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अध्याय-4  माँग का सिद्धांत 

आम बोलचाल की भाषा  माँग में का क्या अर्थ होता है

आम बोल-चाल की भाषा में इच्छा,आवश्यकता तथा माँग शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है।

मान लीजिए, आपकी रंगीन टी०वी० लेने की इच्छा है परंतु आपके पास पर्याप्त धन नहीं है तो यह इच्छा आर्थिक दृष्टि से केवल इच्छा (Desire) ही है, माँग (Demand) नहीं है।

यदि पर्याप्त धन होते हुए भी आप उस धन को टी०वी० खरीदने पर खर्च करना नहीं चाहते तो यह इच्छा केवल आवश्यकता (Want) ही कहलाएगी, माँग (Demand) नहीं।

यह इच्छा उसी स्थिति में माँग (Demand) का रूप धारण करेगी जिस स्थिति में आप रंगीन टी० वी० उस समय और एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए तैयार हैं।

एक वस्तु की माँग के तीन तत्त्व होते हैं: (1) वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा, (2) उस इच्छा को पूरा करने के लिए धन, अर्थात योग्यता तथा (3) धन खर्च करने के लिए तत्परता । 

 

 किसी वस्तु की माँग तथा माँगी गई मात्रा अंतर स्पष्ट करे:-

 वस्तु की माँग  (Demand)

माँग किसी पदार्थ या वस्तु की वे मात्राएँ है जो अन्य तत्त्वों के समान रहने पर एक उपभोक्ता समय की एक निश्चित अवधि में विभिन्न कीमतों पर खरीदने के लिए इच्छुक है तथा योग्य है।

माँगी गई मात्रा( Quantity Demanded)

अन्य बातें समान रहने पर, किसी वस्तु की एक निश्चित कीमत पर एक उपभोक्ता उसकी जितनी मात्रा खरीदने को इच्छुक तथा योग्य होता है उसे माँगी गई मात्रा कहा जाता है ।

माँग की परिभाषा 

फर्ग्यूसन के शब्दों में, “माँग किसी वस्तु की वे मात्राएं हैं जिन्हें एक उपभोक्ता अन्य बातें समान रहने पर प्रत्येक संभव कीमत पर एक निश्चित समय में खरीदने के लिए इच्छुक तथा योग्य है

 

 माँग अनुसूची किसे कहते है  (Demand Schedule) 

माँग अनुसूची वह तालिका है जो अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों तथा उन पर खरीदी गई मात्रा के संबंध को प्रकट करती है।

सैम्युअलसन के अनुसार, “वह तालिका जिसमें कीमत तथा खरीदी गई मात्रा के संबंध को प्रकट किया गया है, माँग अनुसूची कहलाती

माँग अनुसूची दो प्रकार की होती है :

(1) व्यक्तिगत माँग अनुसूची (Individual Demand Schedule)

(2) बाजार माँग अनुसूची (Market Demand Schedule)।

  1. व्यक्तिगत माँग अनुसूची

(Individual Demand Schedule

अन्य बातें समान रहने पर  एक व्यक्ति द्वारा एक निश्चित समय में वस्तु की विभिन्न कीमतों पर वस्तु की माँगी गई मात्राओं के संबंधों को प्रकट करने वाली  अनुसूची को व्यक्तिगत माँग अनुसूची कहते हैं

तालिका – व्यक्तिगत माँग अनुसूची

Price of Pen Quantity of Pen
1 5
2 4
3 3
4 2
5 1

 

2.बाजार माँग अनुसूची (Market Demand Schedule) 

अन्य बातें समान रहने पर बाजार में सभी उपभोक्ता द्वारा एक निश्चित समय में वस्तु की विभिन्न कीमतों पर कुल माँग को प्रकट करने वाली  अनुसूची को बाजार माँग अनुसूची कहते हैं

प्रो लिभाफस्की के शब्दों में, ‘बाजार माँग अनुसूची की परिभाषा किसी वस्तु की उन मात्राओं के रूप में दी जाती है जो उस वस्तु के सभी उपभोक्ता किसी निश्चित समय पर संभव कीमतों पर खरीदेंगे

 

तालिकाबाजार माँग अनुसूची

Price of Pen Demand of A Demand of B Market Demand(A+B)
1 5 6 11
2 4 5 9
3 3 4 7
4 2 3 5
5 1 2 3

बाजार माँग अनुसूची भी माँग के नियम के अनुसार यह प्रकट करती है कि किसी वस्तु (जैसे-Pen) की कीमत बढ़ने पर उसकी बाजार माँग कम होती है ।

 माँग वक्र को परिभाषित करे  (Demand Curve) 

माँग वक्र वह वक्र है जो अन्य बातें समान रहने पर विभिन्न कीमतों तथा माँगी गई मात्राओं के बीच ऋणात्मक के संबंध को प्रकट करता है

प्रो लेफ्टविच के अनुसार, “माँग वक्र वस्तु की उन अधिकतम मात्राओं को प्रकट करती है जिन्हें उपभोक्ता समय की एक अवधि में विभिन्न कीमतों पर खरीदेंगे।’

माँग वक्र भी दो प्रकार का होता है

  1. व्यक्तिगत माँग वक्र (Individual Demand Curve

व्यक्तिगत माँग वक्र वह वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक उपभोक्ता द्वारा वस्तु की माँगी गई मात्राओं को प्रकट करती है ।

इस माँग वक्र का ढलान ऊपर बाईं ओर से नीचे दाईं ओर को है, जो यह दर्शाता है कि कीमत अधिक होने पर माँग कम होती है तथा कीमत कम होने पर माँग अधिक होती है। माँग वक्र के इस ढलान को ऋणात्मक ढलान (Negative Slope of Demand Curve) कहा जाता है।

