm

अर्थात् जब वस्तु-X की कीमत, उससे (वस्तु-X) मिलने वाली सीमांत उपयोगिता तथा मुद्रा की सीमांत उपयोगिता के अनुपात के बराबर हो

 

(ii) दो वस्तुओ (या अनेक वस्तुओं) की स्थिति में उपभोक्ता का  संतुलन:–

वस्तु-X, की स्थिति में उपभोक्ता संतुलन की स्थिति जब:-

                 MUx                                     MUx

MUm =  ———            or     Px =     ———–

                   Px                                        MUm

 वस्तु-Y, की स्थिति में उपभोक्ता संतुलन की स्थिति तब प्राप्त करता है जब

                 MUy                                      MUy

MUm =  ———            or     Py =     ———–

                   Py                                        MUm

 

दो वस्तुओ (या अनेक वस्तुओं) की स्थिति में:-

दो वस्तुओं के सेट के लिए उपभोक्ता संतुलन अवस्था तब प्राप्त करेगा जब उनकी सीमांत उपयोगिताओं का अनुपात(MUx/MUy) कीमतों के अनुपात Px/Py   के बराबर होगा

                     MUx                       MUy

MUm =      ———      =        ———–

                       Px                         Py

 OR

Px            MUx

——  =  ———

Py               MUy 

इस समीकरण के संदर्भ में निहित तर्क यह है कि उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि के बिंदु पर तब पहुँचता है (या संतुलन अवस्था वह तब प्राप्त  करता है) जब एक रुपये के बराबर मूल्य की संतुष्टि MUx/Px,  MUy/Py,  MUz/Pz, उन सभी वस्तुओं के लिए समान है जिन पर अपनी निश्चित आय वह खर्च करना चाहता है। और वस्तु से इस रुपये के बराबर मूल्य की संतुष्टि (MUx/Px) उस मुद्रा की सीमांत उपयोगिता  (MUm) के बराबर है जो उपभोक्ता रुपये के बराबर संतुष्टि प्राप्त करने की अपेक्षा करता है।

  • रेखाचित्रीय उदाहरण (Diagrammatic Illustration) 
  •    
  • बिंदु R पर MUx = MUy (= 25 यूटिल्स) । उपभोक्ता वस्तु – X की 8 इकाइयाँ और वस्तु – Y की 12 इकाइयाँ खरीद रहा है । वस्तु -X की जब वह 8वीं इकाई खरीदता है, तब उसका MUx = 25 यूटिल्स है; वस्तु-Y की जब वह 12वीं इकाई खरीदता है, तब उसका MUy = 25 यूटिल्स है।उपभोक्ता द्वारा एक रुपये के बराबर आपेक्षित संतुष्टि MUM यूटिल्स है; यह स्थिर या समान (Constant) है जैसा कि पड़ी सरल रेखा (Horizontal Straight Line) द्वारा प्रकट होता है । अतएव, संतुलन बिंदु R पर प्राप्त हो रहा है जहाँ MUx = MUy = MUM | चूँकि प्रति इकाई Px = MUm | चूँकि प्रति इकाई Px = Py = ₹1 (मान्यता) है, उपभोक्ता से, इस विशेष स्थिति में, यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह X और Y दोनों वस्तुओं पर ₹20 खर्च करेगा। संतुलन की अवस्था में, वह वस्तु-X की 8 इकाइयाँ और वस्तु – Y की 12 इकाइयाँ खरीद रहा है। 

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