अध्याय-5 माँग की लोच (Elasticity of Demand )
1. माँग की लोच की किसे कहते हैं
माँग की लोच से यह ज्ञात होता है कि किसी वस्तु की कीमत अथवा उपभोक्ता की आय अथवा संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन होने से उस वस्तु की माँग की मात्रा में कितना परिवर्तन हुआ है।
डूले के शब्दों में, ” एक वस्तु की कीमत, उपभोक्ता की आय तथा संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन होने से उस वस्तु की माँग की मात्रा में होने वाले परिवर्तन के माप को माँग की लोच कहा जाएगा।’
माँग की लोच मुख्य रूप से तीन प्रकार की है :-
(1) माँग की कीमत लोच (Price Elasticity of Demand),
(2) माँग की आय लोच (Income Elasticity of Demand )
(3) माँग की आड़ी लोच (Cross Elasticity of Demand) |
कीमत लोच: –
जब वस्तु की माँगी गई मात्रा के परिवर्तन को वस्तु की कीमत में हुए परिवर्तन द्वारा मापा जाता है, तो इसे माँग की कीमत लोच कहते हैं ।
आय लोच: –
जब माँगी गई मात्रा के परिवर्तन को क्रेता की आय में हुए परिवर्तन द्वारा मापा जाता है, तो इसे माँग की आय लोच कहा जाता है।
आड़ी लोच:-
जब एक वस्तु की माँगी गई मात्रा के परिवर्तन को दूसरी संबंधित (स्थानापन्न, पूरक) वस्तु की कीमत में हुए परिवर्तन के द्वारा मापा जाता है तो इसे माँग की आड़ी लोच कहते हैं।
पाठ्यक्रम के अनुसार हम केवल माँग की कीमत लोच का अध्ययन करेंगे।
2. माँग की कीमत लोच (Price Elasticity of Demand )
माँग की कीमत लोच कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है।
इसका अर्थ किसी वस्तु की कीमत बढ़ने से माँग में कितने प्रतिशत की कमी होगी तथा कीमत कम होने से माँग में कितने प्रतिशत की वृद्धि होगी।
माँग की लोच द्वारा मात्रा में परिवर्तन का पता चलता है
जबकि माँग के नियम द्वारा परिवर्तन की दिशा का पता चलता है
माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
माँग की कीमत लोच = (-) —————————————–
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन
परिभाषा (Definition)
मार्शल के शब्दों में, “माँग की कीमत लोच कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है ।” (Price elasticity of demand is the ratio of percentage change in quantity demanded to a percentage change in price. -Marshall)
बोल्डिंग के अनुसार, “माँग की कीमत लोच किसी वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन की प्रतिक्रिया स्वरूप माँगी गई मात्रा में होने वाले परिवर्तन का माप है।” (Price elasticity of demand is the responsiveness of quantity demanded of a good to change in its price. —Boulding)
माँग की कीमत लोच की कोटियाँ (Degrees of Price Elasticity of Demand)
माँग की लोच की पाँच कोटियों / श्रेणियों है:-
(1)पूर्णतया लोचदार माँग (Perfectly Elastic Demand ):-
किसी वस्तु की पूर्णतया लोचदार माँग से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें प्रचलित कीमतों पर माँग अनन्त होती है। इस स्थिति में कीमत के थोड़ा-सा बढ़ने पर भी माँग शून्य हो जाती है।