  1. बाजार माँग वक्र (Market Demand Curve

बाजार माँग वक्र वह वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाजार के सभी उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई मात्राओं के जोड़ को प्रकट करता है। बाजार माँग वक्र व्यक्तिगत माँग वक्रों का समस्त जोड़ है

बाजार माँग वक्र व्यक्तिगत माँग वक्रों का जोड़ है, इसका ढलान भी ऋणात्मक है। इससे वस्तु की कीमत तथा माँगी गई मात्रा में विपरीत संबंध प्रकट होता है।

 माँग फलन या माँग के निर्धारक तत्वों की व्याख्या कीजिए 

(Demand Function or Determinants of Demand

माँग फलन किसी वस्तु की माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्वों में संबंध प्रकट करता है

इससे प्रकट होता है कि किसी वस्तु की माँग उस वस्तु की कीमत या उपभोक्ता की आय या अन्य तत्वों से किस प्रकार संबंधित है।

माँग फलन भी दो प्रकार का होता है

(1) व्यक्तिगत माँग फलन (Individual Demand Function)

 (2) बाजार माँग फलन (Market Demand Function )

(1) व्यक्तिगत माँग फलन 

(Individual Demand Function) 

व्यक्तिगत माँग फलन बाजार में किसी एक उपभोक्ता की किसी वस्तु के लिए माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्त्वों के संबंध को प्रकट करता है।

माँग फलन को निम्नलिखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:

Dx = f (Px, Pr, Y, T, E) 

इसे पढ़ा जाएगा: Dx – X -वस्तु की माँग; Px -वस्तु की अपनी कीमत ; Pr संबंधित वस्तुओं की कीमत ; Y-उपभोक्ता की आय ; T-रुचि तथा प्राथमिकताएँ; E- संभावनाओं का फलन (Function, f) है।

1.वस्तु की अपनी कीमत (Own Price of Commodity):

सामान्यत: किसी भी वस्तु की माँग की मात्रा उसी वस्तु की अपनी कीमत पर निर्भर होती है। ‘अन्य बातें समान रहने पर’ वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन होने से माँग में भी परिवर्तन होगा। साधारणतः वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने पर वस्तु की माँग घटती है तथा इसके विपरीत वस्तु की अपनी कीमत घटने पर वस्तु की माँग बढ़ती है। किसी वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी माँग के संबंध को माँग का नियम कहा जाता है।

(2) संबंधित वस्तुओं की कीमत (Price of Related Goods ):

एक वस्तु की माँग पर संबंधित वस्तुओं की कीमत में होने वाले परिवर्तन का भी प्रभाव पड़ता है।

संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की हो सकती हैं:

संबंधित वस्तुओं तथा असंबंधित वस्तुओं के बीच का अंतर हम किस प्रकार व्यक्त करते हैं?

संबंधित वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनकी माँग में परिवर्तन दूसरी संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप होता है।

उदाहरण के लिए, कॉफी की कीमत में वृद्धि के फलस्वरूप, चाय की माँग में वृद्धि हो सकती है। इस प्रकार कॉफी तथा चाय संबंधित वस्तुएँ हैं।

असंबंधित वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनमें एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन का दूसरी वस्तु की माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उदाहरण के लिए, चीनी की कीमत में होने वाले परिवर्तन से जूतों की माँग प्रभावित नहीं होती।

(ii)प्रतिस्थापन वस्तुएँ ( Substitute Goods):

प्रतिस्थापन वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है; जैसे- चाय तथा कॉफी, वालपेन तथा स्याही वाला पेन। इन वस्तुओं में से एक वस्तु की कीमत बढ़ने पर दूसरी की माँग वढ़ जाती है तथा कीमत कम होने पर दूसरी वस्तु की माँग कम हो जाती है। मान लीजिए यदि कॉफी की कीमत बढ़ जाती है तो लोग इसके स्थान पर चाय का अधिक प्रयोग करेंगे तथा उसकी माँग बढ़ जायेगी। इसके विपरीत यदि कॉफी की कीमत कम हो जाती है तो लोग चाय के स्थान पर भी कॉफी का ही प्रयोग करने लगेंगे तथा कॉफी की माँग बढ़ जाएगी।

(ii) पूरक वस्तुएँ (Complementary Goods ):

पूरक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो मिलकर किसी वस्तु की माँग को पूरा करती हैं। अन्य शब्दों में, पूरक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका एक वस्तु के बिना दूसरी वस्तु का प्रयोग नहीं किया जा सकता। पूरक वस्तुओं के उदाहरण हैं-पेन और स्याही, कार तथा पेट्रोल/डीजल । इनका संबंध इस प्रकार का होता है कि एक की कीमत में वृद्धि होने से दूसरे की माँग कम हो जाती है तथा एक की कीमत में कमी होने से दूसरे की माँग में वृद्धि हो जाती है। उदाहरण के लिए, यदि पेन की कीमत बढ़ती है तो पेन की माँग कम हो जायेगी, इसके फलस्वरूप स्याही की माँग भी कम हो जाएगी। इसके विपरीत यदि पेन की कीमत कम होती है तो पेन की माँग बढ़ जायेगी, इसके फलस्वरूप स्याही की माँग भी बढ़ जायेगी।

(3) उपभोक्ता की आय (Income of the Consumer):

उपभोक्ता की आय में होने वाले परिवर्तन भी विभिन्न वस्तुओं की माँग को प्रभावित करते हैं । उपभोक्ता की आय बढ़ने पर सामान्य वस्तुओं (Normal Goods) की माँग बढ़ती है एवं इसके विपरीत भी। इसके विपरीत घटिया या निम्नकोटि की वस्तुओं (Inferior Goods); जैसे-मोटे अनाज के संबंध में उपभोक्ता की आय बढ़ने पर माँग कम हो जाती है एवं इसके विपरीत भी ।

(4) रुचि तथा प्राथमिकताएँ (Tastes and Preferences):

किसी भी वस्तु या सेवा की माँग व्यक्ति की रुचियों तथा प्राथमिकताओं पर निर्भर करती है। इन शब्दों का प्रयोग काफी विस्तृत अर्थों में किया जाता है। इनके अंतर्गत फैशन, आदत, रीति-रिवाज आदि को शामिल किया जाता है। उपभोक्ताओं की रुचियों एवं प्राथमिकताओं पर विज्ञापन, फैशन में परिवर्तन, मौसम, नए आविष्कारों आदि का प्रभाव पड़ता है। अन्य बातें समान रहने पर, उपभोक्ताओं की जिन वस्तुओं के लिए रुचि व प्राथमिकता बढ़ जाती है उनकी माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत यदि उपभोक्ता की किसी वस्तु के लिए रुचि या प्राथमिकता नहीं होती तो उसकी माँग कम होती है।

(5) संभावनाएँ (Expectations ):

यदि उपभोक्ता को यह संभावना हो कि भविष्य में कीमतें बढ़ जाएँगी तो वह वर्तमान में वस्तु की प्रचलित कीमत पर उसकी अधिक मात्रा खरीदेगा। इसी प्रकार यदि उपभोक्ता को यह आशा है कि भविष्य में वस्तु की कीमत घट जाएगी तो वह वर्तमान में वस्तु की कम माँग करेगा या माँग को कम कर देगा।

बाजार माँग फलन(Market Demand Function ) 

बाजार माँग फलन  किसी वस्तु की बाजार माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्त्वों के संबंध को प्रकट करता है।यहाँ हम बाजार माँग को प्रभावित करने वाले बाकी तत्वों (व्यक्तिगत माँग फलन के अतिरिक्त) का वर्णन करेंगे।

Mkt. Dx=f (Px, Pr, Y, T, E, N, G, S, Yd) 

Mkt. Dx-वस्तु की बाजार माँग; Px-वस्तु की अपनी कीमत ; Pr- संबंधित वस्तुओं की कीमत ; Yd- उपभोक्ता की आय; T- रुचि तथा प्राथमिकताएँ; E-संभावनाएँ; N:-जनसंख्या; G-सरकारी नीति; S-जलवायु तथा मौसम; Yd-आय के वितरण, फलन (Function, f) है।

 

1.जनसंख्या ( Population) :

 जनसंख्या का भी माँग पर प्रभाव पड़ता है – जनसंख्या के बढ़ने से बाजार माँग बढ़ जाती है तथा कम होने से माँग कम हो जाती है।यदि जनसंख्या की रचना में परिवर्तन आ जाता है; जैसे- स्त्रियों की जनसंख्या बढ़ जाए तो उन वस्तुओं की माँग भी बढ़ जाती है जिन्हें स्त्रियाँ खरीदती हैं

2.सरकार की नीति ( Government Policy):

सरकार की नीति(Tax & Subsidy) का भी माँग पर प्रभाव पड़ता है। जब सरकार किसी वस्तु की माँग में कमी करना चाहती है तो उस पर कर (Tax) लगा देती है। कर लगाने से वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तथा माँग कम हो जाती है।

यदि सरकार माँग को बढ़ाना चाहती है तो उस वस्तु की कीमत कम करने के लिए कई प्रकार की वित्तीय सहायता ( Subsidies) देती है। जिससे वस्तुए सस्ती हो जाती है  फलस्वरूप वस्तु की माँग बढ़ जाती है।

(3) जलवायु तथा मौसम (Climate and Season):

माँग पर जलवायु तथा मौसम का भी प्रभाव पड़ता है। ठंडी जलवायु वाले स्थानों पर ऊनी कपड़े की माँग अधिक होगी। गर्मी के दिनों में बर्फ की माँग अधिक हो जाती है किंतु- सर्दी में बर्फ की माँग कम हो जाती है।

(4) आय का वितरण (Distribution of Income)

यदि आय का वितरण समान रूप से होता है तो माँग अधिक होगी।

यदि आय का वितरण असमान है तो माँग कम होगी

क्योंकि कुछ लोगों की आय बहुत अधिक होगी तथा अधिकतर लोगों की आय कम होगी इसलिए बाजार माँग भी कम होगी।

वस्तुओं की माँग क्यों की जाती है ?

हम वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग इसलिए करते हैं क्योंकि उनमें हमारी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की क्षमता होती है। संतुष्ट करने की यह क्षमता मानवीय आवश्यकताओं को उपयोगिता कहलाती है। अतः हम कह सकते हैं कि वस्तुओं की माँग इसलिए होती है क्योंकि उनकी उपयोगिता है।

वास्तव में वस्तु का उत्पादन उपयोगिता के सृजन को दर्शाता है तथा वस्तु की माँग उपयोगिता के प्रयोग को दर्शाती है।

 माँग का नियम की व्याख्या कीजिए (Law of Demand) 

माँग का नियम यह बताता है कि, “अन्य बातें (उपभोक्ता की आय, संबंधित वस्तुओं की कीमत, उपभोक्ता की रुचि) समान रहने पर, किसी वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाती है तथा अपनी कीमत कम होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है।”

अन्य शब्दों में, माँग का नियम वह नियम है जो यह बताता है कि यदि माँग के अन्य निर्धारक तत्त्व अपरिवर्तित रहें तो किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा तथा उसकी अपनी कीमत में विपरीत संबंध (Inverse Relation) होता है।