चित्र में पूर्णतया लोचदार माँग प्रकट की गई है। DD पूर्णतया लोचदार माँग वक्र OX अक्ष के समानांतर है। इससे प्रकट होता है कि यदि कीमत ₹4 से थोड़ी सी भी बढ़ जाएगी तो माँग शून्य हो जाएगी। वस्तु की वर्तमान कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की 10 इकाइयाँ या 20 इकाइयाँ या 30 इकाइयाँ या जितनी भी चाहे मात्रा खरीद सकता है। इस अवस्था में माँग की लोच अनंत (∞) होती है अर्थात् Ed =∞ ,पूर्ण प्रतियोगिता की अवस्था में एक फर्म की माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होती है।
(2)- पूर्णतया बेलोचदार माँग ( Perfectly Inelastic Demand ):-
जब कीमत में परिवर्तन होने पर माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो माँग उस समय पूर्णतया बेलोचदार होती है
चित्र में पूर्णतया बेलोचदार माँग प्रकट की गई DD माँग वक्र OY-अक्ष के समानांतर है। इससे प्रकट होता है कि जब वस्तु की कीमत P है तो माँग OQ इकाइयाँ है। यदि कीमत बढ़कर P1 या कम हो कर P2 हो जाती है तो भी माँग OQ इकाइयाँ ही रहेगी। कीमत में होने वाले परिवर्तन का माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस अवस्था में माँग की लोच शून्य (Zero) होती है अर्थात् Ed = 0 (Zero)।
(3) इकाई लोचदार माँग (Unitary Elastic Demand ):-
इकाई लोचदार माँग वह स्थिति है जिसमें कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप वस्तु की माँग में इतना परिवर्तन होता है कि वस्तु पर किया जाने वाला कुल व्यय स्थिर रहता है।
कुल व्यय = खरीदी गई मात्रा X कीमत
चित्र से ज्ञात होता है कि मांगी गई मात्रा OM है जब कीमत OP है तो
कुल व्यय OM (मात्रा) X OP (कीमत) = OMTP क्षेत्रफल |
जब कीमत कम होकर OP1 हो जाती है तो
कुल व्यय = OM1 (मात्रा) X OP1 (कीमत) = OM1RP1 क्षेत्रफल |
OMTP क्षेत्रफल = OM1RP1 क्षेत्रफल । इसका अभिप्राय है कि वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर भी कुल व्यय स्थिर रहता है। माँग की लोच इकाई (Ed = 1 ) है ।
(4) इकाई से अधिक लोचदार माँग (Greater than Unitary Elastic Demand ) :-
इकाई से अधिक लोचदार माँग वह स्थिति है जिसमें क़ीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप वस्तु की माँग में इतना परिवर्तन होता है कि कीमत के कम होने पर उस वस्तु पर किया जाने वाला कुल खर्च बढ़ जाता है तथा कीमत के बढ़ने पर कुल खर्च कम हो जाता है।
चित्र से ज्ञात होता है कि जब कीमत OP है तो माँगी गई मात्रा OB है तथा कुल व्यय OB X OP = क्षेत्रफल OBTP होता है। इसके विपरीत कीमत OP के कम होकर OP1 हो जाने पर कुल व्यय OC X OP = क्षेत्रफल OCRP, हो जाता है। चित्र पर एक दृष्टि डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि क्षेत्रफल OCRP1, क्षेत्रफल OBTP, से अधिक है (OCRP1 > OBTP)। इसका अर्थ यह हुआ कि वस्तु की कीमत कम होने पर कुल व्यय में वृद्धि होती है। इसलिए माँग की लोच इकाई से अधिक (Ed > 1) है।
(5) इकाई से कम लोचदार माँग (Less than Unitary Elastic Demand):-
इकाई से कम लोचदार अर्थात् बेलोचदार माँग वह स्थिति है जिसमें वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप वस्तु की माँग में इतना परिवर्तन होता है कि कीमत के कम होने पर किया जाने वाला कुल खर्च कम हो जाता है तथा कीमत में वृद्धि होने पर कुल खर्च बढ़ जाता है।