परिभाषा 

मार्शल के अनुसार, “माँग का नियम यह बताता है कि कीमत में कमी होने के कारण वस्तु की माँग बढ़ जाती है तथा कीमत में वृद्धि होने के कारण वस्तु की माँग कम हो जाती है । ”

 व्याख्या (Explanation) 

माँग के नियम की व्याख्या माँग अनुसूची की सहायता से की जा सकती है:

              तालिकामाँग अनुसूची 

Price (X) Quantity(X)
3 20
2 30
1 50

 

माँग तालिका से ज्ञात होता है कि जब X-वस्तु की कीमत ₹3 से कम होकर ₹ 2 हो जाती है तो माँग 20 इकाई से बढ़कर 30 इकाई हो जाती है।जब X-वस्तु की कीमत ₹2 से कम होकर ₹ 1 हो जाती है तो माँग 30 इकाई से बढ़कर 50 इकाई हो जाती है।

माँग के नियम की व्याख्या माँग वक्र द्वारा भी की जा सकती है जो चित्र में दिखाया गया है।

Demand curve  का ढलान नीचे की ओर है। यह कीमत और माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत संबंध को प्रकट करता है।

चित्र में माँग वक्र DD से ज्ञात होता है कि जब X -वस्तु की कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है तो उसकी माँग OL से बढ़कर OL1 हो जाती है । वास्तव में माँग वक्र का ऊपर से नीचे की ओर ढलान माँग के नियम को प्रकट करता है ।

 माँग के नियम की मान्यताएँ (Assumptions of the Law of Demand) 

माँग के नियम की मान्यताओं से अभिप्राय कीमत के अतिरिक्त माँग को प्रभावित करने वाले अन्य तत्वों से है। इन सभी तत्वों को स्थिर मान लिया जाता है।

माँग के नियम की मुख्य मान्यताएँ निम्नलिखित हैं:

(1) उपभोक्ताओं की आय में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए ।

(2) उपभोक्ताओं की रुचियों तथा प्राथमिकताओं में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

(3) संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन नहीं होना चाहिए ।

(4) वस्तु की कीमत के भविष्य में और अधिक परिवर्तन की संभावना नहीं होनी चाहिए ।

यह नियम केवल साधारण वस्तुओं (Normal Goods) पर लागू होता है

गिफ्फन वस्तुओं (Giffen Goods) पर लागू नहीं होता।

 

जब कीमत गिरती है तो किसी एक वस्तु को अधिक क्यों खरीदा जाता है ? 

(Why More of a Good is Purchased when its Price Falls?) 

                                   अथवा 

माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक क्यों होता है ? 

(Why does Demand Curve Slope Downwards ?

माँग वक्र के ऋणात्मक ढलान से प्रकट होता है कि कीमत के कम होने पर अधिक वस्तुएँ खरीदी जाती हैं। इसलिए किसी वस्तु की कीमत तथा माँगी गई मात्रा में विपरीत संबंध होता है।

माँग वक्र के ऋणात्मक ढलान या ऊपर से नीचे की ओर झुके होने के मुख्य कारण हैं:-

(1) घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम (Law of Diminishing Marginal Utility):

इस नियम के अनुसार जैसे-जैसे किसी वस्तु की अधिक इकाइयाँ खरीदी जाती हैं, उनकी सीमांत उपयोगिता कम होती जाती है। उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि तब प्राप्त होती है जब किसी वस्तु की उपयोगिता कीमत उसकी सीमांत उपयोगिता के बराबर होती है। प्रत्येक वस्तु की मात्रा अधिक खरीदने से उसकी सीमांत उपयोगिता कम होती जाती है। इसलिए उपभोक्ता उस वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा जब उस वस्तु की उपयोगिता कीमत कम होकर सीमांत उपयोगिता के बराबर हो जाए। इससे स्पष्ट होता है कि कीमत कम होने पर वस्तु की अधिक मात्रा खरीदी जाएगी तथा कीमत बढ़ने पर कम मात्रा खरीदी जाएगी।

(2) आय प्रभाव ( Income Effect):-

एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप खरीददार की वास्तविक आय में परिवर्तन होने के कारण वस्तु की माँगी गई मात्रा में होने वाले परिवर्तन को आय प्रभाव कहा जाता है।

वास्तविक आय वह आय है जो वस्तुओं तथा सेवाओं के रूप में मापी जाती है। कीमत कम होने पर वास्तविक आय बढ़ जाती है। इस बढ़ी हुई वास्तविक आय का प्रयोग वस्तु की अधिक मात्रा खरीदने के लिए किया जा सकता है। अतएव वास्तविक आय बढ़ने के कारण वस्तु की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत कीमत बढ़ने पर वास्तविक आय कम होने के कारण वस्तु की माँग कम हो जाती है।

( 3 ) प्रतिस्थापन प्रभाव ( Substitution Effect ):-

प्रतिस्थापन प्रभाव से अभिप्राय है कि जब एक वस्तु अपनी स्थानापन्न वस्तु की तुलना में सस्ती हो जाती है तो उसका दूसरी वस्तु के लिए प्रतिस्थापन किया जाता है।चाय तथा कॉफी स्थानापन्न वस्तुएँ हैं।