चित्र से ज्ञात होता है कि जब कीमत OP है तो माँगी गई मात्रा OB है तथा कुल व्यय OB × OP = क्षेत्रफल OBTP होता है। इसके विपरीत जब कीमत कम होकर OP1 हो जाती है तो माँगी गई मात्रा OC है तथा कुल व्यय OC × OP1 = क्षेत्रफल OCRP1
होता है। चित्र देखने से स्पष्ट हो जाता है कि OCRP1 क्षेत्रफल OBTP से कम है (OCRP1 <OBTP)। इससे स्पष्ट हो जाता है कि कीमत के कम होने पर कुल व्यय कम हो गया है। इसलिए माँग की लोच इकाई से कम लोचदार (Ed< 1 ) है ।
जब कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है, वस्तु पर कुल व्यय कम होता है (क्षेत्रफल OCRP < क्षेत्रफल OBTP)। तदनुसार, T बिंदु पर लोच < 1 है। लोचदार तथा बेलोचदार माँग (Elastic and Inelastic Demand) लोचदार:- जब माँग की लोच इकाई से अधिक (Ed > 1) होती है।
बेलोचदार:-
जब माँग की लोच इकाई से कम (Ed < 1 ) होती है।
माँग वक्र के सभी बिंदुओं पर इकाई लोचदार माँग-एक विशेष अवस्था- आयताकार अतिपरवलय (Rectangular Hyperbola)
जब माँग वक्र के सभी बिंदुओं पर माँग की लोच इकाई के बराबर होती है तो आयताकार अतिपरवलय माँग वक्र कहते हैं
आयताकार अतिपरवलय वह वक्र है जिसके अंतर्गत बनाए गए सभी आयतों का क्षेत्रफल बराबर होता है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक आयत का क्षेत्रफल वस्तु पर किए जाने वाले कुल व्यय को प्रकट करता है। इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वस्तु की प्रतिशत कीमत के कम या अधिक होने पर भी उस पर किया जाने वाला कुल व्यय स्थिर रहेगा।
अतएव क्षेत्रफल OPAQ = क्षेत्रफल OP1BQ1 | इसलिए माँग वक्र के सभी बिंदुओं पर माँग की लोच (Ed) = 1 इकाई होगी।
माँग की कीमत लोच का माप (Measurement of Price Elasticity of Demand)
माँग की कीमत लोच के माप से यह ज्ञात होता है कि किसी वस्तु की माँग:-
(i)इकाई लोचदार माँग ( Unitary Elastic)
(ii) इकाई से अधिक लोचदार माँग (Greater than Unitary Elastic)
(iii) इकाई से कम लोचदार माँग (Less than Unitary Elastic)
माँग की लोच को मापने की निम्न विधियाँ हैं :-
(1) कुल व्यय विधि (Total Expenditure Method)
(2) आनुपातिक या प्रतिशत विधि (Proportionate or Percentage Method)
(3) ज्यामितीय विधि (Geometric Method) या ग्राफिक विधि (Graphic Method) या बिंदु विधि (Point Method)
कुल व्यय विधि (Total Expenditure or Total Outlay Method)
माँग की लोच मापने की कुल व्यय विधि का प्रतिपादन डॉ० मार्शल ने किया था। इस विधि के अनुसार माँग की लोच को मापने के लिए यह मालूम करना चाहिए कि किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से उस पर किए जाने वाले कुल व्यय में कितना परिवर्तन किस दिशा में होता है।
(i) लोच इकाई के बराबर :-
जब किसी वस्तु की कीमत के कम या अधिक होने का उस पर किए जाने वाले कुल व्यय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता तो माँग की लोच इकाई के बराबर होगी ।
(ii) इकाई से अधिक:-
जब किसी वस्तु की कीमत कम होने से कुल व्यय बढ़ जाता है तथा कीमत के बढ़ने से कुल व्यय कम हो जाता है अर्थात कीमत तथा कुल व्यय में ऋणात्मक संबंध हो तो उस वस्तु की माँग की लोच इकाई से अधिक अर्थात लोचदार होगी।
(iii) इकाई से कम:-
जब किसी वस्तु की कीमत कम होने से कुल व्यय कम हो जाता है तथा कीमत बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाता है अर्थात कीमत तथा कुल व्यय में धनात्मक संबंध हो तो उस वस्तु की माँग की लोच इकाई से कम अर्थात बेलोचदार होगी।