कॉफी की कीमत कम होने पर उसका चाय के स्थान पर प्रतिस्थापन किया जाता है। इसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहा जाता है। इस प्रभाव के कारण उपभोक्ता अपनी संतुष्टि को अधिकतम करने के लिए उस वस्तु की अधिक मात्रा खरीदेंगे जिसकी कीमत अपने प्रतिस्थापन की तुलना में कम हो गई है। उपरोक्त उदाहरण में उपभोक्ता चाय के स्थान पर कॉफी का प्रतिस्थापन करेंगे, इसलिए प्रतिस्थापन प्रभाव के कारण कॉफी की माँग बढ़ जायेगी। इसके विपरीत यदि कॉफी की कीमत बढ़ जाती है तो उपभोक्ता कॉफी के स्थान पर चाय का प्रतिस्थापन करेंगे। इसके फलस्वरूप चाय की माँग बढ़ जायेगी

(4) उपभोक्ता समूह का आकार ( Size of Consumer Group ) :-

जब किसी वस्तु की कीमत कम हो जाती है तब कई दूसरे उपभोक्ता जो पहले उस वस्तु को नहीं खरीद रहे थे, उसे खरीदने लगेंगे। इसके फलस्वरूप वस्तु की माँग बढ़ जाएगी। इसके विपरीत वस्तु की कीमत बढ़ने पर कई उपभोक्ता उसे खरीदना बन्द या कम कर देंगे। इसके फलस्वरूप कीमत बढ़ने पर उस वस्तु की माँग कम हो जाएगी। इस प्रकार कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप उपभोक्ता समूह के आकार या उपभोक्ताओं की संख्या में परिवर्तन होता है। इसका वस्तु की कुल माँग पर प्रभाव पड़ेगा।

( 5 ) विभिन्न उपयोग (Different Uses) :-

कई वस्तुओं के विभिन्न उपयोग होते हैं। चने का उपयोग मनुष्य के खाने तथा घोड़ों के खाने में किया जा सकता है। यदि चने की कीमत अधिक होगी तो उसका प्रयोग अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य अर्थात् मनुष्यों के खाने के लिए ही किया जाएगा। इस प्रकार चने की कुल माँग कम होगी। जबकि चने की

कीमत कम होने पर उसका प्रयोग मनुष्यों तथा घोड़ों दोनों के खाने के लिए किया जाएगा। इस प्रकार चने की कीमत कम होने पर उसकी माँग बढ़ जाएगी।

 माँग के नियम के अपवाद की व्याख्या कीजिए(Exceptions to the Law of Demand) 

माँग के नियम के कुछ अपवाद भी हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जब माँग का नियम फेल हो जाता है तब कीमत तथा माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत संबंध नहीं रहता बल्कि माँग वक्र का ढलान ऊपर की ओर हो सकता है अर्थात कुछ वस्तुओं की कीमत अधिक होने पर उनकी माँग बढ़ जाती है तथा कीमत कम होने पर उनकी माँग कम हो जाती है।

इन वस्तुओं की माँग वक्र DD जैसे कि चित्र  में दिखाई गई है, नीचे से ऊपर की ओर उठ रही है। इसका धनात्मक ढलान (Positive Slope) है।

 

सबसे पहले इस तथ्य का सर राबर्ट गिफ्फन (Sir Robert Giffen) ने विश्लेषण किया था। इसलिए इसे गिफ्फन का विरोधाभास (Giffen’s Paradox) भी कहा जाता है। माँग वक्र के असामान्य होने के मुख्य कारण अथवा माँग के नियम के मुख्य अपवाद अग्रलिखित हैं:

प्रतिष्ठासूचक वस्तु (Articles of Distinction ) :-

इस अपवाद की व्याख्या सबसे पहले वेबलन (Veblan) ने की थी। उनके अनुसार जो वस्तु प्रतिष्ठा की सूचक होती है उसकी माँग तभी अधिक होती है जब उसकी कीमत भी अधिक हो । हीरे-जवाहरात, कीमती कालीन आदि की माँग उसी समय अधिक होगी जब उनकी कीमत अधिक होती है। इसका कारण यह है कि कीमती हीरे-जवाहरातों को समाज में अधिक प्रतिष्ठा का सूचक ) माना जाता है। इसलिए उनकी कीमत अधिक होने पर माँग भी अधिक होती है और कीमत कम होने पर माँग भी कम हो जाती है। इसलिए इन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू नहीं होता ।

(2) अज्ञानता (Ignorance):-

कई बार उपभोक्ता अज्ञानता व भ्रम के कारण किसी वस्तु की कम कीमत पर उसको कम महत्त्वपूर्ण समझते हैं और उसकी कम मात्रा खरीदते हैं । परंतु अपवादों को मान्यताएँ नहीं समझ लेना चाहिए यह महत्वपूर्ण है कि माँग के नियम के अपवादों को नियम की मान्यताएं नहीं समझ लेना चाहिए। अपवाद से अभिप्राय उस असामान्य स्थिति से है जिसमें माँग का नियम लागू नहीं होता बेशक नियम की मान्यताएं पूर्ववत् रहती हों। मान्यताओं को अपवादों में परिवर्तित न करें। कीमत अधिक होने पर वे उस वस्तु को अधिक महत्त्वपूर्ण मानने लगते हैं तथा उसकी अधिक मात्रा खरीदते हैं। इस प्रकार माँग वक्र का ढलान धनात्मक हो जाता है तथा माँग का नियम लागू नहीं होता।

(3) गिफ्फन वस्तुएँ (Giffen Goods ):-

गिफ्फन वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनकी कीमत बढ़ने पर माँग बढ़ती है तथा कीमत कम होने पर माँग कम होती है। अर्थात कीमत प्रभाव धनात्मक (Positive) होता है तथा आय प्रभाव ऋणात्मक (Negative) होता है।

कीमत प्रभाव धनात्मक (Positive)अर्थात जिनकी कीमत बढ़ने पर माँग बढ़ती है

आय प्रभाव ऋणात्मक होता है। अर्थात उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इनकी माँग कम होती है तथा आय कम होने पर इनकी माँग अधिक होती हैं।

यह ध्यान रखना चाहिये कि सभी गिफ्फन वस्तुएँ निम्नकोटि की वस्तुएँ होती हैं परंतु सभी निम्नकोटि की वस्तुएँ गिफ्फन वस्तुएँ नहीं होती ।

निम्नकोटि की वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका कीमत प्रभाव तथा आय प्रभाव दोनो ऋणात्मक ऋणात्मक होता है।

यह ध्यान देने योग्य है कि निम्नकोटि की वस्तुओं तथा गिफ्फन वस्तुओं दोनों का आय प्रभाव ऋणात्मक होता है

परंतु गिफ्फन वस्तुओं की कीमत का प्रभाव धनात्मक होता है जबकि अन्य निम्नकोटि की वस्तुओं का कीमत प्रभाव ऋणात्मक होता है।

गिफ्फन वस्तुओं पर माँग का नियम लागू नहीं होता क्योकी इनका कीमत का प्रभाव धनात्मक होता है

जबकि निम्नकोटि की वस्तुओं पर माँग का नियम लागू होता है। क्योकी इनका कीमत प्रभाव ऋणात्मक होता है।

  माँगी गई मात्रा में परिवर्तन / माँग वक्र पर संचलन :-

 (Movement along a Demand Curve / Change in Quantity Demanded)

किसी वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन होने पर उसकी मात्र में होने वाले  परिवर्तन को माँगी गई मात्रा में परिवर्तन या माँग वक्र पर संचलन कहते है।इसे माँग वक्र के विभिन्न बिंदुओं द्वारा प्रकट किया जाता है।

संचलन दो प्रकार का होता है

माँग के विस्तार Extension of Demand 

अन्य बातें समान रहने पर जब किसी वस्तु की अपनी कीमत में कमी होने के फलस्वरूप उसकी माँग अधिक हो जाती है तो इसे माँग का विस्तार कहा जाता है ।

तालिका द्वारा इसे व्यक्त किया गया है।

कीमत
मांगी गई मात्र
वर्णन
5
1
कीमत में कमी
मांग में विस्तार
1
5

तालिका  द्वारा ज्ञात होता है कि जब  कीमत ₹5 है तो 1 इकाई की  माँग की जाती है। यदि कीमत कम होकर ₹1 हो जाती है तो माँग का विस्तार होकर नई माँग 5 इकाई की   हो जाती है।

रेखाचित्रीय दृष्टिकोण :-

इसका अर्थ है उसी समान माँग वक्र पर बाई से दाई ओर संचलन, जैसे- A से B संचलन

इस चित्र में AB  माँग वक्र है। जब  कीमत ₹5 है तो उसकी माँग 1 है। उपभोक्ता माँग वक्र के A बिंदु पर है। जब  कीमत कम होकर ₹1 हो जाती है तो उसकी माँग का विस्तार होकर नई माँग 5 हो जाती है। उपभोक्ता माँग वक्र के A बिंदु से B बिंदु पर पहुँच जाता है। अतएव माँग वक्र के ऊँचे बिंदु से नीचे बिंदु की ओर सरकना माँग के विस्तार को प्रकट करता है।

माँग का संकुचन:-

माँग में संकुचन से अभिप्राय वस्तु की अपनी कीमत के बढ़ने के कारण इसकी माँगी गई मात्रा का घटना (कमी) है।

तालिका द्वारा इसे व्यक्त किया गया है।

कीमत
मांगी गई मात्र
वर्णन
5
कीमत में वृद्धि 
मांग में संकुचन 
5
1

 

तालिका  से ज्ञात होता है कि जब  कीमत ₹1 है तो 5 इकाई की  माँग की जाती है। यदि कीमत  बढ़कर ₹5 हो जाती है तो  माँग का संकुचन होकर नई माँग 1 इकाई  हो  जाती है ।

माँग के संकुचन को चित्र  द्वारा प्रकट किया जा सकता है।

इस चित्र में DD  माँग वक्र है । जब  कीमत ₹1 है तो उसकी माँग 5 है। उपभोक्ता माँग वक्र के बिंदु B पर है। इसके विपरीत जब कीमत  बढ़कर ₹5 हो जाती है तो उसकी माँग का संकुचन होकर नई माँग 1 इकाई  हो जाती है। उपभोक्ता माँग वक्र के B बिंदु से A बिंदु पर पहुँच जाता है। अतएव एक माँग वक्र के नीचे बिंदु से ऊंचे बिंदु की ओर सरकना माँग के संकुचन को प्रकट करता है।

माँग में परिवर्तन / माँग वक्र का स्थानांतरण / खिसकाव

Change in Demand/Shifting of Demand Curve

माँग वक्र काखिसकाव-वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्वों(आय, फैशन) में परिवर्तन के कारण माँग वक्र, प्रारंभिक माँग वक्र के ऊपर या नीचे, सरक जाती है।

खिसकाव दो प्रकार का होता है

(i)माँग में वृद्धि या माँग वक्र का ऊपर या दाईं ओर खिसकाव

जब किसी वस्तु की माँग में उसकी अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों में परिवर्तन होने के कारण माँग में वृद्धि होता है तो उसे माँग में वृद्धि कहते हैं।

प्रचलित या वर्तमान कीमत पर जब किसी वस्तु की अधिक मात्रा खरीदी जाती है, तो यह माँग में वृद्धि की स्थिति है। इसे तालिका 6 में व्यक्त किया गया है।