तालिका 1 व तालिका 2 से ज्ञात होता है कि कीमत में परिवर्तन होने का माँग की लोच पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
तालिका 1. कुल व्यय विधि (Total Expenditure Method)
माँग की लोच
(Elasticity of Demand)
|
कीमत
(Price)
|
कुल व्यय
(Total Expenditure )
|
इकाई से अधिक (Greater than Unity) |
बढ़ जाती है (Up)
↓ कम हो जाता है(Down) |
कम हो जाती है (Down)
↓ बढ़ जाता है (Up) |
इकाई (Unity)
|
बढ़ जाती है (Up)
↓ कम हो जाता है(Down) |
कोई परिवर्तन नहीं
(No Change)
|
इकाई से कम (Less than Unity)
|
बढ़ जाती है (Up)
↓ कम हो जाता है(Down) |
बढ़ जाता है (Up)
↓ कम हो जाती है (Down) |
तालिका 2. कुल व्यय विधि (Total Expenditure Method)
स्थिति
|
वस्तु की कीमत (₹)
|
मात्रा
(किलो)
|
कुल व्यय
(₹)
|
कुल व्यय पर प्रभाव
|
माँग की लोच
|
कीमत व कुल व्यय में संबंध |
A
|
2
1 |
4
8 |
8
8 |
कुल व्यय समान रहता है
|
इकाई
Ed = 1
|
समान |
B |
2
1 |
4
10 |
8
10 |
कुल व्यय बढ़ता है
|
इकाई से
अधिक Ed>1
|
-VE |
C |
2
1 |
3
4 |
6
4 |
कुल व्यय कम होता है।
|
इकाई से कम
Ed < 1
|
+VE |
माँग की इकाई लोच (Unitary Elastic Demand ) :-
तालिका 2 की स्थिति (A) से ज्ञात होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹ 2 है तो वस्तु पर कुल खर्च ₹8 किया जाता है। यदि वस्तु की कीमत कम होकर ₹1 हो जाती है तो भी कुल व्यय ₹8 ही रहता है। कीमत परिवर्तन का कुल व्यय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता
इकाई से अधिक लोच (Greater than Unitary Elastic):-
तालिका 2 की स्थिति (B) से ज्ञात होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹ 2 है तो कुल व्यय ₹8 किया जाता है। यदि वस्तु की कीमत कम होकर ₹1 हो जाती है तो कुल व्यय बढ़कर ₹ 10 हो जाता है । अतएव कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप कुल व्यय में परिवर्तन विपरीत दिशा में होता है।
इकाई से कम लोच माँग (Less than Unitary Elastic):-
तालिका 2 की स्थिति (C) से ज्ञात होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹ 2 है तो कुल व्यय ₹6 है। यदि वस्तु की कीमत कम होकर ₹1 हो जाती है तो कुल व्यय कम होकर ₹4 हो जाता है। इस प्रकार कीमत में होने वाले परिवर्तन का कुल व्यय पर इसी दिशा में प्रभाव पड़ता है।
चित्र द्वारा भी माँग की लोच को मापने की कुल व्यय विधि को स्पष्ट किया जा सकता है।
चित्र में OY – अक्ष पर कीमत तथा OX-अक्ष पर कुल व्यय प्रकट किया गया है। TE वक्र कुल व्यय वक्र है। वक्र TE के बीच का BC भाग इकाई कीमत लोच को प्रकट कर रहा है। इससे ज्ञात होता है कि जब कीमत OM है तो कुल व्यय MC है | यदि कीमत बढ़कर ON हो जाती है तो भी कुल व्यय = MC अर्थात् पहले जितना ही रहेगा । वक्र TE का TB भाग इकाई से अधिक कीमत लोच या लोचदार माँग प्रकट कर रहा है । इससे ज्ञात होता है कि जब कीमत ON से बढ़कर OR हो जाती है तो कुल व्यय NB से कम होकर RA हो जाता है। वक्र TE का EC भाग इकाई से कम कीमत लोच या बेलोचदार माँग को प्रकट कर रहा है। इससे ज्ञात होता है कि जब कीमत OM से कम होकर OP हो जाती है तो कुल व्यय भी MC से कम होकर PD हो जाता है ।