Price of X
Quantity of X
10
20
10
30

माँग में वृद्धि से अभिप्राय प्रचलित कीमत पर वस्तु की माँगी गई मात्रा में वृद्धि से है। रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से इसका अर्थ है माँग वक्र में आगे की ओर खिसकाव; जैसे-D1 से D2 तालिका  और चित्र  से प्रकट होता है

कि जब वस्तु की प्रति इकाई कीमत ₹10 है, तब गाँग 20 इकाइयाँ है। कीमत समान या स्थिर रहने पर, उपभोक्ता 30 इकाइयों की माँग कर रहे हैं। हो सकता है कि ऐसा तब संभव हुआ हो जब या तो उनकी आय बढ़ गई हो अथवा वस्तु के अनुकूल उनकी रुचियों में बदलाव आ गया हो अथवा ऐसे अन्य कारण हों। यहाँ ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि माँग में वृद्धि को दाईं ओर माँग वक्र के खिसकाव द्वारा व्यक्त किया जाता है, इसे माँग वक्र का आगे / ऊपर की ओर खिसकाव (Forward Shift in Demand Curve) भी कहा जाता है। चित्र से प्रकट होता है कि माँग वक्र D1 का खिसकाव D2 तब होता है, जब वस्तु की कीमत के ₹ 10 प्रति इकाई रहने पर ही उपभोक्ता इसकी 20 इकाइयाँ खरीदने की बजाय 30 इकाइयाँ खरीदने का निर्णय ले लेते हैं। उपभोक्ता D, पर बिंदु A से खिसक कर D2 पर बिंदु B पर चला जाता है।

माँग में वृद्धि के कारण (Causes of Increase in Demand )

(1) जब उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है।

(ii) जब प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है।

(iii) जब पूरक वस्तु की कीमत में कमी होती है।

(iv) जब फैशन या ऋतु में परिवर्तन के कारण वस्तु के लिए उपभोक्ता की रुचि में वृद्धि होती है।

(v) जब क्रेताओं की संख्या में वृद्धि होती है।

(vi) जब भविष्य में कीमत बढ़ने की संभावना हो ।

(vii) जब भविष्य में उपभोक्ता की आय बढ़ने की संभावना हो ।

(ii) माँग में कमी या माँग वक्र का नीचे या बाईं ओर खिसकाव 

प्रचलित अथवा वर्तमान कीमत (Existing Price) पर जब किसी वस्तु की कम मात्रा खरीदी जाती है तो यह माँग में कमी की स्थिति है। तालिका 7 और चित्र 8 द्वारा इसे व्यक्त किया गया है।

 

माँग में कमी (Decrease in Demand) 

जब किसी वस्तु की माँग में उसकी अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्त्वों में परिवर्तन होने के कारण माँग में कमी होता है तो उसे माँग में कमी कहते हैं।

माँग में कमी से अभिप्राय प्रचलित कीमत पर वस्तु की माँगी गई मात्रा में कमी से है।

तालिका और चित्र  द्वारा इसे व्यक्त किया गया है।

Price of X

Quantity of X

10

30

10

20

 

 

रेखाचित्रीय दृष्टिकोण से, इसका अर्थ है माँग वक्र में पीछे की ओर खिसकाव; जैसे – D1 से D2

चित्र प्रकट करता हैं कि वस्तु की कीमत जब ₹10 है, तो माँग 30 इकाइयाँ है। कीमत के समान या स्थिर रहने पर भी उपभोक्ता केवल 20 इकाइयों के खरीदने का निर्णय लेते हैं। हो सकता है कि ऐसा तब संभव हुआ हो जब या तो उनकी आय कम हो गई हो अथवा वस्तु के प्रति उनकी रुचि घट गई हो या ऐसे ही अन्य कारण हों। माँग में कमी को बाईं ओर माँग वक्र के खिसकाव द्वारा व्यक्त किया जाता है, इसे माँग वक्र का पीछे की ओर खिसकाव (Backward Shift in Demand Curve) भी कहा जाता है। चित्र से यह प्रकट होता है कि माँग वक्र D1  का खिसकाव D2 तब होता है जब वस्तु की कीमत ₹10 प्रति इकाई रहने पर ही उपभोक्ता इसकी 30 इकाइयाँ खरीदने की बजाय केवल 20 इकाइयाँ खरीदने का निर्णय ले लेते हैं। उपभोक्ता D1 पर बिंदु A से खिसक कर D, पर बिंदु B पर चला जाता है।

माँग में कमी के कारण (Causes of Decrease in Demand) 

(i) जब उपभोक्ता की आय में कमी होती है।

(ii) जब प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी होती है।

(iii) जब पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है।

(iv) जब फैशन या जलवायु में परिवर्तन के कारण वस्तु के लिए उपभोक्ता की रुचि में कमी आती है।

क्रेताओं की संख्या में कमी का होना।

(vi) जब निकट भविष्य में कीमत कम होने की संभावना हो ।

(vii) जब निकट भविष्य में उपभोक्ता की आय कम होने की संभावना हो ।

माँग के संकुचन तथा माँग में कमी में अंतर:-

माँग का संकुचन  माँग में कमी
1.यह केवल है। वस्तु  की अपनी कीमत में परिवर्तन होने के कारण होता है । 1.यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य निर्धारक तत्त्वों में परिवर्तन होने के कारण होती है।
2. यह वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होने के कारण होता है। 2. यह उपभोक्ता की आय में कमी, प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमत में कमी, पूरक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि में कमी आदि के कारण होती है।
3. यह एक ही माँग वक्र के नीचे के बिंदु ‘B’ से ऊँचे बिंदु ‘A‘ की ओर संचलन को  प्रकट करता है। 3. यह माँग वक्र D1 के बाईं ओर खिसकाव D2 द्वारा प्रकट होती है। अर्थात् मांग  वर्क बाईं ओर खिसक जाता है

माँग के विस्तार तथा माँग में वृद्धि में अंतर:-

माँग के विस्तार माँग में वृद्धि
1. यह केवल वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण होता है। 1. यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य निर्धारक तत्त्वों / कारकों में परिवर्तन होने के कारण होती है।
2. यह वस्तु की अपनी कीमत में कमी होने के कारण होता है। 2. यह उपभोक्ता की आय में वृद्धि, प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि, पूरक वस्तुओं की कीमत में कमी तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि में वृद्धि आदि के कारण होती है।
3.यह एक माँग वक्र के ऊपर के बिंदु ‘A’ से नीचे के बिंदु ‘B‘ की ओर संचलन द्वारा प्रकट होता है 3. यह माँग वक्र D1 के दाईं ओर खिसकाव D2 द्वारा प्रकट होती है। अर्थात् मांग वर्क दाई  ओर खिसक जाता है
माँग के दृष्टिकोण से वस्तुओं का वर्गीकरण 
(Classification of Goods with Reference to Demand) 

माँग के दृष्टिकोण से वस्तुओं का यह वर्गीकरण निम्नलिखित है:

सामान्य वस्तुएँ (Normal Goods):-

सामान्य वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका आय प्रभाव धनात्मक होता है तथा कीमत प्रभाव ऋणात्मक होता है।

धनात्मक आय प्रभाव से अभिप्राय है कि आय बढ़ने पर इनकी माँग बढती है तथा आय कम होने पर माँग कम होती है ।

सामान्य वस्तुओं के संबंध में  जैसा चित्र से ज्ञात होता है,जब उपभोक्ता की आय OY है तब वस्तु की माँग OQ है। परंतु आय के OY से बढ़कर OY1 हो जाने पर वस्तु की माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। अतः यह उपभोक्ता की आय तथा सामान्य वस्तुओं की माँग में प्रत्यक्ष संबंध को दर्शाता है।

ऋणात्मक कीमत प्रभाव से अभिप्राय है कि कीमत बढ़ने पर इनकी माँग घटती है तथा कीमत कम होने पर माँग बढ़ती है।

सामान्य वस्तुओं के संबंध में  जैसा चित्र से ज्ञात होता है,जब की कीमत OP है तब वस्तु की माँग OL है। परंतु कीमत के OP से कम OP1 हो जाने पर वस्तु की माँग OL से बढ़कर OL1 हो जाती है।जो की वस्तु की कीमत और माँग के बीच विपरीत संबंध को प्रकट करता है।तथा वस्तु की कीमत और माँग के बीच विपरीत संबंध होता है

घटिया/निम्नकोटि की वस्तुएँ (Inferior Goods):-

निम्नकोटि की वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका आय प्रभाव ऋणात्मक  तथा कीमत प्रभाव भी ऋणात्मक होता है।अतएव घटिया वस्तुओं; जैसे-मोटा अनाज,डबल रोटी,टोण्ड दूध के संबंध में उपभोक्ता की आय तथा घटिया वस्तुओं की माँग में विपरीत संबंध होता है।

ऋणात्मक आय प्रभाव से अभिप्राय यह है कि आय के बढ़ने पर माँग कम होती है तथा आय के कम होने पर माँग बढ़ती है।

 चित्र  से ज्ञात होता है आय के बढ़ने पर वस्तु की माँग कम हो जाती है तथा आय के कम होने से वस्तु की माँग बढ़ जाती है। जब आय OY है तो माँग OQ है परंतु आय के OY से बढ़कर OY1 हो जाने पर माँग OQ से कम होकर OQ1 हो जाती है।

कीमत प्रभाव भी ऋणात्मक से अभिप्राय है कि कीमत बढ़ने पर इनकी माँग घटती है तथा कीमत कम होने पर माँग बढ़ती है।

जैसे चित्र से ज्ञात होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹ 20  है तो वस्तु की माँग 100 है। जब कीमत काम हो कर  ₹ 10 हो जाती है तो वस्तु की माँग बढ़कर 200 हो जाती है।अतः निम्नकोटी  वस्तुओं की माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक होता है। 

माँग वक्र का ढलान नीचे की ओर है। यह उपभोक्ता की आय और निम्नकोटि की वस्तुओं की माँग में विपरीत संबंध को दर्शाता है।

गिफ्फन वस्तुएँ (Giffen Goods ):-

गिफ्फन वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका कीमत प्रभाव धनात्मक (Positive) होता है तथा आय प्रभाव ऋणात्मक (Negative) होता है।

धनात्मक कीमत प्रभाव का अर्थ है कि कीमत के घटने से माँग घटती है और कीमत के बढ़ने से माँग बढ़ती है।

कीमत और माँग के बीच धनात्मक संबंध (गिफ्फन वस्तुओं के मामले में) तब होता है जब ऋणात्मक आय प्रभाव बहुत अधिक होता है।

गिफ्फन वस्तुएँ बहुत अधिक निम्नकोटि की वस्तुएँ होती हैं, ये ऊँचे ऋणात्मक आय प्रभाव को प्रदर्शित करती है। इसलिए ऐसी वस्तुओं की कीमत जब गिरती है, उनकी माँग भी गिर जाती है।

जैसे चित्र से ज्ञात होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹ 10  है तो वस्तु की माँग 100 है। जब कीमत बढ़कर ₹ 20 हो जाती है तो वस्तु की माँग बढ़कर 200 हो जाती है।अतः गिफ्फन वस्तुओं की माँग वक्र का ढलान धनात्मक होता है। 

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